Thursday, June 15, 2017

इसीलिये मैं पक्षधर हूँ जीवन की - स्वाति मेलकानी की कविताएं - 7


तुम और मैं

तुम
एक विशाल आकाश हो
बड़े से बड़े
ग्रह और नक्षत्र भी
तुम में समाकर
ओझल हो जाते हैं
इसीलिए शायद
तुम रह पाते हो
तटस्थ
निष्पक्ष
और अक्षुण्ण

पर मैं,
निरंतर
अपने ही पैरों तले
पाताल की विभीषिका को
उद्घाटित करती
वह गतिशील धरती हूँ
जिसमें समाकर
सूक्ष्मतम् बीज भी
अपनी जड़ें जमा लेता है.

मुझमें कुछ नहीं खोता
मैं एकत्र करती हूँ
स्वयं के भीतर
उन सुप्त खदानों
और मूक झरनों को
जो समय-असमय
तुम्हारे द्वारा
खोज लिये जाने को
प्रस्तुत रहते हैं.

इसीलिये
मैं पक्षधर हूँ
जीवन की
सुख और दुःख की
हर्ष और विषाद की

मैं
तुम्हारी तरह
निर्लिप्त रहकर
विजयी मुस्कान धारण नहीं कर सकती.

मुझे
प्रेम और विरह
दोनों पर मान है
मैं भी जीवित हूँ वर्तमान में
किन्तु मुझमें

भूत अब तक प्राणवान है.

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