Tuesday, August 5, 2008

धूप पहले से कहीं अधिक सुनहरी है , बर्फ़ पहले से कहीं अधिक धवल


पहले कविता संग्रह ' इसी दुनिया में ' (१९९१) के बाद वीरेन डंगवाल का दूसरा संग्रह ' दुश्चक्र में स्रष्टा ' लगभग एक दशक बाद २००२ में आया। तीसरा संग्रह कब आएगा यह तो कवि को ही पता होगा लेकिन देश और दुनिया में फ़ैले कविता के तमाम सजग पाठक पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उनकी बहुत-सी ऐसी कवितायें पढ़ चुके हैं जो दोनो संग्रहों के बाद की हैं. अब जब कि 'मसि कागद' के अलावा वर्चुअल स्पेस पर भी कविता की गंभीर और गझिन उपस्थिति है और वह लगतार व्यापक होती जा रही है तब यह कहना अतिशयोक्ति एवं अतिरंजना न होगी कि इन दोनो ही दुनियावों में वीरेन डंगवाल सबसे अधिक पढ़ेजाने वाले, पसंद किए जाने वाले और उधृत ' किए जाने वाले कवि हैं।
पहले संग्रह में 'पोथी पतरा ज्ञान कपट से बहुत बड़े मानव' को 'संस्कृति के दर्पण में मुस्काती शक्लों' की असल समझने' और 'बेआवाज जबड़े को सभ्यता मानने वाले दुनिया के सबसे खतरनाक खाऊ लोगों' से जीवन का सत्त बचाए रखने के पक्ष में 'भाषा के रस्से के सहारे' चुस्त और चौकस खड़ा दिखाई देता यह दूसरे संग्रह तक आते-आते यह स्पष्ट देख रहा है कि 'हर तरफ़ छत्ता है काली बर्रों का'। कवि को बार-बार निराला याद आते हैं-'आतंक सरीखी बिछी हुई हर ओर बर्फ़ और अंधकार उगलते आकाश ' की व्याप्ति में उसे यकीन है 'चूहे आखिर चूहे ही हैं, वे जीवन की गरिमा को नष्ट नहीं कर पायेंगे' और ' उजले दिन जरूर आयेंगे'.

वीरेन जी को ' इसी दुनिया में ' के लिये रघुवीर सहाय स्मति पुरस्कार और ' दुश्चक्र में स्रष्टा ' के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से नवाजा गया. साहित्य अकादेमी के सम्मान अवसर पर उन्होंने जो वक्तव्य दिया वह ' मैं कवि हूं, पाया है प्रकाश' शीर्षक से 'पहल - ७९' में प्रकाशित है. इस वक्त्व्य में अपनी किताब को ' साहित्य के लोक से दूर एक अत्यंत सधारण जीवन बिताने वाली कवि की किताब का वह अंश प्रस्तुत है जिसमें वह अपनी ' कवि पीढ़ी' के नजरिये को स्पष्ट और उजागर करते हैं -

' हम ' की शैली अपनाई

हमारी कवि पीढी एक मायने में भारतीय इतिहास के सर्वाधिक विरोधाभासी, विचित्र और दारुण अनुभवों से गुजरने वाली पीढी है. हमने स्वतंत्रतता के निहायत सपनीले, उल्लस भरे दौर देखे. उन स्वप्नों का निर्दयता से रौंदा जाना देखा. वह आदमी को झनझना देने वाले तेजस्वी विचारों से रू-ब-रू हुई. उसने महान आन्दोलन देखे और फ़िर घनघोर अवसाद के साथ बुलंद इमारतों का धराशाई होना भी देखा. देखा कि आततायी कैसे तरह - तरह के बाने धर हमारे महादेश ही नहीं, पूरे विश्व की छाती पर लोत लगा रहे हैं, और किस तरह प्रजातंत्र का मुखौटा लगाए घुड़सवार हत्यारे दहलीज तक आन पहुंचे हैं. इतिहास के इस दुर्दांत दौर से गुजरती हुई हमारी ही कवि पीढ़ी थी, जिसने इस सबके बीच भी प्रेम, प्रतिबद्धता और प्रतिरोध की अपनी टेक को छोड़ा नहीं. और इसी सबके बीच उसने अपने उन उस्ताद कवियों को भी पुनर्आविष्कृत किया जिनके हाथ - पैर काटकर कलावंतों ने या तो कूड़ेदान में डाल दिया था, या खंडित प्रतिमाओं की तरह अपने घरों में सजा रखा था. किंचित आत्मगौरव के साथ मैं इसे रेखांकित करता हूं कि शायद व्यव्स्थित तरीके से पहली बार हिन्दी कविता की इसी पीढ़ी ने देश विदेश की अपनी काव्य और विचार परंपरा को साफ़ साफ़ चिन्हित किया, उसे सर माथे से लगाया , और उसकी मदद लेते हुए आगे बढ़ने की राहें तलाश कीं. यहां मेरा यह 'हम' अपनी पीढी़ के उस अनिवार्यत: बिरादराना और समूहवादी चरित्र को बुलंद करने की कोशिश है जिसमें रचनाकारों की अनेकश: बहुविध छटायें थीं, और जिसने सोच समझकर ' हम ' की शैली अपनाई.

बधाई !

आज ५ अगस्त को हमारे समय के इस महत्वपूर्ण कवि का जन्मदिन है .बधाई ! आज ही के दिन १९४७ में टिहरी गढ़वाल कीर्तिनगर में जन्मे श्री वीरेन डंगवाल आज इकसठ बरस के हो गये. वह दीर्घायु हों, स्वस्थ -सानंद रहें , निरंतर रचते रहें और देश-दुनिया-जहान में मौजूद तमाम पाठकों-प्रशंसकों की दुआयें उन्हें लगती रहें. 'कबाड़खाना' को इस बात का फ़ख्र है कि आप, आप ही के शब्दों में 'अपने ही जन' हैं . बधाई और जन्मदिन मुबारक !!

9 comments:

मुनीश ( munish ) said...

Happy B'day ! please convey my regards to the Bard ,hey blogvani ke Leopard!

Ashok Pande said...

चच्चा को हैप्पी बड्डे!

Geet Chaturvedi said...

वीरेन दा को जन्‍मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मेरी भी शुभकामना
अंतर्मन से.
================
डा.चन्द्रकुमार जैन

Hari Joshi said...

बधाई। कबाड़खाने में पड़ी फोटो के दर्शन कर बगीचा बगीचा हो जाता है दिल।

Ek ziddi dhun said...

vo shandaar kavi hain par usse bhi shaandaaar baat ye ki ve nira kavita kee hi duniya mein nahi rahte balki zindagi kee sachhaiyon ke beech rahte hain. aankhe khole, jeevat ke saath. unkee kavitaayen bhi to vahan unke saath rahtee hain

ravindra vyas said...

वीरेन डंगवालजी को बधाई और शुभकामनाएं।

Udan Tashtari said...

जन्‍मदिन की शुभकामनाएं और बधाई.

Vineeta Yashsavi said...

वीरेनदा को जन्मदिन की बधाई.