रेलगाड़ियों की दौड़ से पागल हो चुकी हवा लोगों के बालों और कपड़ों को उड़ा देती है : वह उनके चेहरों पर गर्म हवा फेंकती है¸ उनके कानों में हजारों आवाजों के साथ हमला बोलती है¸ उनकी आंखों को झुलसाने वाली धूल उड़ाती है¸ उन्हें अन्धा बना देती है¸ और उनके कानों को न ठहरने वाली एक चीख से बहरा कर देती है …
एक जिन्दा आदमी जो सोचता है सपने देखता है अपने दिमाग में तस्वीरें बनाता है और इच्छाएं करता है उनका अस्वीकार करता है और प्रतीक्षारत रहता है - इस चीख और गुर्राहट से तंग हो जाएगा जिसमें पत्थर की दीवारें हिलती हैं और खिड़कियों के कांच कांपते हैं। वह गुस्से में अपने घर से बाहर जाएगा और इस घृणित चीज को तोड़ डालेगा - इस उठाई हुई चीज को ; वह लोहे की इस चीख को खामोश कर देगा क्योंकि वह अपने जीवन का स्वामी है। जीवन उस के लिए है और जो भी चीज उसके जीवन में बाधा बनती है उसे बरबाद कर देना चाहिए।
पीले दैत्य के नगर के मकानों में रहने वाले लोग खामोशी से उस सब को बरदाश्त करते हैं जो मानव की हत्या करता है।
नीचे इस ऊंची रेलवे के लोहे के जाल के नीचे फुटपाथ की धूल में बेआवाज बच्चे खेल रहे हैं हालांकि वे दुनिया के और बच्चों की तरह हंस और चीख रहे हैं पर ऊपर चल रहे शोर में उनकी आवाजें समुद्र में बारिश की बूंदों की आवाज की तरह डूब जाती हैं। ये बच्चे किसी हाथ द्वारा सड़क की गन्द में फेंके गए किसी गुलदस्ते जैसे हैं। उनकी देहों को शहर की गंद से पोषण मिलता है ¸ वे फीके और कमजोर हैं¸ उनके खून में जहर मिल चुका है¸ उनके स्नायु जंगभरी धातु के दुष्ट शोर और जाल में फंसी बिजली के कारण मन्द पड़ चुके हैं।
क्या ये बच्चे स्वस्थ¸ बहादुर और गवीर्ले बनेंगे? - आप अपने से सवाल करते हैं। एक गुस्सैल चीखभरा शोर ही जवाब के तौर पर उभरता है़।
रेलगाड़ी ईस्ट साइड से होकर गुजरती है जो शहर का कूड़ेदान है और जहां गरीब लोग रहते हैं। यहां की गटरनुमा गलियां लोगों को शहर के दिल तक ले जाती हैं जहां आप कल्पना कर सकते हैं किसी बर्तन या कढ़ाई जैसा एक विशाल अतल गड्ढा होगा जिसमें इन लोगों को पिघलाकर सोना निकाला जाता होगा। गटर जैसी इन सड़कों पर बच्चों की भीड़ होती है।
मैंने अपने जीवन में बहुत गरीबी देखी है। उसका रक्तहीन हड़ियल हरा चेहरा मैं अच्छी तरह पहचानता हूं। मैंने उसकी भूख से बोझिल और लालच से जलती आंखें हर जगह देखी हैं लेकिन ईस्ट साइड की गरीबी जैसा भयानक मैंने कभी कहीं नहीं देखा।
इन गलियों में लोगों के साथ अनाज के बोरों की तरह ठुंसे हुए बच्चे फुटपाथों के कूड़ेदानों में सड़ी सब्जियां खोजते हैं और मिलते ही उन्हें वहीं भयानक गन्दगी और गर्मी के बीच अपने पेट में ठूंस लेते हैं।
फफूंद लगी डबलरोटी का एक टुकड़ा उनके बीच बर्बर दुश्मनी पैदा करने को बहुत होता है। उसे खाने की इच्छा में वे आपस में छोटे कुत्तों की तरह लड़ते हैं। भूखे कबूतरों के झुण्ड की तरह वे फुटपाथ पर रहते हैं; रात के एक और कभी कभी दो बजे या उस के बाद तक वे कूड़ेदानों को खंगालते रहते हैं; गरीबी के ये दयनीय नन्हे जीव जो पीले दैत्य के रईस गुलामों के अतिशय लालच का सीधा मजाक बनाते दिखते हैं।
गन्दभरी गलियों के किनारों पर स्टोव या भट्टियों जैसी कोई चीज होती है जिनमें कुछ पक रहा होता है ; उन से निकले एक पतले पाइप से होकर बाहर आती भाप एक तीखी आवाज पैदा करती रहती है। यह तीखी आवाज गली की सारी आवाजों पर फैली रहती है और एक ठण्डे चमकीले सफेद धागे की तरह गरदनों के गिर्द लिपटती जाती हैः विचारों को उलझाती हुई¸ पागल बनाती हुई¸ एक क्षण को भी न ठहरती हुई¸ हवा को प्रदूषित करती गन्दगी की सड़ांध के ऊपर थरथराती हुई और धूल में जिए जाते इस जीवन के ऊपर नफरत के साथ फैली हुई।
धूल एक तत्व है और उसने हर चीज को हरा दिया है : घरों की दीवारों को¸ खिड़कियों के कांच को¸ लोगों के कपड़ों को¸ उनके शरीरों के रोमों को¸ उनके दिमागों को¸ उनकी इच्छाओं और विचारों को …
