Wednesday, June 11, 2008

कविता के बाद कविता पोस्टर

अशोक ने अतुल शर्मा का परिचय और कविताओं से परिचय कराया तो मुझे उनके उस जनगीत की याद आ गई जो उत्तराखंड आंदोलन के वक्त बेहद लोकप्रिय हुआ था। एक तरह से यह उस आंदोलन का घोषणापत्र जैसा कुछ बन गया था। अतुल दा हम सबके आदरणीय हैं उन्हें याद करते हुए यह कविता पोस्टर...
अशोक पांडे ने एक जमाने में खूब-खूब कविता पोस्टर बनाए थे। उन दिनों की याद दिलाते हुए आग्रह है कि भाई साब अपने चाहने वालों को उनके भी दर्शन कराओ ।

4 comments:

Ashok Pande said...

भाई वाह सिद्धेश्वर बाबू! पुराना कबाड़ अब तक सहेजे हुए हो. खूब जमा दिया आपने.

Priyankar said...

किसी कविता के जब पोस्टर बनने लगें और जब वह सैकड़ों-हज़ारों कंठों से दुहराई जाने लगे और उससे भी अधिक जब वह किसी जन-आंदोलन का हिस्सा बन जाए तो क्या कहने उस कविता के. वह चाहे जितनी साधारण क्यों न दिखती हो .

Unknown said...

बहुत ख़ूब ! यह कविता अपने उत्तरांचली बन्धु बांधवों को भेज रही हूँ |
आपका ब्लॉग भी बड़े चाव से पढ़ा जाता है |

इरफ़ान said...

काश हमें भी एक सिद्धेश्वर मिला होता तो हमारे पोस्टर भी सहेजे गये होते. बोफ्फाइन बाऊजी.