सोनापानी में 'हिमालयन विलेज' नाम का रिसोर्ट चलाने वाले आशीष अरोरा उर्फ़ सरदार कई सालों तक दिल्ली में 'उत्तराखंड भवन' नाम से (वि/कु)ख्यात अड्डा सफलतापूर्वक चला चुके हैं। कबाड़ख़ाने के अधिसंख्य सदस्यों को कबाड़वाद में स्नातक होने का सर्टिफिकेट वहीं प्राप्त हुआ था। इस लिहाज से वे यहाँ के सबसे पुरातन कबाड़वादी भी हैं और उत्तम कबाड़ी भी। 'उत्तराखंड भवन' में लम्बा समय बिता चुके कई लोगों को तो कई बार उनमें और स्वयं कबाड़ में ज्यादा फर्क नहीं दिख पाता था खास तौर पर जब वे अपनी एतिहासिक वाशिंग मशीन में स्टोर किये गए जरूरी दस्तावेजों या खुली अलमारी में पहले से पड़े कम गंदे, गंदे और ज्यादा गंदे कपड़ों के आलीशान ढेर के सम्मुख विचारपूर्ण मुद्रा में पाए जाते थे।
कबाड़श्री, कबाड़ भूषण, कबाड़ विभूषण और अंततः कबाड़ रत्न का सम्मान पा चुके आशीष जी को मैं अपनी तरफ से मैं फाइनली इस कबाड़ख़ाने में आ पहुँचने की बधायी देता हूँ।
8 comments:
काफी उत्सुकता है सरदार जी के बारे में!
खुदा करे वो जल्द कुछ कबाड़ हमारे सामने लाएं !
सिरिफ इंगलिस पैपर और बीयर की बोतलें ही लूंगा,,,,,,,,सैकिल पिंचर है थोडी देर में फेरी लगाता हूं
जे जो कबाड़ी है इसे सरदार कैवे हैं. जे सरदार भौत असरदार है. इसे अपनी खिड़की से नीचे झांकने का भौत सौक था. इसीलिए नीचे वालों ने अपने परदे खींच रक्खे थे. इसै मैफ़िल सजाने का भी भौत सौक है. लेकिन (मेरे जैसे) अच्छे गवैयों को हतोत्साहित करने का भी उतना ही सौक है. सरदार - भूला नहीं हूँ अब तक !!!
जोशी जी ने अब तक टीप ही छापी हैं कबाड़खाने में. जो0जी0 कुछ लाओ वाया लंदन !
अरे कोई बताता ही नहीं है कि पोस्ट कैसे डाली जाती है. पंडा फ़ोन नहीं उठाता. पता लगे तो बमबारडमेंट करना शुरू करूँ.... लेकिन करूँ कैसे... कैसे करते हैं ब्लॉग पोस्टिंग. आप ही बता दो भइया.
नईं साब, वैसे किसी को बताने वाली बात नहीं हुई, असली सरदार नई ठैरा भल ये। पगड़ी पहनने वाला नहीं ठैरा और कहते हैं बार बजे इसका डिमाग भी खराप नहीं होता। कुछ नहीं यार, इसके बूबू के बूबू पमातोड़ी के कन्याल हुए। रोजगार के लिए पंजाब गए तो किसी सरदार के यहां घरजमाई बैठ गए। तभी तो यह रनकरा तो हमारी भुली को भगा ले गया। वैसे मैं मिला भी कहां ठैरा इससे, अब कहनेवाले तो कहने ही वाले ठैरे।
आशुतोष दद्दा !
सरदार के बारे में इतनी जानकारी देने का भोत धन्यबाद!
मैं तो इन सब बातों से अनजान ठैरा अब तक !
sahab...hum to 'pathak' ho chuke hain...pathkuda wale!!! jahan tak baat rahee 'sardari begum' ki kuchch kuchch sardarikaran to unka bhi ho chuka hai...saas ke haath ke paranthe kha kha kar!
'kabadiyon ka sardar'
ashish
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