कल आपने पंडित छन्नूलाल मिश्र जी की आवाज़ में 'झूला धीरे से झुलाओ बनवारी' सुना था. आज सुनिये उसी अलबम से एक और रचना 'अब ना बजाओ श्याम बांसुरिया'. मैं तो इस आवाज़ में डूबा हुआ हूं.
कल वाली पोस्ट पर भाई संजय पटेल का बेहतरीन कमेन्ट आया : "... छन्नूलालजी को हमारे गुणी (?)संगीत समीक्षकों को बहुत अंडर एस्टीमेट किया है. एक तो पंडितजी प्रचार प्रसार और नये ज़माने के फ़ंडों से दूर रहने वाले और तिस पर म्युज़िक प्रमोशन के लिये चलती एक ख़ास किसिम की लॉबिंग.इसमें कोई शक नहीं कि ख़रज में डूबी छन्नूलालजी की आवाज़ की खरे पन में एक आत्मीय अपनापन है जैसे अपने गाँव के मंदिर के ओटले के अपने ही मोहल्ले के काका भजन सुना रहे हैं.वे शास्त्रीय संगीते की महफ़िलों में भी इसी सादगी के हामी हैं.पं.अनोखेलालजी के दामाद और जानेमाने युवा तबला वादक श्री रामशंकर मिश्र के पिता पं.छ्न्नूलालजी इलाहाबाद - बनारस की रसपूर्ण परम्परा के वाहक हैं और तामझाम से परे इस नेक और क़ाबिल स्वर-साधक को सुनवाने के लिये साधुवाद आपको." छन्नूलाल जी के संगीत और उनकी शख़्सियत के बारे में उनका यह अंतरंग कमेन्ट हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण है.
2 comments:
गजब किए देय रहे हो भैया !
हम तो संगीत में नहाय रहे हैं
सुबे को फ़िर सुनेंगे
दुपहर में दूसरी खुराक
और शाम को तीसरी -चौथी-पांचवीं...
अभी तो सोयेंगे..
अहा ! न बजाओ की टेर शायद ताउम्र कोई न सुने... क्योंकि ब्रजबाला चाहे व्याकुल हो जाए...ब्रजमंडल के बाहर वाले तो श्याम की मुरलिया भी सुनेंगे, छन्नुलालजी की गली में भी आएंगे और कबाड़खाने पर जम जाएंगे।
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