Friday, January 6, 2017

हल्द्वानी के किस्से - 5 - छः


(पिछली क़िस्त से आगे )

परमौत की प्रेम कथा - भाग छः

अपशकुनों से भरपूर उस इंट्रो-पाल्टी के अगले दिन क्लास में पिरिया नहीं आई. परमौत पूरे समय बेकरार रहा और अजीब-अजीब भय उसके मन में मंडराते रहे. उसके अगले और अगले के अगले दिन भी जब उसके दीदार नहीं हुए तो परमौत की आत्मा बेकल हो गयी. चौथे दिन वह क्लास शुरू होने के आधा घंटा पहले पहुँच गया. उसे क्लासरूम के खाली होने की उम्मीद थी जहाँ जाकर वह पिरिया वाली सीट पर बैठकर एक गीत गुनगुनाने का इरादा रखता था. लेकिन वहां कॉपी पर झुकी अकेली बैठी हुई ससी कुछ लिख रही थी. इस तरह परमौत के अचानक भीतर घुसने की उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी. उसने बिना ऊपर निगाह उठाये कहा - "छी रे अब आ रही है तू ... इत्ती देर से इन्जार कर रई मैं ..." उसने अपनी लम्बी सखी को झिड़कने की नीयत से मुंह उठाया तो देखा सामने परमौत खड़ा था. परमौत को देखकर उसे झटका जैसा लगा और उसने झटपट अपनी कॉपी इस अंदाज़ में बंद की जैसे किसी ने उसे चोरी करते पकड़ लिया हो.

पिरियाविरहग्रस्त परमौत अपने आप में इतना बेसुध था कि उसे ससी की इस हरकत का भान ही नहीं हुआ. ससी को अकेला देख वह बाहर निकालने को हुआ कि ससी ने उससे कहा - "अब बाहर कां जा रा तू ... तुज्को खा जो क्या जाऊंगी यार ..." अब तक अनमनाए से परमौत को एक तरकीब सूझी. उसने हिम्मत कर के ससी से कहा - "मुझको जरा भूख लग रही है. समोसे खाने जा रहा हूँ. खाएगी?"

"चल मैं बी चल्ली" ससी झटके से खड़ी हो गयी. परमौत उसकी वीरतापूर्ण तत्परता से हैरान हुआ. वह सोच रहा था कि चटोरी ससी उससे अपने लिए दो-तीन समोसे ले आने को कहेगी और उसके बाद वह किसी बहाने से उससे पिरिया की कोई खोज खबर लेगा लेकिन वह तो उसके साथ चलने को तैयार हो गयी थी.

घनश्याम हलवाई उर्फ़ घनुवा सौंठ के खोमचे के बाहर खड़े परमौत और ससी को अगल-बगल के दुकानदार और वहां से गुज़र रहे नागरजन बेहद बारीकी से घूर रहे थे. परम्परानुसार नगर में लड़का और लड़की के साथ-साथ घूमने का मतलब उनके चक्कर चलने से लगाया जाता रहा था. यहाँ तो ये दोनों बेशर्म समोसे गछ्या रहे थे. परमौत को इन सारी व्यावहारिक जटिलताओं का ज्ञान भी था और ध्यान भी लेकिन समोसों के प्रति चटोरी ससी के अतिशय लोभ के चक्कर में उसे यह पशेमानी झेलनी पड़ रही थी. उसे अचानक सूझी अपनी उस तरकीब पर खीझ तो आई लेकिन वहाँ पर समोसा-कार्यक्रम को जल्दी-जल्दी निबटाने को सिवाय दूसरा चारा नहीं था. कबर में पैर लटका लेने की उम्र तक पहुँच चुका घनुवा सौंठ भी ससी को भयानक बेशर्मी से ताड़े हुए था. परमौत का मन बहुत सारे लोगों को बहुत से गालियाँ देने का हो रहा था लेकिन उसने ज़ब्त किया. अपने आसपास चल रहे इस ड्रामे से बेपरवाह मिर्च के अतिरेक का आनंद लेती हुई ससी "सूं-सूं" कर रही थी. परमौत को ससी पहले से ही मूर्ख लगती थी अब वह महामूर्ख लगने लगी थी. जस-तस समोसों का कार्यक्रम निबटा और वह पैसे दे ही रहा था कि अचानक ससी बोली - "हाय रे हाय, ये पिरिया जो कहाँ को जा रही होगी" चौंक कर परमौत पलटा और उसने देखा कि नीले-गुलाबी फूल-पत्तियों वाले प्रिंट का नए फैशन का सूट पहने उसकी हसरत, उसकी तमन्ना निगाह झुकाए चली जा रही थी. परमौत मना रहा कि वह उसे औए ससी को साथ न देखे पर उसके इस बाबत कुछ भी सोचना शुरू करने पहले ही ससी चिल्लाकर बोली "पिरिया! ओ पिरिया! समोसे खाती है रे पिरिया  कहा ..."

