Tuesday, August 26, 2008

हरित दुति होय' उर्फ नये कबाड़ी रवीन्द्र व्यास का ( एक बार और ) स्वागत !


मौला करे गरीब की खेती हरी रहे,
संदल से मांग बच्चों से गोदी भरी रहे....

एक लंबे अंतराल के बाद किसी नए कबाड़ी की आमद हुई है। इंदौर में रहने वाले पत्रकार,कथाकर और चित्रकार रवीन्द्र व्यास 'कबाड़खाना' से जुड़ चुके हैं , मुझे तो यह बात कल शाम को पता चली जब हमारे मुखिया अशोक पांडे ने फोन किया और कहा कि सारे कबाड़ियों की ओर से मैं नए कबाड़ी के स्वागत में 'चार लाइनां' लिखूं. एकाध दिन देर ही सही लेकिन यह निश्चित रूप से हम सब के लिये हर्ष और सम्मान का विषय है कि रवीन्द्र व्यास के आने से यह ब्लाग समृद्ध होगा. उनकी कलम और कूची की करीगरी से अधिकाश लोग परिचित होंगे. मैं व्यकिगत रूप से उनके 'वेबदुनिया' वाले आलेखों की भाषा और भाव (प्रवणता) का मुरीद हूं. उनके चित्रों का एक मुजाहिरा हम सब फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविता वाली पोस्ट में देख चुके हैं. 'उनका एकदम नया ब्लॉग 'हरा कोना' अपने नाम से ही जाहिर करता है कि हरे रंग से इस शख़्स को प्यार होना चाहिये.'

यह जो हरा है
इसी में जीवन भरा है !
इसी में है उजास
इसी से नभ है, धरा है !!

प्यारे भाई रविन्द्र व्यास, 'कबाड़खाना' में आपका स्वागत है ! खुश आमदीद !! आपके आने से यहां 'हरियाली' तो रहेगी ही 'रास्ता' भी सहल हो जाएगा। दोस्त ! आपकी ही लिखी एक पोस्ट और आपका ही बनाया एक चित्र बेहद प्यार और आभार के साथ आप के लिए और सब के लिए प्रस्तुत है -

मैं आज गिलहरी के मरने की खबर बनाता हूं / रविन्द्र व्यास

सुबह की खिली और नर्म धूप में उस सड़क पर घूमना किसी दहशत और आंतक से रूबरू होना है। शहर के आखिर में बनी एक नई कॉलोनी में जहां मैं रहता हूं, वहां एक चिकनी सड़क बन गई है जो तीन-चार किलोमीटर दूर इस इलाके को एबी रोड से जोड़ती है। मेरे घर के सामने सिर्फ एक प्लॉट छोड़कर ही अब भी खेतों में फसलें लहलहाती हैं और बारिश में पेड़ नाचते हुए अपने भरे-पूरे हरेपन में इतराते रहते हैं। इनमें पांच गुलमोहर के पेड़ भी हैं और भरी दोपहर में इनकी नाजुक-लचकती बांहों पर अंगारे की तरह फूलों के गुच्छे हवा में झूलते रहते हैं। मैं इन्हें जब भी देखता हूं मुझे राहत और हिम्मत भी मिलती है। इन पेड़ों में कुछ की लचकती शाखें काट डाली गई हैं क्योंकि वे आते-जाते वाहनों की गति में आड़े आती थीं। खेतों के पीछे जो खेत हैं, सुना है वे बिक चुके हैं और वहां एक बड़ा मॉल बनने की तैयारी है।

मैं डायबिटीक हूं और मेरे डॉक्टर ने कहा है कि आप अपनी ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं कर पाएंगे तो आपको इंसुलिन लेना पड़ेगी। तो मैं रोज चार किलोमीटर पैदल घूमता हूं। तो सुबह की खिली और नर्म धूप में जब इस सड़क पर चलता हूं तो रोज मेरा मौत से सामना होता है। इस सड़क पर किसी सुबह कोई चूहा मरा मिलता है, तो किसी सुबह गिरगिट। किसी सुबह बिल्ली मरी मिलती है। आज सुबह एक कुचली हुई, मरी हुई गिलहरी मिली। ये सब पानी के टैंकरों (जिनमें तालाबों और नदियों का पानी है) औऱ ट्रकों(जिनमें सूख चुकी नदियों की रेत भरी है), नई चमचमाती कारों, ट्रेक्टरों, स्कूल और कॉलेज की बसों से कुचले जाकर मारे जा रहे हैं।

