नाज़िम और पिराये
नाज़िम हिकमत यदा - कदा चित्रकारी पर भी हाथ आज़माया करते थे. ये रहे जेल में उनके बनाये पिराये के दो पोर्ट्रेट:
'९-१० रात्रि की कविताएं' शीर्षक श्रृंखला का तीसरा और आखिरी हिस्सा प्रस्तुत है. इस श्रृंखला के बारे में जानने हेतु यहां और यहां देखें.
२७ अक्टूबर १९४५
हम हैं एक सेब का आधा हिस्सा,
बाक़ी का आधा है यह पूरी दुनिया.
हम हैं एक सेब का आधा हिस्सा
बाक़ी का आधा हैं हमारे जन.
तुम हो एक सेब का आधा हिस्सा
बाक़ी का आधा हूं मैं,
हम दोनों ...
५ नवम्बर १९४५
भूल जाओ फूलते बादामों को.
वे इस लायक नहीं:
इस धंधे में
याद नहीं करते उसे जिसका लौटना मुमकिन नहीं.
सुखाओ अपने केश धूप में:
भीगे -भारी सुर्ख़ वे चमकें
पके फल की अलसता के साथ ...
मेरी प्रिया, मेरी प्यारी,
मौसम
पतझड़ ...
८ नवम्बर १९४५
मेरे सुदूर शहर की छतों के ऊपर से
मार्मरा सागर की तलहटी से
और पतझड़ लदी धरती के आर पार
तुम्हारी आवाज़ आई
सघन और तरल.
तीन मिनट तक.
फिर फ़ोन काला पड़ गया.
१२ नवम्बर १९४५
दक्षिणी वायु के आख़्रिरी ऊष्म झोंके बहते हैं
गुनगुनाते जैसे रक्त फूटता किसी धमनी से.
मैं सुनता हूं हवा को:
धीमी पड़ गई है नब्ज़.
उलुदाग़ पर्वत पर बर्फ़ है,
और चेरी पहाड़ी के भालू चले गए हैं सोने
पांगर की सुर्ख़ पत्तियों पर गुड़ी मुड़ी और भव्य.
मैदान में कपड़े उतार रहे हैं चिनार.
रेशमी कीड़ों के अण्डे सहेजे जा रहे हैं भीतर सर्दियों के लिये,
पतझड़ अब लगभग ख़त्म है,
धरती डूब रही है अपनी गर्भवती नींद में.
और हम गुज़ारेंगे एक और सर्दी
अपने महान ग़ुस्से में,
अपनी पवित्र आशा की आग तापते हुए ...
१३ नवम्बर १९४५
इस्तांबूल की ग़रीबी - वे बताते हैं - बयान के बाहर है,
भूख ने - वे बताते हैं - रौंद डाला है लोगों को,
टीबी -वे बताते हैं - हर कहीं है.
छोटी बच्चियां इतनी-इतनी - वे बताते हैं -
मण्डराती जली हुई इमारतों, सिनेमाघरों में ...
बुरी ख़बरें आती हैं मेरे सुदूर शहर से
ईमानदार, मेहनती ग़रीब लोगो -
असली इस्तांबूल की -
जो तुम्हारा घर है मेरी प्यारी,
और जिसे ढोता घूमता हूं अपनी पीठ के झोले में
मैं जहां कहीं निर्वासित होऊं जिस किसी जेल में
इस शहर को मैं लिये चलता हूं अपने दिल में
औलाद की मौत के शोक की तरह
वैसे ही जैसे अपनी आंखों में तुम्हारी तस्वीर को ...
४ दिसम्बर १९४५
वही पोशाक निकालो जिसमें पहले पहल देखा था मैंने तुम्हें,
सुन्दरतम सजो,
सजो वसन्त वृक्षों की तरह ...
अपने बालों में लगाओ
वह गुलाबी कार्नेशन फूल जो मैंने भेजा था जेल से
अपने पत्र में तुम्हें,
उठाओ अपना चूमने क़ाबिल रेखा-खिंचा चौड़ा गोरा माथा.
आज नाज़िम हिकमत की स्त्री को लगना चाहिये सुन्दर
- एक बाग़ी झण्डे की तरह.
५ दिसम्बर १९४५
पोत ने लंगर झटक दिया है
ग़ुलाम तोड़ रहे हैं अपनी ज़ंजीरें.
