Thursday, November 30, 2017
Wednesday, November 29, 2017
जानता है मां को, भाषा को नहीं
मातृभाषा
-
इब्बार रब्बी
क्या
है मातृभाषा ?
पूछा
गया गूंगे लड़के से
क्या
बताए वह!
लड़का
जानता है मां को
भाषा
को नहीं जानता
रोमन
और नागरी
नहीं
पहचानता
पूछता
है लड़का -
"मां, क्या
है मातृभाषा ?"
समझा
नहीं पाती मां
सिर
खुजाता है लड़का
फिर
लिखता है अंग्रेज़ी में -
"मैडम
मुझे
नहीं मालूम
माता-पिता
की भाषा."
[1987]
Tuesday, November 28, 2017
Monday, November 27, 2017
Sunday, November 26, 2017
Saturday, November 25, 2017
Friday, November 24, 2017
सड़क पार करने वालों का गीत
सड़क
पार करने वालों का गीत
-
इब्बार रब्बी
महामान्य
महाराजाधिराजाओं के
निकल
जाएँ वाहन
आयातित
राजहंस
कैडलक, शाफ़र, टोयेटा
बसें
और बसें
टैक्सियाँ
और स्कूटर
महकते
दुपट्टे
टाइयाँ
और सूट
निकल
जाएँ ये प्रतियोगी
तब हम
पार करें सड़क
मन्त्रियों, तस्करों
डाकुओं
और अफ़सरों
की
निकल जाएँ सवारियाँ
इनके
गरुड़
इनके
नन्दी
इनके
मयूर
इनके
सिंह
गुज़र
जाएँ तो सड़क पार करें
यह
महानगर है विकास का
झकाझक
नर्क
यह
पूरा हो जाए तो हम
सड़क
पार करें
ये
बढ़ लें तो हम बढ़ें
ये
रेला आदिम प्रवाह
ये
दौड़ते शिकारी थमें
तो हम
गुज़रें
[1983]
Thursday, November 23, 2017
Wednesday, November 22, 2017
अगर कभी मरूँ तो
इच्छा
-
इब्बार रब्बी
मैं
मरूँ दिल्ली की बस में
पायदान
पर लटक कर नहीं
पहिये
से कुचलकर नहीं
पीछे
घसिटता हुआ नहीं
दुर्घटना
में नहीं
मैं
मरूँ बस में खड़ा-खड़ा
भीड़
में चिपक कर
चार
पाँव ऊपर हों
दस
हाथ नीचे
दिल्ली
की चलती हुई बस में मरूँ मैं
अगर
कभी मरूँ तो
बस के
बहुवचन के बीच
बस के
यौवन और सोन्दर्य के बीच
कुचलकर
मरूँ मैं
अगर
मैं मरूँ कभी तो वहीं
जहाँ
जिया गुमनाम लाश की तरह
गिरूँ
मैं भीड़ में
साधारण
कर देना मुझे है जीवन!
[1983]
Tuesday, November 21, 2017
बच्चा बनना चाहता हूँ बेटी की गोद में
मेरी
बेटी
-
इब्बार रब्बी
मेरी
बेटी बनती है
मैडम
बच्चों
को डाँटती जो दीवार है
फूटे
बरसाती मेज़ कुर्सी पलंग पर
नाक
पर रख चश्मा सरकाती
(जो
वहाँ नहीं है)
मोहन
कुमार
शैलेश
सुप्रिया
कनक
को
डाँटती
ख़ामोश
रहो
चीख़ती
डपटती
कमरे
में चक्कर लगाती है
हाथ
पीछे बांधे
अकड़
कर
फ़्राक
के कोने को
साड़ी
की तरह सम्हालती
कापियाँ
जाँचती
वेरी
पुअर
गुड
कभी
वर्क हार्ड
के
फूल बरसाती
टेढ़े-मेढ़े
साइन बनाती
वह
तरसती है
माँ
पिता और मास्टरनी बनने को
और
मैं बच्चा बनना चाहता हूँ
बेटी
की गोद में गुड्डे-सा
जहाँ
कोई मास्टर न हो!
[1983]
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