(अभी सिद्धेश्वर सिंह को यहाँ सीधे सीधे कबाड़ भेजने में दिक्कत हो रही है।) दूसरे खटीमा में नेट का हाल कोई बहुत अच्छा नहीं है। यह कविता उन्होने मुझे मेल पर भेजी है खास कबाड़खाने के वास्ते। उम्मीद है कि अब वे लगातार यहाँ अपना मटेरीयल सप्लाई करते रहेंगे, खास तौर पर ब्रुक हिल हॉस्टल के किस्से जिन्हें लिखने का उन्होने वादा किया है. आमीन ।)
कबाड़नामा : एक
कबाड़ = टूटा-फूटा सामान ,रद्दी चीजें ।
कबाडी़ = टूटी-फूटी चीजें खरीदने ,बेचने वाला ।
कबाडा़ = झंझट , बखेड़ा ।
हम भी बेचेंगे- खरीदेंगे कबाड़ ,शायद हो जाये कुछ जुगाड़ ।
लिखेंगे, पढ़ेंगे दोस्तों के संग ,बहुत झोंक लिया जिंदगी का भाड़ ।।
इस जगह पर तरह -तरह का कबाड़ है
कबाड़ बोले तो टूटा-फूटा सामान ,रद्दी चीजें
कवि लोग कहेंगे किसिम किसिम का कबाड़
जैसे किसिम किसिम की कविता ।
कबाड़ माने किसी के लिए नाकारा-निकम्मी हो गई चीजें
भविष्य में जिनके इस्तेमाल होंने की नहीं बची हो गुंजाइश
लेकिन कबाड से ही हो जाता है किसी-किसी का जुगाड़
कबाड़ से ही पूरी सी हो जाती है नई चीज पाने का खुशी ।
अब उस कबाड़ी का ही किस्सा सुनो
जो ऐन दोपहर के वक्त प्रकट हुआ था गली के छोर से
आवाज लगाता मुनादी सी करता- पेप्पोर रद्दी
लोया -टीन - खाली बोतल - पिलाटि्टक का सामान ।
थोड़ा था हमारे पास भी कबाड़
होता है सबके पास होता है
अल्लम -गल्लम के अलावा बिटिया के पुराने सफेद जूते भी
जिनकी नाप से बड़े हो गए थे पैर
कबाड़ी ने विशेषज्ञ की तरह परखा -छांटा सामान
और बड़े इत्मीनान से कर दिये जूते अलग दरकिनार
बोला- ये तो सई हैं आ जांगे काम
और अचानक लगा कुछ उदास
किसके काम?
यह पूछना एक खतरनाक सवाल से गुजरना था
मैंने नहीं लिया खतरा मोल , न ही फूटे मुखारविंद से बोल ।
जूते लेकर जा चुका था कबाड़ी
और मैं जुतियाया -सा खड़ा था कबाड की तरह
कबाड़ बोले तो टूटा-फूटा सामान ,रद्दी चीजें ।
सिद्धेश्वर सिंह
4 comments:
Jawahir chaa ko khushaamdeed aur salaam....
वैरी गुड महाराज। कुछ गद्द भेजे तत्काल।
जे हुए न बात पधान्जी! बोई तेबर, कबाड़खाने ने तो आपको ह्वईं लाके पटक दिया। जमाए रक्खो बुरखिल वाले तेवर।
Wah Kushwaha sab! Kya Munna bhai wali tarj nikali hai,
Bujho to jane!
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