वह बह चली है उत्तर पूर्वा,
पटक कर चूर कर डालेगी वह पेंदे को चट्टानों पर.
यह संसार, यह दस्यु पोत, डूब जायेगा -
जहन्न्म आये चाहे ऊंचे थपेड़े, यह डूब जाएगा.
और हम बनाएंगे एक दुनियां इतनी उम्मीद भरी, स्वतंत्र और खुली
जैसे तुम्हारा माथा, मेरी पिराये ...
६ दिसम्बर १९४५
मेरी प्यारी, वे दुश्मन हैं उम्मीद के
बहते पानी के
और फलदार पेड़ के
विकसित होते खिलते जीवन के.
मौत दाग़ चुकी है उन्हें -
झड़ते दांत, सड़ती खाल -
और जल्द ही मरकर वे हमेशा के लिये ख़त्म हो जाएंगे.
और हां, मेरी प्रिया,
आज़ादी घूमेगी चहुं ओर बाहें झुलाती
अपनी सर्वोत्तम रविवारी पोशाक - मजूर की डांगरी में!
हां इस सुन्दर देश में आज़ादी ...
७ दिसम्बर १९४५
वे दुश्मन हैं रजब, बस्ती के उस बुनकर के
कराबुक, फ़ैक्ट्री के फ़िटर हसन के,
ग़रीब किसान औरत हातिजे के,
दिहाड़ी मज़दूर सुलेमान के
वे तुम्हारे दुश्मन हैं और मेरे
हरेक उस आदमी के जो सोचता है
और यह देश उन लोगों का घर -
मेरी प्यारी वे दुश्मन हैं इस देश के ...
१२ दिसम्बर १९४५
मैदानों के दरख़्त एक आखिरी कोशिश करते हैं चमकने की
चमचमाता सोना
तांबा
कांसा और काठ ...
बैलों के पैर आहिस्ता से धंसते हैं नम धरती पर.
और पहाड़ डूबे हैं कोहरे में;
गहरा, सलेटी, गीला-टपटपाता ...
यानी -
अन्तत: आज पतझड़ पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा.
जंगली मुर्ग़ाबियां तड़तड़ाती हुईं गुज़रीं अभी-अभी
शायद इज़निक झील को जातीं.
हवा शीतल है
और महकती है कुछ-कुछ काजल जैसी:
हवा में बर्फ़ की गन्ध है.
इस समय बाहर होना
घोड़े पर सवार हो पहाड़ों की तरफ़ चौकड़ियां मारना ...
तुम कहोगी, "तुम्हें आता ही कहां है घोड़े पर सवारी करना"
पर हंसो नहीं
न जलो:
इधर मैंने एक नई आदत डाल ली है जेल में,
मैं प्रकृति को क़रीब इतना ही प्यार करता हूं जितना तुम्हें.
और तुम दोनों ही बहुत दूर ...
१३ दिसम्बर १९४५
रात बर्फ़ अचानक गिरी.
सुबह थी
सफ़ेद शाखाओं पर विस्फोट करते कौए.
बर्सा के मैदान में जहां तक आंखें देख सकती हैं सर्दियां:
एक अन्तहीन संसार.
मेरी प्यारी, मौसम बदल गया है
कठिम श्रमसाध्य एक लम्बी छलांग में.
और बर्फ़ तले गर्वीला
कर्मठ जीवन
जारी है ...
१४ दिसम्बर १९४५
सत्यानास,
इतनी भयानक ठण्ड पड़ रही है ...
तुम और मेरा सच्चा इस्तांबूल, कौन जाने कैसे हो तुम?
क्या कोयला है तुम्हारे पास?
क्या मुमकिन हो पाया लकड़ियां ख़रीदना?
खिड़कियों में अख़बार मढ़ देना.
ज़रा सो जाया करना जल्दी.
बेचने काबिल तो शायद कुछ भी न बचा हो घर में.
ठण्डा और अधपेट खाकर रहना:
यहां भी हम बहुसंख्यक हैं
दुनियां में, अपने देश में, और अपने शहर में ...
(सभी अनुवाद: वीरेन डंगवाल, 'पहल' पुस्तिका - जनवरी-फ़रवरी १९९४ से साभार)
२७ अक्टूबर १९४५
हम हैं एक सेब का आधा हिस्सा,
बाक़ी का आधा है यह पूरी दुनिया.
