आज इनका जन्मदिन है. सबसे पुराने मित्रों में शुमार सिद्धेश्वर पहले थे जिन्होंने मुझे हिन्दी साहित्य की आधुनिक धारा से परिचित कराया था सो उनका ऋण हमेशा रहेगा. वे कबाड़खाने से जुड़नेवाले सब से पहले लोगों में से थे. उन्हें शुभकामनाओं के साथ उनके एजाज़ में उनकी एक पसंदीदा कविता प्रस्तुत की जा रही है.
उलटबाँसी
-
सिद्धेश्वर सिंह
दाखिल
होते हैं
इस
घर में
हाथ
पर धरे
निज
शीश
सीधी
होती जाती हैं
उलझी
उलटबाँसियाँ
अपनी
ही कथा लगती हैं
सब
कथायें
जिनके
बारे में
कहा
जा रहा है
कि
मन न भए दस बीस
1 comment:
सिद्धेश्वर जी को आज उनके जन्मदिन पर मंगलकामनाएं। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।
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