Sunday, December 2, 2007

मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल रफ़ी साहब की आवाज़ में









मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए
जोश-ए-कदः से बज्म चरागाँ किये हुए ...

(अवधि: ४ मिनट ४ सेकेंड)

1 comment:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

bahut sunder.gaalib ka andaz,rafi ke awaz,aur aapki mehnat,badai ho