Wednesday, July 19, 2017

फ्रीदा काहलो की डायरी का एक पन्ना


आधुनिक कला संसार में एक कल्ट की हैसियत रखने वाली मैक्सिकी चित्रकार फ्रीदा काहलो के बारे में आप काफ़ी जानते होंगे. उनके बारे में कबाड़खाने में कई पोस्ट्स लिखी जा चुकी हैं. इन पोस्ट्स पर जाने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - कबाड़खाने में फ्रीदा काहलो.

फिलहाल फ्रीदा की मशहूर डायरी का एक पन्ना देखिये. यह पोस्ट मेरी फेसबुक मित्र और शानदार पेन्टर शबनम गिल के लिए ख़ास तौर पर - 


पन्ने पर लिखी इबारत का अनुवाद:

मैं अनंतता के बिंदु तक
छीली गयी पेंसिलों को आजमाऊंगी
जो हमेशा आगे देखती है:

हराअच्छी गर्म रोशनी

लाल-बैंगनीअज़टेक. पुरातन त्लापाली* (TLAPALI)   
कंटीली नाशपाती का रक्त, सबसे
चमकीला और सबसे पुराना 
  
[भूरा —] मस्से का रंग, धरती में बदलती
पत्तियों का रंग

[पीला —] पागलपन बीमारी भय
सूरज और ख़ुशी का एक हिस्सा

[नीला —] बिजली और पवित्रता प्रेम

[काला —] काला कुछ भी नहीं होता – सच में कुछ नहीं

[जैतूनी —] पत्तियाँ, उदासी, विज्ञान, समूचा
जर्मनी यही रंग है

[पीला —] और ज़्यादा पागलपन और रहस्य
सारे प्रेत इसी
रंग के वस्त्र
या कम से कम इसी
रंग के अंतर्वस्त्र पहना करते हैं

[गाढ़ा नीला —] खराब विज्ञापनों
और अच्छे बिजनेस का रंग

[नीला —] दूरी, कोमलता.
क्या यह नीला रक्त

हो सकता है?

[त्लापाली* = पेंटिंग और ड्राइंग में इस्तेमाल होने वाले 'रंग' के लिए अज़टेक शब्द]  

1 comment:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 2672 में दिया जाएगा
धन्यवाद