Tuesday, April 4, 2017

किशोरी अमोनकर के नाम में ही एक मंथरगति की नदी थी

किशोरी अमोनकर (11 अप्रैल 1931-3 अप्रैल 2017)
फ़ोटो: प्रसाद पवार 

किशोरी अमोनकर नहीं रहीं. वो उस्ताद अलादिया खां की शिष्या कुशल गायिका मोगूबाई कुर्डीकर की बेटी थीं. पिछले कई साल से उनको देख सुन ना पाने की वजह से मन इस बात के लिए तैयार था कि एक दिन उनके मरने की खबर से एक बार फिर उनकी याद ताज़ा हो जाएगी.

मैंने अपने बचपन में जब उन्हें पहली बार दूरदर्शन पर गाते हुए देखा तब शास्त्रीय संगीत में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी. वैसे भी दूसरे शास्त्रीय गायक जिस तरह मुंह टेढ़ा-मेढ़ा बनाया करते थे और अजीब-अजीब आवाजें निकालते थे, तब वो सब बहुत बेकार लगता था. जबकि किशोरी अमोनकर के नाम में ही एक मंथरगति की नदी थी.

लम्बोतरे चेहरे की लय नुकीली ठुड्डी पर आकर इस तरह का अवरोह लेती कि 'सहेला रे आ मिल गाएं' का हल्का सा आमंत्रण सैकड़ों मील दूर से झट बुला लाता. 'एक ही संग हुते जो तुम तो ... कहते हुए मुलायम जुल्फों के एक घने परदे से वो मुझे देखतीं और झट आसपास जुट रहे सुरों में उसे तलाशने लग जातीं .

ऐसा बहुत बरसों तक होता रहा और मैं मल्लिकार्जुन मंसूर, पंडित कुमार गन्धर्व, फैयाज़ खान साहब और भीमसेन जोशी की सीटों से गुज़रता हुआ उनकी बगल में बैठ गया. सफ़र लंबा चला और वो कहती रहीं घट घट में पंछी बोलता ... दुहराती रहीं बोलता. मैं हठ करता रहा कि कभी इस पर लम्बी बात करें और वो झिड़कती रहीं. यही मुझे उम्मीद थी और इसमें कोई शिकायत क्यों होती. मुझे उनके वो घाव मालूम थे जो उन्होंने फिल्मो के लिए गाकर कमाए थे; तो क्या, वो घाव तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के भी कभी नहीं भरे.

भरेंगे तो वो घाव भी नहीं जो आज रचनाविरोधी समय रच रहा है.

जाओ किशोरी जहां रहो शान्ति और सुख से रहो . हाँ हम कितने दिन तुम्हारा रचा मंथर जिद्दी और कलकल बहता संगीत बचा पाएंगे इसकी कोई गारंटी नहीं लेते.

-सैयद मोहम्मद इरफ़ान