इन गलियों में दरवाजों के अंधेरे खोखल दीवार के पत्थरों पर घावों जैसे होते हैं। उन की तरफ देखने पर आप को गन्दगी से अटी सीढ़ियां नजर आती हैं और ऐसा लगता है कि भीतर की हर चीज सड़ चुकी है जैसे किसी मृत देह की अंतड़ियां। और लोग उनके भीतर कीड़ों जैसे …
एक दरवाजे पर बड़ी और गहरी आंखों वाली ऊंचे कद की एक औरत एक बच्चे को अपनी बांहों में लिए खड़ी है; उसकी अंगिया खुली हुई है और नीलापन लिए हुए उसकी छातियां लम्बे झोलों की तरह लटकी हुई हैं। बच्चा चीखता हुआ मां की देह को खसोटता है चूसने की आवाजें निकालता है और एक पल की खामोशी के बाद और जोर से रोता हुआ मां की छाती पर चोट करता जाता है। वह स्त्री इस तरह खड़ी है मानो पत्थर की बनी हो। उल्लू जितनी गोल आंखों से वह अपने सामने के किसी खाली स्थान को घूरती रहती है। आप को लगता है कि वे आंखें सिवा डबलरोटी के कुछ नहीं देखतीं। उसके होंठ कसे हुए हैं और वह अपनी नाक से सांस लेती है। गली की भारी दुर्गंधभरी हवा की सांस लेने से उसके नथुने कांपते हैं। यह स्त्री कल खाए गए भोजन की स्मृति पर जिन्दा रहती है और भविष्य में इत्तफाक से मिल जाने वाले भोजन के किसी टुकड़े का ख्वाब देखती है। बच्चा चीखता है और उसकी नन्ही पीली देह दोहरी पड़ जाती है पर मां न तो उसकी आवाज सुनती है न उसकी कोमल चोटों को महसूस करती है।
बिना हैट के लम्बे कद का सलेटी और भूखी आंखों वाला एक बूढ़ा कूड़ेदान में सावधानी से अपनी थकी आंखों की लाल पड़ चुकी पलकों से कोयला बीन रहा है। जब भी कोई उसके पास आता है वह किसी भेड़िए की तरह पलटता है और कुछ बुदबुदाने लगता है।
लैम्पपोस्ट से लगा खड़ा एक बेहद दुबला और जर्द नौजवान अपनी सलेटी आंखों से गली को देख रहा है। समय समय पर वह अपने घुंघराले बालों को झटकता है। उसके हाथ उसकी जेब में गहरे धंसे हुए हैं और उसकी ऊंगलियां तेज तेज हिल रही हैं …
यहां इन गलियों में आदमी साफ पहचाना जाता है और उसकी गुस्सेभरी¸ उकताई हुई¸ और बदले की आग से भरी आवाज सुनाई दे जाती है। यहां आदमी का चेहरा होता है - भूखा¸ उत्तेजित¸ यातना झेलता हुआ। साफ है कि ये लोग महसूस करते हैं और इस बात को जाना जा सकता है कि वे सोचते हैं। गन्दे गटर में रहने वाले ये लोग झागभरी किसी नदी में टूटी नाव के बहते टुकड़ों की तरह एक दूसरे से टकराते चलते हैं। भूख की ताकत उन्हें यहां से वहां फेंकती है और कुछ खाने की उनकी तीव्र इच्छा उन्हें जिन्दा बनाए रखती है।
इस दौरान भोजन और संतुष्टि महसूस करने के बारे में सपने देखते वे जहरभरी हवा निगलते हैं और उनकी आत्मा की काली गहराइयों में तीखे विचार ईष्र्या और आपराधिक इच्छाएं पैदा होती हैं।
वे शहर के पेट में किसी बीमारी के कीटाणुओं जैसे हैं और समय आएगा जब वे उसे इसी जहर से प्रदूषित करेंगे जो इस वक्त उन्हें इतनी उदारता से पाल रहा है!
से लगा युवक बार बार अपना सिर झटकता है। उसके भूखे दांत कस कर जकड़े हुए हैं। मैं समझता हूं मैं जानता हूं वह क्या सोच रहा है और उसे क्या चाहिए - उसे विकट शक्ति वाले दो विशाल हाथ चाहिए और पीठ पर पंख; और मैं जानता हूं उसे वही चाहिए। ताकि एक दिन वह शहर के ऊपर मंडराते हुए अपने इस्पात सरीखे हाथों से सारे कुछ को कूड़े और राख के ढेर में बदल दे। ईंटों और मोतियों¸ सोने और गुलामों के खून¸ कांच और करोड़पतियों¸ धूल¸ मन्दिरों¸ धूल के जहर से ढंके पेड़ों¸ और मूखर्ताभरी उन ऊंची इमारतों¸ सब कुछ को एक ढेर में बदल देना¸ धूल और लोगों के खून से बने एक ढेर में; - एक घृणित अराजकता में। यह खतरनाक इच्छा इस युवक के दिमाग में उतनी ही प्राकृतिक है जैसे किसी बीमार आदमी के शरीर में घाव। जहां बहुत सारी गुलामी होती है वहां आजाद रचनात्मक विचारों के लिए जगह नहीं होती और केवल विनाश के विचार और प्रतिशोध के फूल वहां खिल सकते हैं। यह समझने की बात हैः अगर आप आदमी की आत्मा को जकड़ देते हैं तो आपने उस से दया की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
आदमी को प्रतिशोध का अधिकार है - और यह अधिकार उसे आदमियों ने दिया है।
अनुवाद : अशोक पाण्डे
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