पिरिया ने पलटकर देखा और ससी को परमौत के साथ देखकर उसके चेहरे पर जो भाव आये उन्हें देखकर परमौत का दिल रोने को हो आया. पिरिया अदा के साथ मुस्कराई और हाथ के इशारे से नहीं कहकर अपनी राह पर चलती रही. वापस अपना रुख कम्प्यूटर क्लास की तरफ करने से पहले उसने असहाय दिख रहे परमौत को एक व्यंग्यपूर्ण निगाह भर देखा. परमौत का दिल डूब गया और उसे लगा जैसे पिरिया उस से कह रही हो कि इसी लिए तो आये थे ना तुम कम्प्यूटर सीखने का नाटक करने कि अपनी हमेशा भरी रहने वाली जेब का जलवा दिखाकर किसी भी लड़की को फंसा सको. किसी भी लड़की को. चाहे वह समोसाप्रेमी, चटोरी और हद दर्जे की बेवकूफ ही क्यों न हो.

परमौत ने ससी से कहा कि उसे कुछ काम याद आ गया है. बदहवासी, हताशा और नासमझी के अजीब आलम में उसने मोपेड का मुंह रुद्दरपुर की तरफ कर दिया. रास्ते में पड़ने वाले टांडा के घने जंगल से गुज़रना उसे हमेशा अच्छा लगता था. मोपेड चलाते हुए अपने उसके विचारों की बेढब आवारगी थम जाती थी और वह ठहरे हुए मन से सोच पाता था. रुद्दरपुर पहुँचने और वहां पहुँचते ही वापस हल्द्वानी की तरफ मुड़ने और फिर घर तक पहुँचने तक उसके मन में एक भी शुभ विचार नहीं आया. उसका मन उसे दुत्कार रहा था कि बेटा और खिलाओ समोसे. तेरी जानेमन अमिताब से फंसी हो चाहे न फंसी हो, समोसों के चक्कर में उसे इस बात का तो आज पूरा यकीन हो गया है कि तेरा चक्कर ससी से चल रहा है.

"अजीब हौकलेटपना है - ये पिरिया को इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही कि मैं उसको कितनी मोहब्बत करता हूँ. ये ससी-फसी टाइप की छोकरियों की कोई औकात है. और ... और ... वो साला लम्बू. बहुत अपने को हीरो समझ रहा था उस दिन. उसको भी देख लूँगा. .... सादी तो बेटे पिरिया से ही करूंगा. जो हो जाए ..."  

विविध रूप धारे परमौत के विचार इन्हीं दो-तीन विषयवस्तुओं के गिर्द मंडराते रहते लेकिन जैसे ही पिरिया से शादी की बात आती, उसका प्रैक्टिकल मन सवाल करता - "कैसे?" - ये सारे विचार धप्प से औंधे होकर गिर जाते. इस मेलोड्रामा को परमौत ने अपने मन में उस रात न जाने कितनी बार खेला.

सुबह होते होते दिमाग की धुंध थोड़ा छंटी तो उसने कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए. वह क्लास में तभी घुसेगा जब वह शुरू हो चुकी होगी. वह क्लास में किसी भी ससी-फसी से एक भी शब्द नहीं बोलेगा. मौका मिलते ही लम्बू अमिताब के हाथ-पैर तोड़ देगा और किसी भी तरह से पिरिया तक अपना प्रेम सन्देश पहुंचाने की कोशिश करेगा. और मंजिल तक पहुँचने से पहले किसी भी शर्त पर हार नहीं मानेगा.

पूर्वनियत कार्यक्रमानुसार परमौत क्लास शुरू होने के दस मिनट बाद क्लास में घुसा. लौंडे मास्टर ने दोस्ताना सी झाड़ पिलाई लेकिन उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा. पेन, कानों की बाली और होंठों सहित पिरिया अपनी सीट पर विराजमान थी. पिरिया को देखते ही रोज़ की तरह उसकी धड़कन बढ़ गयी लेकिन उसे धीरज रखना था. सो धीरज धरे-धरे जस-तस क्लास का समापन हुआ और परमौत जैसे ही सबसे पहले बाहर जाने को लपकने लगा, ससी की लम्बी सखी ने "एक मिनट ठैर तो रे यार परमोद" कहकर उसे रोक लिया. परमोद दरवाजे पर ठिठक गया. पिरिया और बाकी लड़कियां एक-एक कर बाहर निकलीं जबकि ससी, उसकी लम्बी सखी और एक और लड़की जो परमौत के रजिस्टर में पिरिया नंबर तीन के नाम से दर्ज थी कमरे के भीतर रुके हुए उनके चले जाने का इंतज़ार कर रहे थे.

