Friday, October 5, 2007

पेप्पोर रद्दी पेप्पोर

पहर अभी बीता ही है
पर चौंधा मार रही है धूप
खड़े खड़े कुम्हला रहे हैं
सजीले अशोक के पेड़

उरूज पर आ पहुंचा है बैसाख
सुन पड़ती है सड़क से
किसी बच्चा कबाड़ी की संगीतमय पुकार
गोया एक फरियाद है अजान की
एक फरियाद है एक फरियाद
कुछ थोड़ा और भरती मुझे
अवसाद और अकेलेपन से


वीरेन डंगवाल

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