Thursday, August 2, 2018

लब्ब यू


लब्ब यू
-विवेक सौनकिया
  
शुकुल बाबू ने दिमाग का दही कैसे बनायें विषय पर शोध कार्य हाल ही में संपन्न किया था और पापी पेट के सवाल पर नारद मुनि के पेशे में अल्मोड़ा आन टपके थे ठीक हमारी तरह. व्हाट्सऐप पर प्राप्त डिग्री के सहारे प्राप्त ज्ञान का आउटलेट खोलने के लिये अल्मोड़े में इधर से उधर डोलते शुकुल बाबू से एक तुलसी डबल जीरो के पान और चाय के साथ शुरू हुयी दोस्ती बिना किसी लिक्विडटी और लिक्विड के आज तक क़ायम है.

दिन प्रतिदिन प्रगाढ़ होने वाली दोस्ती से नारदमुनि के अन्य वंशज खासे चिढ़ते थे और अप्रत्यक्ष रूप से मौके बे मौके ताना मारने से न चूकने वाले हुये आपकी नज़र में खबर तो केवल शुकुल जी बनाते हैं बाकी सब तो चिंदी चोर ठैरे. कहीं यह आपका क्षेत्रवाद तो नहीं है.”

असल में पौने छै फुटिया, खिचड़ी बालों पर खिजाब न करने वाले, काले फ्रेम चश्मे वाले शुकुल कानपुर देहात के किसी गांव के रहने वाले हुये जो कानपुर में अपने कम माता पिता के सपने ज्यादा पूरे करने के लिये पढ़ने वाले और किराये के कमरे में रहने वाले हुये. पनकी में उनका कमरा हमारे गांव से मात्र एक सौ बीस किलोमीटर हुआ सो अल्मोडे़ के पत्रकार क्षेत्रवाद की गंध सूंघने में अपने आपको क़ामयाब मानते थे.

शुकुल जी अपनी कथित जवानी के दिनों से ही कथित तौर पर प्रेमी थे सो ऑफ द रेकॉर्ड उनकी कथित प्रेमिकाओं के किस्से गाहे बगाहे हमारे कानों में पड़ जाते थे.एक प्रेमिका का किस्सा बकौल शुकुल जी -

भैया कानयपुर की बात है. हम इंटर विंटर के लउडें रहे होंगे. घरई के पास एक ठो जादव रहा दूधिया”

फिर”

फिर का हम रोज सबेरे अपना बल्टा लइके जाते थे दूध लेने के ऐक दिन”

एक दिन”

ऐक दिन हमें महसूस भवा के कौनऊ पाछे से पीठ पर कंकरी धर दिहिस है.”

पलट के देखा तो जादो की लौंडिया हंसत हंसत भाग गई दुमंजिले पे”

फिर गुरू” कल्पनालोक में बन रहे बिंब अपने झोलझाल में फंसा रहे थे.

गुरू एक ठो चूरन की पुरिया पड़ी रही. हम ओका उठाये त कुछ लिखा पावा तभ्भये जादो भी बल्टा लेके आ गया सो पुड़िया जेबा मां खोंस के हम दूध लइके लइयां पइयां हो गये”

शुकुल सातवें आसमान पर बने कल्पनालोक से मात्र कुछ मीटर ही शेष थे. पर वो रूके नहीं.

घर पर कुंडी मार के कमरे में पुड़िया खोली त ई सुसरा जादो की लउंडिया का लब लइटर भवा”

अमां का कह रहे हो गुरू” उत्सुकता कुछ फाड़ के बाहर निकलने को फड़फड़ा रही थी.

हां भई लब लैटर ... साच्छात लब लैटर रहा” शुकुल के काले चश्मे के पीछे झांकती आखें किसी अनजान नशे की गिरफ्त में आ रही थीं.

क्या लिखा था”

शुकुल लव लैटर उवाच रहे थे. एकदम ईकोफ्रेंडली मोड में.

माई डियर जी ...आई लब्ब यू
तुमें देखती हूं तो ऐसे
के जइसे जुगों से तुमें जानती हूं
अगर तुम हो सागर तो मैं पियासी नदी हूं
अगर तुम हो सावन तो मै जलती कली हूं”

लड़की शानदार भूमिका के बाद मेन मुद्दे पर आ रही थी.

मेरे पियारे ‘जी’ तुम्हरी आंख में एक ठो नसा है.हम तुमारी आंख में डूब के कहीं मर मरा गये तो.बाल बहुत अच्छा है तुमारा एक दम घना काला. कउन से साबुन से नहाते हो जी”

अरी सुसरी नहाने पे आ गई सीधे .हम तो समझ रहे थे कि कुछ अउर लिखेगी” शुकुल की हाई स्पीड मैमोरी कार अचानक किसी ब्रेकर के ऊपर छलांग मारकर निकली.