परमौत को लगा वे समोसे की डिमांड करेंगी लेकिन तन्हाई जैसी होते ही लम्बसखी ने तनिक शर्माते हुए लहजे में उससे पूछा - "परमोद एक बात पूछूं? तू बुरा नहीं मानेगा ना. बाई गॉड कह रही हूँ हाँ."

"क्या मल्लब? मैं नहीं बोलता झूठ-हूठ, क्या कै री है बता."

"तेरी कोई फ्रेण्ड तो नहीं हैं ना मल्लब ..."

"क्या मल्लब फ्रेण्ड ... फ्रेण्ड तो मैं तुज्को बी मानता हूँ और ये ससी को बी और ये इस को बी ... अब साथ पढ़ने वाले हुए तो फ्रेण्ड भी हुए. हुए नहीं हुए?" उसने उलटा सवाल दागा और अपनी हिम्मत पर हैरान हुआ.

"अरे वो जो क्या कह रही हूँ ... मल्लब तेरी कोई फ्रेण्ड है ..."

"कहा ना छः सात फ्रेण्ड तो तुमी लोग हो ... बाकी मैं कॉलेज पढ़ने कबी गया नहीं तो ... और बाकी मुजको याद नहीं आ रहा ... फ्रेण्ड क्यों नहीं है ... बहुत सारी हैं ... जैसे तू हो गयी, ये ससी हो गयी और ... और ये हो गयी ,,." पिछली बात को रिपीट करते परमौत की समझ में ज्यादा कुछ नहीं आ रहा था.

"अरे मेरा मल्लब है तेरी कोई वैसी वाली फ्रेण्ड है कि नहीं है ... जिससे मल्लब ... जैसे वो पिक्चर में नहीं होता यार ... वैसी वाली कै रही हूँ ..."

"क्याप्प बेमल्लब की बात कर रही है तू. मेरे को कुछ नहीं पता इस बारे में" परमौत को हल्की सी शर्म लगी.

"किस टाइप का है यार तू? ... फीर ..."तनिक सोचती हुई लम्बसखी ने एक पल को ठहर कर पूछा "... फीर ... मल्लब तेरी कोई फ्रेण्ड नहीं हुई ना वैसी वाली. तो तू एक काम क्यूं नहीं करता ये ससी से फ्रेण्डसिप कर ले ना प्लीज ... इसका भी ना कोई फ्रेण्ड नहीं हुआ अभी तक ..."

परमौत कभी लम्बसखी को देखता, कभी शर्म से लाल पड़ी हुई चटोरी ससी को, कभी हैरान दिख रही पिरिया नंबर तीन को.

"... देख ये ससी ना तेरे को बहुत अच्छा मानने वाली हुई ... कै री थी मेरी फ्रेण्डसिप करा दे परमोद से तो मैंने कहा इसमें कौन सा किसी का जा रा हुआ ... है नी है ... तो मैंने कहा कि मैं कै दूंगी ..." इतना कहते हुए उसने अपने कंधे पर टंगे हुए बैग के भीतर हाथ डाल कर एक बड़ा सा गुलाबी लिफाफा निकाला और परमौत को सौंपते हुए बोली - "चार दिन से लिख री है बिचारी इसको ... आराम से पढ़ना हाँ ... अब हम जा रे ... चल रे ससी ... कितनी देर हो गयी यार बाब रे ..."

परमौत की अक्ल को जैसे काठ मार गया था. उसने लिफाफा थामा ही था कि लम्बसखी ने आँख मारते हुए ससी से कहा - "अब खुस?"    

ससी शर्म से वाकई लाल हो गयी. बाकी दोनों कन्याएं फिक्क से हंस पडीं. कन्यादल ने बाहर का रुख किया. परमौत का मुंह खुला रह गया. पिरिया के चक्कर में इतने दिन से उसकी ज़िंदगी हराम हुई पड़ी थी और ये लड़कियां उसके साथ ठिठोली कर रही थीं.