हम हैं एक सेब का आधा हिस्सा
बाक़ी का आधा हैं हमारे जन.
तुम हो एक सेब का आधा हिस्सा
बाक़ी का आधा हूं मैं,
हम दोनों ...
५ नवम्बर १९४५
भूल जाओ फूलते बादामों को.
वे इस लायक नहीं:
इस धंधे में
याद नहीं करते उसे जिसका लौटना मुमकिन नहीं.
सुखाओ अपने केश धूप में:
भीगे -भारी सुर्ख़ वे चमकें
पके फल की अलसता के साथ ...
मेरी प्रिया, मेरी प्यारी,
मौसम
पतझड़ ...
८ नवम्बर १९४५
मेरे सुदूर शहर की छतों के ऊपर से
मार्मरा सागर की तलहटी से
और पतझड़ लदी धरती के आर पार
तुम्हारी आवाज़ आई
सघन और तरल.
तीन मिनट तक.
फिर फ़ोन काला पड़ गया.
१२ नवम्बर १९४५
दक्षिणी वायु के आख़्रिरी ऊष्म झोंके बहते हैं
गुनगुनाते जैसे रक्त फूटता किसी धमनी से.
मैं सुनता हूं हवा को:
धीमी पड़ गई है नब्ज़.
उलुदाग़ पर्वत पर बर्फ़ है,
और चेरी पहाड़ी के भालू चले गए हैं सोने
पांगर की सुर्ख़ पत्तियों पर गुड़ी मुड़ी और भव्य.
मैदान में कपड़े उतार रहे हैं चिनार.
रेशमी कीड़ों के अण्डे सहेजे जा रहे हैं भीतर सर्दियों के लिये,
पतझड़ अब लगभग ख़त्म है,
धरती डूब रही है अपनी गर्भवती नींद में.
और हम गुज़ारेंगे एक और सर्दी
अपने महान ग़ुस्से में,
अपनी पवित्र आशा की आग तापते हुए ...
१३ नवम्बर १९४५
इस्तांबूल की ग़रीबी - वे बताते हैं - बयान के बाहर है,
भूख ने - वे बताते हैं - रौंद डाला है लोगों को,
टीबी -वे बताते हैं - हर कहीं है.
छोटी बच्चियां इतनी-इतनी - वे बताते हैं -
मण्डराती जली हुई इमारतों, सिनेमाघरों में ...
बुरी ख़बरें आती हैं मेरे सुदूर शहर से
ईमानदार, मेहनती ग़रीब लोगो -
असली इस्तांबूल की -
जो तुम्हारा घर है मेरी प्यारी,
और जिसे ढोता घूमता हूं अपनी पीठ के झोले में
मैं जहां कहीं निर्वासित होऊं जिस किसी जेल में
इस शहर को मैं लिये चलता हूं अपने दिल में
औलाद की मौत के शोक की तरह
वैसे ही जैसे अपनी आंखों में तुम्हारी तस्वीर को ...
४ दिसम्बर १९४५
वही पोशाक निकालो जिसमें पहले पहल देखा था मैंने तुम्हें,
सुन्दरतम सजो,
सजो वसन्त वृक्षों की तरह ...
अपने बालों में लगाओ
वह गुलाबी कार्नेशन फूल जो मैंने भेजा था जेल से
अपने पत्र में तुम्हें,
उठाओ अपना चूमने क़ाबिल रेखा-खिंचा चौड़ा गोरा माथा.
आज नाज़िम हिकमत की स्त्री को लगना चाहिये सुन्दर
- एक बाग़ी झण्डे की तरह.
५ दिसम्बर १९४५
पोत ने लंगर झटक दिया है
ग़ुलाम तोड़ रहे हैं अपनी ज़ंजीरें.
वह बह चली है उत्तर पूर्वा,
पटक कर चूर कर डालेगी वह पेंदे को चट्टानों पर.
यह संसार, यह दस्यु पोत, डूब जायेगा -
जहन्न्म आये चाहे ऊंचे थपेड़े, यह डूब जाएगा.
और हम बनाएंगे एक दुनियां इतनी उम्मीद भरी, स्वतंत्र और खुली
जैसे तुम्हारा माथा, मेरी पिराये ...
६ दिसम्बर १९४५
मेरी प्यारी, वे दुश्मन हैं उम्मीद के
बहते पानी के
और फलदार पेड़ के
विकसित होते खिलते जीवन के.
