नारायणजी की दो मैथिली कविताएं
नारायणजी मैथिली भाषा के कवियों में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. मूल रूप से बिहार के मधुबनी जिले के घोघरडीहा में जन्में नारायणजी ने मैथिली भाषा-साहित्यमे एम.ए और पीएच.डी भी की है. फिलहाल अपने गाँव स्थित कामेश्वर लता संस्कृत विद्यालय में अध्यापन कार्य कर रहे हैं। उनके कवि काव्य संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं. मैथिली से अनुदित उनकी दो कविताएं-
1. निर्माण
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बच्चे को खेलाता हूँ
गोद में लेकर
हाथ से उठाकर
कभी मुंह के ऊपर उछाल के.
घुआं-घूं पर झूलाता हूँ
अपने दोनों पैरों को तान कर
कहता हूँ बार-बार
‘पुराना घर गिरेगा
नया घर बनेगा’
सियार और खरगोश जैसी आवाज निकालता हूँ
नहीं होता है संतोष
तो पीठ पर बच्चे को बिठा लेता हूँ
और घोड़े जैसा
अपने मुंह से खुद को कहता हूँ ‘टिक-टिक’
बिल्ली जैसा करता हूँ- ‘म्याऊं’
कुत्ते जैसा
भौंकने लगता हूँ ऐसे
जिससे खुद भी चकित होता हूँ,
संभवतः कुत्ते भी ऐसे भौंक नहीं सकते हैं
‘भौं-भौं-भौं.’
बच्चे को खेलाते हुए
जो हमारे स्वर्णिम भविष्य हैं
करता हूँ
निर्माण
सियार और खरगोश
बिल्ली और कुत्ते
घोड़ा और गधा
होना पड़ता है, तो होता हूँ सहर्ष
आने वाली पीढी के लिए
ख़त्म होता हूँ वर्तमान में.
अनुवादक: विनीत उत्पल
2. सूखी पत्ती
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रास्ते पर आने से
कोई नहीं जाता है कहीं पहुंच
जैसे-सूखी पत्ती
गाड़ी भी गई
उसके साथ उड़ती थोड़ी दूर
हवा के झोंके में
हवा की गति के साथ
क्षण भर के लिए
कहीं नहीं गई
जहां गई
रही नहीं
सूखी पत्ती
सभी के साथ रही
संग नहीं रहा कोई उसके.
अनुवादक: विनीत उत्पल
1 comment:
वाह
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