बंद लिफाफा लिए लिए परमौत हमारे पास आया. लिफ़ाफ़े का पूरा किस्सा सुनकर नब्बू डीयर ने पहली बार जीवन के प्रति उत्साह का प्रदर्शन करते हुए परमौत को "वेरी गुड ... वेरी गुड ... गज्जब ..." कहकर कॉम्प्लीमेंट दिया और लिफाफा उसके हाथ से झपट लिया. लिफाफा खोला गया. बड़े से पान के लाल पत्ते के बीच एक दूसरे को चूमने को तत्पर, जापानियों जैसा दिखने वाले एक जोड़े की फोटो बनी हुई थी. महिला और पुरुष के होंठों के बीच एक मिलीमीटर का फासला छूटा हुआ था और इस छूटे हुए खाली हिस्से के भीतर से सुनहरे रंग का पान का एक और पत्ता उग रहा था. इस छोटे वाले पान के पत्ते पर लाल रंग की डॉट पेन से बीहड़ हैण्डराइटिंग में अंग्रेज़ी के 'एस' और 'पी' अक्षर लिखे गए थे और इन दो अक्षरों को गणित के धन के चिन्ह से जोड़ा गया था.

"बेटा परमौत तेरी तो लॉटरी लग गयी बे ... दो-दो माल एक साथ ..." नब्बू डीयर की लपलपाती निगाहें कार्ड के कवर को आत्मसात कर लेना चाहती थीं. जिस प्रेमपत्र को प्राप्त कर सकने की चाहत में उसने न जाने कितने कल्प कलपते-तड़पते-झींकते-डाड़ाडाड़ करते हुए बिता दिए थे, उसे इस भुच्च परमौतिये ने दो महीने से कम समय में हासिल कर दिखाया था.

"अन्दर दिखा अन्दर ..." गिरधारी लम्बू बेचैनी से बोला.

अन्दर अंग्रेज़ी में कुछ कविता जैसी छपी हुई थी जो हम सब के लिए बेमानी थी. जीवन के सारे गूढ़ रहस्यों का सार समेटे एक दोहा-कम-शेर-कम-चौपाई के माध्यम ने चटोरी ससी रानी ने परमौत से प्रेम का इज़हार यूं किया था: 

            संगमरमर के महल में तेरी तस्वीर सजाऊंगी,
            अपने इस दिल में तेरे ही ख्वाब जगाऊंगी,
            यूँ एक बार आजमा के देख तेरे दिल में बस जाऊंगी,
            मैं तो प्यार की हूँ प्याशी तेरे आगोस में मर जाऊंगी

नब्बू डीयर और गिरधारी ने सायरी को अलग-अलग़ पढ़ कर सुनाया और कई बार वाह-वाह की.

"पंडित यार ये आगोस क्या हुआ?" उत्तेजना का दौरा हल्का पड़ने पर गिरधारी ने पूछा.

"गिरधारी गुरु " मैंने पंडित का आसन ग्रहण करते हुए बोलना शुरू किया "पहली बात तो ये है कि लड़की ने इसमें स्पेलिंग की दो मिस्टेक कर रखी हैं. यहाँ पर लिखा जाना चाहिए था - प्यासी और आग़ोश" ग़ के नुक्ते पर मैंने काफ़ी ज़ोर दिया. "और दूसरे ये कि ..."

"जादे ज्ञान न झाड़े पंडित ... मिस्टेकें गईं मेरे कद्दू में ... बस ये बता को ये साला आगोस क्या होता है. मतलब किसी टाइप के खरगोस की बात तो ना कर रई लौंडिया ..."

"आग़ोश का मतलब नब्बू वस्ताज ये समल्लो जैसे तुमारे ..." दो-एक मिनट को हम परमौत की उपस्थिति को तकरीबन भूल गए थे. हमारी बकवास से आहत परमौत ने मेरे वाक्य के पूरा होने से पहले ही गुस्से में बकना शुरू किया -

"आगोस का मल्लब होता है भांग और भांग का मतलब होता है परमोद की जिन्दगी ... तुम साले दोस्त हो या जल्लाद पैन्चो ...  यहाँ तुमारी भाबी समझ रही है कि मैं वो मोटी ससी को फंसाने के लिए मर रहा हूँ वहाँ वो मोटी समझ रही कि परमोद लाटा है ... संगमर्मर का घंटा बनाएगी मेरे लिए ... दद्दस रुपे में आते हैं ऐसे कार्ड साले. सुन रहे हो बे. एक दिन वो साला लम्बू भगा के ले जाएगा पिरिया को ... फिर मत कहना कि परमोद ने जहर खाने से पहले बताया नहीं ... आगोस में लगइयो फिर मेरी फोटू ससुरो! ..."


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