अशोक ने अतुल शर्मा का परिचय और कविताओं से परिचय कराया तो मुझे उनके उस जनगीत की याद आ गई जो उत्तराखंड आंदोलन के वक्त बेहद लोकप्रिय हुआ था। एक तरह से यह उस आंदोलन का घोषणापत्र जैसा कुछ बन गया था। अतुल दा हम सबके आदरणीय हैं उन्हें याद करते हुए यह कविता पोस्टर...
अशोक पांडे ने एक जमाने में खूब-खूब कविता पोस्टर बनाए थे। उन दिनों की याद दिलाते हुए आग्रह है कि भाई साब अपने चाहने वालों को उनके भी दर्शन कराओ ।
4 comments:
भाई वाह सिद्धेश्वर बाबू! पुराना कबाड़ अब तक सहेजे हुए हो. खूब जमा दिया आपने.
किसी कविता के जब पोस्टर बनने लगें और जब वह सैकड़ों-हज़ारों कंठों से दुहराई जाने लगे और उससे भी अधिक जब वह किसी जन-आंदोलन का हिस्सा बन जाए तो क्या कहने उस कविता के. वह चाहे जितनी साधारण क्यों न दिखती हो .
बहुत ख़ूब ! यह कविता अपने उत्तरांचली बन्धु बांधवों को भेज रही हूँ |
आपका ब्लॉग भी बड़े चाव से पढ़ा जाता है |
काश हमें भी एक सिद्धेश्वर मिला होता तो हमारे पोस्टर भी सहेजे गये होते. बोफ्फाइन बाऊजी.
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