Friday, March 2, 2018

अपने शहर का रास्‍ता पराए शहर में भूला

बन्द और मज़बूत
- नवीन सागर

आधी रात के वक़्त अपने शहर का रास्‍ता
पराए शहर में भूला

बड़ा भारी शहर और भारी सन्‍नाटा
कोई वहाँ परिचित नहीं
परिचित सिर्फ़ आसमान
जिसमें तारे नहीं ज़रा-सा चॉंद
परिचित सिर्फ़ पेड़
चिडियों की नींद में ऊँघते हुए
परिचित सिर्फ़ हवा
रुकी हुई दीवारों के बीच उदासीन

परिचित सिर्फ़ भिखारी
आसमान से गिरे हुए चीथड़ों से
जहाँ-तहाँ पड़े हुए
परिचित सिर्फ़ अस्‍पताल क़त्‍लगाह हमारे
परिचित सिर्फ़ स्‍टेशन
आती-जाती गाड़ियों के मेले में अकेला
छूटा हुआ रोशन

परिचित सिर्फ़ परछाइयाँ:
चीज़ों के अँधेरे का रंग
परिचित सिर्फ़ दरवाज़े बंद और मज़बूत

इनमें से किसी से पूछता रास्‍ता
कि अकस्‍मात एक चीख़
बहुत परिचित जहाँ जिस तरफ़ से
उस तरफ़ को दिखा रास्‍ता

कि तभी
मज़बूत टायरों वाला ट्रक मिला
जो रास्‍ते पर था
ट्रक ड्राइवर गाता हुआ चला रहा था

मैं ऊँघता हुआ अपने शहर पहुँचा

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