ये मेरा प्रेम पत्र पढ़के के के के
तुम नाराज मत होना के के के
तुम्मेरी जिंदगी हो के के के
तुम्मेरी बंदगी हो के के के”

विविध भारती के गानों का कनपुरिया वर्जन सुनकर चक्कर आने वाला ही था कि शुकुल महराज फिर बोले - अखीर में भइया बड़ा सा दिल बना कर उसमें बांण घुसेड़ा गया था अउर खून की चार बूंदे चुचुवा रही थी. हिन्दी की मां बहिन एक करने के डर से ज्यादा हमें जादौ के डण्डे अउर बडे़ शुकुल की भरूवा सुमेरपुरी की मट्ठे में भीगी पनही (जूती) की आवाज कानों में सुनाई दे रही थी सो बाबू हम ऊ लब लइटर का फाड़ने के बजाये चबा गये अउर ऊपर से दो गिलास दूध पी गये. फिर हम उस घर में दूध लेने कभी नहीं गये.”

शुकुल की लव स्टोरी वन साइडेड ट्रैजिक अंत की सद्गति प्राप्त करने को अग्रसर थी.

शुकुल की एकपक्षीय स्वनामधन्य प्रेमिका उत्तरप्रदेश के जौनपुर जनपद के किसी सुदूरवर्ती देहात की रहने वाली थी जो कि अपनी उच्च शिक्षा को उच्च भाषायी दक्षता के साथ उच्चता प्राप्त करने के लिये कानपुर जैसे महानगर में स्थित मौसा के तबेले में बने घर में रह रही थी. भाषायी अपमिश्रण के पीछे का प्रामाणिक पुरातात्विक साक्ष्य यही था और कुछ नहीं. प्रेम पत्र पूर्ण रूप से भावना प्रधान था और दिल की गहराइयों से उठती आवाजों को सुनकर लिखा गया था जिसमें भाषा के अवरोध को किसी प्रकार की तवज्जो देना सर्वथा वर्जित होता है. भावों को पुष्ट करने के लिये विनाका गीतमाला के अंशों को कापीराइट एक्ट की धज्जियां उड़ाते हुये संकलित सम्मिलित किया गया था.

शुकुल के सामने उत्तर लिखने की दुविधा बरसात की गंगा मैया की तरह उफना रही थी, जिसके एक पार प्रेमिका और दूसरी पार पिताजी अपनी भरूवा सुमेरपुरी पनही को हाथ में लिये “हिंया आवा तुमका बतावैं”  का उवाच करते हुये शुकुल के नदी पार उतरने की प्रतीक्षा कर रहे थे.

बेचारे शुकुल ने वक्त की नज़ाकत भांपते हुये उफनती नदी में ही कुछ देर बहते हुये दोनों से आगे निकलने का फैसला कर लिया था.

शुकुल लंबे समय तक अपनी उस प्रेमिका से बचते रहे और उससे भी लंबे समय तक क़ामयाब भी रहे फिर दिल पर पत्थर रखते हुये एक दिन उन्होंने सामाजिक वास्तविकता, जातीय संरचना, सामाजिक विभेद, अपनी बेरोजगारी आदि जैसे भारी भरकम मुद्दों को सामासिक शैली में अपनी उस कथित नायिका के सामने प्रस्तुत करने का फैसला बीयर के सुरूर में कर डाला
एक दिन हिम्मत बांध कर गये शुकुल ने मौका ताड़ कर एक सांस में सब कुछ कहने के बाद जो उत्तर सुना वह सचमुच हिला देने वाला था या कहें कि जड़ से उखाड़ देने वाला था.

भैया ऊ चिट्ठी त हम ऊ गुबरधन को फैंके रहे जो तुम्हरे बगल से बल्टा लइके बाहर जावा रहा!”

शुकुल लड़खड़ा चुके थे. संभावित लव स्टोरी की मात्र उन्नीस शब्दों में मासूमियत के साथ हत्या अपनी आंखों के सामने देखना अवर्णनीय झटके देने वाला था.

शुकुल अल्मोड़ा के नारदमुनि के वंशजों में शुमार होते हुये भी शुमार न थे. पत्रकारिता के उच्चतम मानदण्ड जो अल्मोड़ा अखबार के माध्यम से स्थापित किये गये थे उसे जिंदा रखने का जिम्मा शुकुल बखूबी निभाते रहे. पत्रकारिता के इस दौर में जब पत्रकारिता सिस्टम के हत्यारों के साथ पूरी नंगई के साथ खड़ी हुई रंगदारी करती दिखायी देती है तब शुकुल जैसा पत्रकार अपनी शोधपरक दृष्टि से खबरों का सम्यक प्रोजेक्शन खांटी अल्मुड़िया अंदाज में करता हुआ अल्मोड़त्व में डूबता उतराता तैरता रहता है और हमेशा अल्मोड़े को अल्मोडे़ की नज़र से अल्मोड़े की स्टाइल में उघाड़ता हुआ आगे बढ़ता हुआ दोस्त बना रहता है.

3 comments:

Unknown said...

वाह,जियो मेरे लैपटॉप,मेरे जिगरी दोस्त।बेहतरीन।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्तनपान और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

केशव भटृट said...

वाह!👍 अद्धभुत लेखन शैली है जनाब.