मार्ड इस्सा की पेन्टिंग 'द वेस्टलैंड ऑफ़ होप' |
यह
समय
यह
समय
जो
चल रहा है
धमनियों
में रक्त
अब
बहता नहीं है एक गति से
अनियंत्रित
होकर
टकराता
है दीवारों से ...
फटने
को तैयार
फूली
हुई शिराएँ
झांकती
हैं
चमड़ी
से बाहर.
धूप
तेज है
निकलने
से पहले ही
सूख
जाता है पसीना.
बचे
खुचे पेड़
अब
छाया नहीं देते
वे
तो बस
एक
मजबूती खूँटी हैं
कर्ज
में डूबे
किसानों
के
गले
की फाँस बनने को.
इस
समय में
भूख
है,
प्यास है, सूखा है ...
इस
समय में
बाढ़
है,
भीड़ है, बातें हैं ...
अल्जाइमर
और अवसाद से घिरा
यह
समय
ओबेसिटी
और कुपोषण
साथ-साथ
झेलता है.
‘कैलोरी बर्न’ करने को
‘ट्रैडमिल’ में चलता है.
अंत्योदय
कार्ड लिये
धूप
में पिघलता है ...
यह
समय
गूंगों
के आगे अकड़ता है.
बदन
को मिट्टी छुए
तो
झगड़ता है.
चांद
के सपनों पे जाकर
अटकता
है.
टपकते
नल के ऊपर
झपटता
है.
यह
समय
अपनी
ही जमीन पर
झूलता
हिलता मटकता
लटकता
है.
यह
समय
अपने
ही घर में भटकता है.
अब
गिरा
वो
तब गिरा
ठोकर
लगी
फिर
बच गया
डग-मग,
डग-मग
गड-मड
गड-मड.
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