Friday, August 1, 2008

वकील साहब की आगज़नी और वैध/अवैध अग्निकाण्डों का एक मनोरंजक वृत्तान्त

ए. शार्लोट नाम के एक अमरीकी वकील ने एक कम्पनी से बहुत ही दुर्लभ और महंगे सिगारों का एक पैकेट खरीदा. इस पैकेट का उन्होंने तुरन्त ही आग समेत तमाम चीज़ों से होने वाले नुकसान का बीमा करा लिया.

एक माह के भीतर इस पैकेट के सारे सिगारों के मज़े ले लेने के बाद, बिना प्रीमियम की पहली किस्त दिए उन्होंने बीमा कम्पनी पर क्लेम का दावा ठोक दिया.

इस क्लेम में वकील साहब ने कहा कि सिगारों का पैकेट "छोटे अग्निकाण्डों की सीरीज़" के कारण गायब हो गया. बीमा कम्पनी ने क्लेम अस्वीकृत कर दिया क्योंकि जाहिर था वकील साहब इन दुर्लभ सिगारों को पी चुके थे.

वकील साहब ने कोर्ट में मुकदमा किया और यक़ीन मानिए केस जीत भी लिया.

जज साहब ने बीमा कम्पनी की दलील मानी कि पूरा दावा साफ़ साफ़ फ़र्ज़ी था लेकिन बीमा की शर्तों में इस बात का ज़िक्र था कि सिगार आग समेत हर तरह के नुकसानों के लिए इन्श्योर्ड हैं, अलबत्ता यह कहीं नहीं लिखा गया था कि कौन-कौन सी आग नुकसान पहुंचाने वाली (यानी "ACCEPTABLE FIRE") मानी जाएगी.

मुकदमे के झंझटों से बचने की नीयत से बीमा कम्पनी ने जज साहब का फ़ैसला मान लिया और वकील साहब को पूरे पन्द्रह हज़ार डॉलर का चैक थमा दिया.

वकील साहब ने चैक से पैसा निकालना था और चौबीस घन्टे के भीतर बीमा कम्पनी ने उन्हें आगज़नी के ज़ुर्म में गिरफ़्तार करवा दिया.

वकील साहब के पिछले बीमा क्लेम और सम्बन्धित केस की फ़ाइलों के हवाले से यह तय पाया गया कि उन्होंने जान बूझ कर बीमित सम्पत्ति को आगज़नी का निशाना बनाया.

इस बार वकील साहब दूसरी तरफ़ खड़े थे और उन्हें चौबीस हज़ार डॉलर का ज़ुर्माना भरने के साथ दो साल की क़ैद की सज़ा सुनाई गई.

यह एक सच्ची घटना है और इस रिपोर्ट को क्रिमिनल लॉयर्स अवार्ड कन्टेस्ट में पहला इनाम मिला.

(यह क़िस्सा मुझे मेरे एक मित्र पारितोष पन्त ने मेल से अभी कुछ मिनट पहले भेजा है. मैंने बस इतना किया कि फटाफट इसका हिन्दी तर्ज़ुमा किया ताकि आप के साथ इसे बांट सकूं. कहानी सच्ची है या नहीं, इस से क्या फ़र्क पड़ता है.)

8 comments:

कुश said...

बहुत बढ़िया किस्सा रहा... :)

Vineeta Yashsavi said...

बहुत मज़ेदार किस्सा है.

Vineeta Yashsavi said...

और हां ये वान गॉग की किताब से आपने जो उद्धरण लगाया है ऊपर, वह बहुत अच्छा है.

शोभा said...

बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

Arun Arora said...

मतलब पंगे तो ले पर सोच समझ कर :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

बिचारा ए. शार्लोट कंट्रेक्ट का कानून तो जानता था अपराध का नहीं। फँस गया। वह क्रिमिनल लॉयर नहीं था।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

यानी बीमा कंपनी वाले वकील साहब के भी बाप निकले। ...इसे कहते हैं शेर के सवा शेर।

महेन said...

पढ़ा था इस बारे में। किस्सा मज़ेदार है और ये भी साबित करता है कि हर एक का बाप कहीं न कहीं बैठा है।