Friday, June 9, 2017

हवा में तुम्हारा भी हिस्सा है - स्वाति मेलकानी की कविताएं - 2

एक खिड़की
- स्वाति मेलकानी 

एक ऐसी खिड़की
जरूर बनाना घर में
जो
तुम्हारी पहुँच में हो
और
जिसे तुम
अपनी मर्जी से खोल सको.

जब
तुम्हारी सांसें
फूलने लगती हैं
तो उस खिड़की से होकर
ताजी हवा
आ सके तुम तक
और तुम
महसूस कर सको
कि हवा में
तुम्हारा भी हिस्सा है.

एक ऐसी खिड़की
जरूर बनाना घर में
जहाँ से झाँककर
धूप तुम्हें देख सके
और
तुम जान सको
कि सूरज तुम्हारा भी है.
जहाँ से चहककर
पक्षी
तुम्हें गीत सुना सकें
और
तुम देख सको
फूलों से खेलती तितलियों को.

यह भी हो सकता है
कि बगीचे में दौड़ती
गिलहरी को देखकर
तुम्हे
थोड़ी हँसी भी आ जाए
और तुम मान सको
कि
हँसी बची है
तुम्हारे भीतर

शायद किसी रात को
खिड़की के बाहर
चमकते तारों के बीच
भरे अंधेरों को
निहारते हुए
तुम्हें
उस बची हुई हँसी के
घर का
रास्ता मिल जाए
और
अंधकार में मुस्काती
तुम्हारी आंखें
दहलीज पर रूठी
सुबह को मनाकर

भीतर ले आएँ. 

4 comments:

Unknown said...

very nice poem .

batrohi said...

बहुत शानदार चयन.

A.K.Arun,M.D.(Hom.) said...

अच्छी कविता। बधाई स्वाति ।

Nitin Pal Singh said...

bhut achhe