मौत दाग़ चुकी है उन्हें -
झड़ते दांत, सड़ती खाल -
और जल्द ही मरकर वे हमेशा के लिये ख़त्म हो जाएंगे.
और हां, मेरी प्रिया,
आज़ादी घूमेगी चहुं ओर बाहें झुलाती
अपनी सर्वोत्तम रविवारी पोशाक - मजूर की डांगरी में!
हां इस सुन्दर देश में आज़ादी ...
७ दिसम्बर १९४५
वे दुश्मन हैं रजब, बस्ती के उस बुनकर के
कराबुक, फ़ैक्ट्री के फ़िटर हसन के,
ग़रीब किसान औरत हातिजे के,
दिहाड़ी मज़दूर सुलेमान के
वे तुम्हारे दुश्मन हैं और मेरे
हरेक उस आदमी के जो सोचता है
और यह देश उन लोगों का घर -
मेरी प्यारी वे दुश्मन हैं इस देश के ...
१२ दिसम्बर १९४५
मैदानों के दरख़्त एक आखिरी कोशिश करते हैं चमकने की
चमचमाता सोना
तांबा
कांसा और काठ ...
बैलों के पैर आहिस्ता से धंसते हैं नम धरती पर.
और पहाड़ डूबे हैं कोहरे में;
गहरा, सलेटी, गीला-टपटपाता ...
यानी -
अन्तत: आज पतझड़ पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा.
जंगली मुर्ग़ाबियां तड़तड़ाती हुईं गुज़रीं अभी-अभी
शायद इज़निक झील को जातीं.
हवा शीतल है
और महकती है कुछ-कुछ काजल जैसी:
हवा में बर्फ़ की गन्ध है.
इस समय बाहर होना
घोड़े पर सवार हो पहाड़ों की तरफ़ चौकड़ियां मारना ...
तुम कहोगी, "तुम्हें आता ही कहां है घोड़े पर सवारी करना"
पर हंसो नहीं
न जलो:
इधर मैंने एक नई आदत डाल ली है जेल में,
मैं प्रकृति को क़रीब इतना ही प्यार करता हूं जितना तुम्हें.
और तुम दोनों ही बहुत दूर ...
१३ दिसम्बर १९४५
रात बर्फ़ अचानक गिरी.
सुबह थी
सफ़ेद शाखाओं पर विस्फोट करते कौए.
बर्सा के मैदान में जहां तक आंखें देख सकती हैं सर्दियां:
एक अन्तहीन संसार.
मेरी प्यारी, मौसम बदल गया है
कठिम श्रमसाध्य एक लम्बी छलांग में.
और बर्फ़ तले गर्वीला
कर्मठ जीवन
जारी है ...
१४ दिसम्बर १९४५
सत्यानास,
इतनी भयानक ठण्ड पड़ रही है ...
तुम और मेरा सच्चा इस्तांबूल, कौन जाने कैसे हो तुम?
क्या कोयला है तुम्हारे पास?
क्या मुमकिन हो पाया लकड़ियां ख़रीदना?
खिड़कियों में अख़बार मढ़ देना.
ज़रा सो जाया करना जल्दी.
बेचने काबिल तो शायद कुछ भी न बचा हो घर में.
ठण्डा और अधपेट खाकर रहना:
यहां भी हम बहुसंख्यक हैं
दुनियां में, अपने देश में, और अपने शहर में ...
(सभी अनुवाद: वीरेन डंगवाल, 'पहल' पुस्तिका - जनवरी-फ़रवरी १९९४ से साभार)
4 comments:
अशोक भाई आभार नाजिम हिक्मत को पढाने के लिये. 'पहल' पुस्तिका तो किताबों के बीच कही बहुत नीचे दबी थी.
भूख ने - वे बताते हैं - रौंद डाला है लोगों को,
टीबी -वे बताते हैं - हर कहीं है.
छोटी बच्चियां इतनी-इतनी - वे बताते हैं -
मण्डराती जली हुई इमारतों, सिनेमाघरों में ...
बुरी ख़बरें आती हैं मेरे सुदूर शहर से
झकझोर कर रख देने वाली कविताएं
शुक्रिया इसे यहां प्रस्तुत करने के लिए.
