अनंत
की कड़ियां
-स्वाति मेलकानी
अब
पड़ने लगी हैं
मेरे
चेहरे पर सिलवटें
और
तुम्हारा चेहरा
कली
सा खिलता है.
मेरे
घुटनों में थकान के कंपन हैं
और
तुम्हारे पैर
दौड़ने
की तैयारी कर चुके हैं
भोर
के शुभचिन्हों से
भरे
हैं तुम्हारे हाथ
और
मैं
सूर्यास्त
की सुन्दरता को
समेटना
चाहती हूँ.
मेरी
बेटी
तुम
एक
अद्भुत
जीवन को
अनावृत
करने वाली हो
और
मैं
एक
भरपूर जिंदगी के
अहसास
से भरी हूँ
तुम्हें
पाना है बहुत
और
मैं गिन रही हूँ
वह
सब
जो
रह गया शेष
तुम्हारी
आंखों से
मेरी
आंखें
आने
वाले कल में उतरती हैं.
तुम्हारा
होना
मेरे
होने का प्रमाण है
तुम
हो
क्योंकि
मैं थी.
तुम
रहोगी
क्योंकि
मैं हूँ
मैं
और तुम
अनंत
की कड़ियां हैं.
1 comment:
Very nice poem ma'am
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