Thursday, July 27, 2017

राजशेखर के ‘कविरहस्य’ से एक सीख


काव्यशास्त्र के पंडित माने जाने वाले राजशेखर (विक्रमी संवत ९३०-९७७) ने अपनी रचना 'कविरहस्य' में एक जगह लिखा गया है -

“कविरनुहरतिच्छायामर्थ कुकविः पदादिकं चौरः
  सर्वप्रबंधहर्त्रे          सहसकर्त्रे             नमस्तस्मै” 

अर्थात दूसरों की छाया-मात्र को लेने वाला कवि कहलाता है, भाव का अपहरण करने वाला कुकवि कहलाता है, जो भाव के साथ शब्दावली का भी अपहरण करता है, वह चोर कहलाता है और जो पद, वाक्य और अर्थ समेत सारे काव्य का अपहरण करता है, उस साहस करने वाले को दूर से ही नमस्कार है.

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