पाकिस्तानी कवि और गद्यकार इब्ने इंशा (१९२७-१९७८) मेरे सबसे पसन्दीदा कवि-लेखकों में हैं. उनकी दो किताबे 'प्रतिनिधि कवितायें' और 'उर्दू की आखिरी किताब' मेरी रोजाना की मानसिक 'खुराक' मे शामिल हैं. 'सुखनसाज' में उनकी कई रचनायें संगीत के लिबास में शामिल हो हमारे सामने पेश हैं. इंशा साहब का असली नाम शेर मोहम्मद ख़ां था. उनकी ज़्यादातर रचनाओं से एक फक्कड़मिजाज़ मस्तमौला और अनौपचारिक इन्सान की तस्वीर उभरती है जो मीर तक़ी मीर और नज़ीर अकबराबादी की रिवायत को आगे ले जाने का हौसला और माद्दा रखता है.
सुनते हैं इब्ने इंशा साहब की नज़्म छाया गांगुली के स्वर में:
फ़र्ज़ करो हम अहले वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों अफ़साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता, जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी, आधी हमने छुपाई हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूंढे हमने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मयख़ाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में सांस भी हम पर भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
कवि के परिचय के लिए 'सुखनसाज़' के साजिंदे अशोक पांडे के प्रति आभार!
6 comments:
छाया गांगुली कमाल की गायिका हैं. आप चाहें तो इब्ने इंशा की उर्दू की आख़िरी किताब से कुछ हिस्से यहाँ सुन सकते हैं- http://artofreading.blogspot.com/search/label/%E0%A4%87%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%BE
kamal ki kavita,umda gayan,behatareen subah,siddheshwar shukriya.kaise ittefak se mai aj savere savere is azaab tak an pahuncha jise campootar kehate hain.
viren
बहुत अच्छे साब!
सर, आपका ये पोस्ट पढकर मुझे अपना एक पोस्ट याद आ गया..
आप भी इसे पढें और अपने विचार दें तो मुझे बहुत खुशी होगी.. अशोक जी से भी ये आग्रह है..
http://prashant7aug.blogspot.com/2007/07/blog-post_31.html
nazm to ye kayi baar padhi thi par chaya ji ke swar mein ise yahin suna.
nayab prastuti
बहुत बढिया,
इसे बार बार सुनना बहुत सुखद लगता है ।
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