मैं बारिश का बेसब्री से इंतजार करता हूं। बारिश में ही मुझे पहली बार एक लड़की से प्रेम हुआ, बारिश में ही मैंने उसे पहली बार चूमा, बारिश में ही वह मुझसे बिछड़ी, बारिश में ही मुझे बेहतरीन दोस्त मिले और बारिश में ही उन्होंने दूसरे शहर जाते हुए मुझसे विदा ली, बारिश में ही मैंने अपनी पहली कहानी बारिश पर ही लिखी। बारिश बारिश बारिश...मैं मई में भी होता हूं तो मुझे जुलाई-अगस्त की रिमझिम सुनाई देती है। लेकिन कुचले गए इन प्यारे जीवों को इस सड़क पर मरा पाता हूं तो पहली बार बारिश का इंतजार एक दहशत में बदल जाता है। मैं जानता हूं जुलाई की किसी भीगी सुबह मुझे मेंढ़क मरे हुए मिलेंगे। विकास के नाम बनी एक सड़क के लिए किन किन को अपनी कुर्बानियां देना पड़ रही है। और इनकी किसी अखबार, किसी रेडियो, किसी टीवी में कहीं कोई खबर नहीं छपती। जो चीयर लीडर्स के हिलते नितंबों पर फिदा हैं उन्हें वे मुबारक, मैं गिलहरी के कुचलकर मर जाने को खबर बनाता हूं।

मेरे घर के सामने तो सिर्फ सड़क ही बनी ही है, जहां बांध बन रहे हैं वहां कितने हजारों लोगों को अपना जीवन कुर्बान करना पड़ रहा होगा, कितने कीट-पतंगों और जीव-जंतुओं को, कितने पेड़ों और पौधों को, कितने बीजों और फूलों को, और कितनी तितलियों को....

(आभार सहितः आलेख http://ravindra.mywebdunia.com से और चित्र http://ravindravyas.blogspot.com से)

(पुनश्च: मित्रों! इस पोस्ट को कल रात ही लग जाना चाहिए था लेकिन बिजली कल शाम के बाद अभी कुछ देर पहले ही आई है. आफ़लाइन में पोस्ट को तैयार करने बाद जब आनलाइन हुआ तो क्या देखता हूं कि नए कबाड़ी का स्वागत तो अशोक पांडे ने आज दोपहर में कर दिया, शायद्फ़ उन्होंने मेरे आलसीपने को भांपकर ऐसा किया होगा, चलो ठीक है. अशोक भय्ये, मैं आपका कहा टालता नहीं हूं परंतु बिजली भैनजी पर मेरा कोई बस ना है. अब यह पोस्ट बन गई तो गेर ही देता हूं .वसे भी दो बार 'सुआगत' करने में कुछ बिगड़ तो ना रिया हैगा !)

7 comments:

vipinkizindagi said...

बेहतरीन लिखा है आपने

PREETI BARTHWAL said...

बहुत खूब

संगीता पुरी said...

बहुत अच्छा।

Tarun said...

अति सुन्दर, सात में एक बार और स्वागत है आपका

महेन said...

हम भी सुआगत करे हैं लगे हाथों रवीन्द्र भाई का। और लगे हाथों हरा कोना भी टटोल लेवे हैं भाया।

Kirtish Bhatt said...

व्यास जी की सारी पोस्ट तो मैं नही पढ़ पाया लेकिन जो पढीं हैं उनमें "मैं आज गिलहरी के मरने की खबर बनाता हूं" मुझे खास पसंद है. व्यासजी को बधाई कबाड़खाना पर छाने के लिए. ..और कबाड़खाना को बधाई व्यासजी को लाने के लिए.

यारा said...

ravindra bhai ki khyati badh rahi hai ye sukhad hai....




badhai!!



awdhesh pratap singh
indore 98274 33575