नाज़िम हिकमत साहिब के बारे में विकिपीडिया (www.wipipedia.org) से कुछ शब्द
It's this way:
being captured is beside the point,
the point is not to surrender.
From It's This Way
You waste the attention of your eyes,
the glittering labour of your hands,
and knead the dough enough for dozens of loaves
of which you'll taste not a morsel;
you are free to slave for others--
you are free to make the rich richer.
The moment you're born
they plant around you
mills that grind lies
lies to last you a lifetime.
You keep thinking in your great freedom
a finger on your temple
free to have a free conscience.
Your head bent as if half-cut from the nape,
your arms long, hanging,
your saunter about in your great freedom:
you're free
with the freedom of being unemployed.
You love your country
as the nearest, most precious thing to you.
But one day, for example,
they may endorse it over to America,
and you, too, with your great freedom--
you have the freedom to become an air-base.
You may proclaim that one must live
not as a tool, a number or a link
but as a human being--
then at once they handcuff your wrists.
You are free to be arrested, imprisoned
and even hanged.
There's neither an iron, wooden
nor a tulle curtain
in your life;
there's no need to choose freedom:
you are free.
But this kind of freedom
is a sad affair under the stars.
From A Sad State Of Freedom
I'm twenty-seven,
she's seventeen.
"Blind Cupid,
lame Cupid,
both blind and lame Cupid
said, Love this girl,"
From A Spring Piece Left In The Middle
I've never regretted I was born too soon.
I'm proud to be
a child of the twentieth century.
I'm satisfied
to join its ranks
on our side
and fight for a new world...
From On the Twentieth Century (12 November 1941)
My country or the stars
Or my youth, what's farthest?
From In the Snowy Night Woods (10 March 1956)
The strangest of our powers
Is the courage to live
Knowing that we will die,
Knowing nothing more true.
From In the Snowy Night Woods (10 March 1956)
Loneliness feels like prison.
From New Year's Eve (23 March 1956)
The world's not run by governments or money
but people rule
a hundred years from now
maybe
but it will be for sure.
From Optimism (12 September 1957)
Separation isn't time or distance
it's the bridge between us
finer than silk thread sharper than swords
From Separation (6 June 1960)
Because of you, each day is a melon slice
smelling sweetly of earth
Because of you, all fruits reach out to me
as if I were the sun.
Thanks to you, I live on the honey of hope.
You are the reason my heart beats.
Because of you, even my loneliest nights
smile like an Anatolian kilim on your wall.
Should my journey end before I reach my city,
I've rested in a rose garden thanks to you.
Because of you I don't let death enter,
clothed in the softest garments,
and knocking on my door with songs
calling me to the greatest place.
From Because of You (29 August 1960)
All I wrote about us is lies
All I wrote about us is the truth
From About Us (30 September 1960)
Welcome baby
it's your turn to live
they're laying for you chicken pox whooping cough smallpox
malaria TB heart disease cancer and so on
unemployment hunger and so on
train wrecks bus accidents plane crashes on-the-job injuries
earthquakes floods droughts and so on
heartbreak alcoholism and so on
nightsticks prisons doors and so on
they're laying for you the atom bomb and so on
welcome baby
it's your turn to live
they're laying for you socialism communism and so on.
From Welcome (10 September 1961)
You're my bondage and my freedom,
my flesh burning like a naked summer night,
you're my country.
Hazel eyes marbled green,
you're awesome, beautiful, and brave,
you're my desire always just out of reach.
From You're
Looking at this insolent earth,
you hear the first battle cry of our species-
trap it under a rock
and together, screaming, attack
and destroy it, as if killing a mammoth.
From Human Landscapes from My Country, Book Two, Section VII
At eighteen the heart shoots like a pebble from a slingshot
and the head doesn't sit on the shoulder.
From Human Landscapes from My Country, Book Two, Section VII
At eighteen you sleep without memories.
From Human Landscapes from My Country, Book Two, Section VII
At eighteen you don't think about memories,
you tell them.
From Human Landscapes from My Country, Book Two, Section VII
Today is Sunday.
For the first time they took me out into the sun today.
And for the first time in my life I was aghast
that the sky is so far away
and so blue
and so vast
I stood there without a motion.
Then I sat on the ground with respectful devotion
leaning against the white wall.
Who cares about the waves with which I yearn to roll
Or about strife or freedom or my wife right now.
The soil, the sun and me...
I feel joyful and how.
From Today is Sunday
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