सर्कस
- इब्बार
रब्बी
वह
कलाबाज़ी दिखा रही है
झूले
में लटक गई
खड़ी
हुई
पैरों
के बल गुड़ी-मुड़ी और
हवा
में उछल गई
हाथ-पैर
गोल-गोल
सब
ग़ायब
सिर्फ़
पेट दिखता है
झूले
पर खड़ी हुई
तो
पेट निकल आया
सुन्दर
नहीं है
नंगी
हैं टांगें और बाहें
गुड़मुड़ी
कच्छे और गुलाबी चोली में
भली
नहीं दिखती वह
चेहरा
सपाट
जैसे
ख़ुरदुरा तख़्ता
तख़्ते
के सहारे खड़ी है
आँख
बांध कर जोकर
मारता
है छुरे
एक भी
नहीं लगा उसे
हाथ-पैर
कुछ नज़र नहीं आता
पसलियाँ
गिन लो
पर
पेट उभर आता है
पूरा
तख़्ता ही पेट है
उसकी
बच्ची
एक
पहिए की साइकिल चलाती है
नहीं
दिखते हाथ-पाँव
लौंदा
जमा है साइकिल पर
पेट
धरा है झूले पर
पेट
जड़ा है तख़्ते पर
[1981]
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