Monday, October 15, 2007

डोरिस लेसिंग के बहाने एल्फ्रीड येलीनेक की याद


(यह एक शानदार घटना है कि १९९३ में टोनी मौरीसन को, १९९६ में पोलैंड की कवयित्री शिम्बोर्स्का को और २००४ में ऑस्ट्रियाई लेखिका एल्फ्रीड येलीनेक को नोबेल मिलने के बाद इस साल डोरिस लेसिंग को यह शिखर सम्मान मिला है। २००४ में जब येलीनेक को नोबेल मिला था, इत्तेफाकन मैं उन दिनों विएना में था।


अपनी डायरी पलटते हुए एक एंट्री नज़र आई। सो अभी वही शेयर कर रह हूँ आपके साथ। )


मेरे यहाँ पहुँचने के दूसरे दिन साहित्य का नोबेल पुरुस्कार ऑस्ट्रियाई लेखिका एल्फ्रीड येलीनेक को दिये जाने की घोषणा हुई। यह सम्मान प्राप्त करने वाली वे पहली ऑस्ट्रियाई हैं। विश्व-साहित्य के संसार में इस समाचार को बेहद चकित कर देने वाला माना गया। हालांकि अपने देश में वे अतिप्रसिद्ध हैं-अंग्रेजी भाषा समाज में उन्हें बमुश्किल कोई जानता है। उम्मीद की जा रही थी कि इस वर्ष यह पुरुस्कार संभवत: अमरीकी लेखक जॉन अपडाइक या कनाडा की लेखिका मार्गरेट एटवुड को मिलेगा पर अन्तत: स्टॉकहोम में येलीनेक के नाम पर सहमति हुई।


फ्रैंकफर्ट में उन्हीं दिनों चल रहे पुस्तक मेले में एक विख्यात ब्रिटिश प्रकाशक की प्रतिक्रिया थी: "मुझे कतई पता नहीं येलेनिक है कौन? मुझे लग रहा था कि इस बार का नोबेल किसी अल्बानियाई लेखक को मिलेगा पर ऐसा नहीं हुआ। ऐसा कतई मुमकिन है कि अगले साल यह किसी भारतीय को मिले। वैसे भी नोबेल का अब कोई मतलब नहीं रह गया है ..."


वियेना में रहने वाली एल्फ्रीड येलेनिक स्वयं अपने देश में खासी नापसंद की जाती हैं। मैं पिछले दिनों करीब दर्जन भर पढ़े-लिखे मित्रों से इस बारे में बात कर चुका हूँ । यह अलग बात है कि उनकी हर पुस्तक यहाँ ऑस्ट्रिया में एक लाख से ज्यादा बिकती हैं। ज्यादातर पढ़ने-लिखने वाले घरों में उनकी किताबें पाई जाती हैं पर उन्हें पसन्द कोई नहीं करता।


इस एकान्तप्रेमी और बेहद विवादास्पद लेखिका के लेखन से परिचित होने की इच्छा लिये मैं ब्रिटिश बुक स्टोर जाकर उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास `द पियानो टीचर´ खरीद लाया। मूलत: नारीवादी लेखन करने वाली येलेनिक स्वयं को नारीवादी कहलाना पसन्द नहीं करतीं। बेहद वर्जित और विद्रूप माने जाने वाले विषयों पर कलम चलाने वाली येलेनिक के साहित्य के मूल में लिंग भेद, पूंजीवादी और उपभोक्तावाद और इनसे उपजने वाली तमाम कुंठाएँ और निराशाएं हैं। ऑस्ट्रिया के मध्यवर्ग और दक्षिणपंथी धड़े में येलेनिक को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि वे अपने लेखन में इन वर्गों का जमकर मजाक उड़ाती हैं।


`द पियानो टीचर´ एरिका कोहुट नाम की पियानो-अध्यापिका की कहानी है। एरिका की जिंदगी उसकी माँ के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बचपन से एरिका को विश्वविख्यात पियानो-वादिका बनाना चाहती हैं पर चालीस साल की हो चुकने पर भी एरिका एक अध्यापिका भर है। माँ एरिका की वास्तविक और भावनात्मक दोनों जिन्दगियों पर पूरा नियंत्रण करना चाहती है। लेकिन ऐरिका का एक दूसरा जीवन भी है जिसमें वह अपनी काम-कुण्ठा को बहुत वर्जित तरीके से सन्तुष्ट करने का असफल प्रयास करती रहती है। कुल मिलाकर किताब बहुत निराशापूर्ण और अजीब से माहौल का सृजन करती है।मुझे किताब बहुत पसन्द तो भी नहीं आई पर हो सकता है येलेनिक के नाटक और शुरूआती किताबों को पढ़ने पर - जैसा कि डोबेर्सबर्ग में रहने वाली मेरी मित्र कोर्नेलिया का मानना है - मैं येलेनिक के बारे में कोई ठोस राय बना पाऊँगा ।


फिलहाल येलेनिक ने अपना नोबेल-भाषण लिखना तो स्वीकार किया है लेकिन वे इस बात पर अड़ी हैं कि दिसम्बर ११ , २००४ को यह पुरुस्कार लेने वे स्वयं नहीं जायेंगी -किसी भी कीमत पर।
(एल्फ्रीड येलीनेक वाकई स्टाकहोम नहीं गईं। पुरूस्कार समारोह में उनका भेजा गया एक वीडियो संदेश दिखाया गया था। उनका आग्रह था कि उन्हें अपने जीवन की निजता को बचाए रहने दिया जाए। )

1 comment:

Vineeta Yashswi said...

achhi jankari apne uplabdhe karayi hai