कुछ आज शाम ही से है दिल भी बुझा-
बुझाकुछ शहर के चिराग़ भी मद्धम हैं दोस्तो
अपनी शायरी के जरिये ' गम-ए-दुनिया भी गम-ए-यार में शामिल कर लो ' का संदेसा देने वाले हमारे समय के इस हिस्से के सर्वाधिक मशहूर शायर अहमद फ़राज़ साहब ( १४ जनवरी १९३१ -२५ अगस्त २००८) अब इस दुनिया को अलविदा कहकर दूर, बहुत दूर अनंत यात्रा पर जा चुके हैं. अभी पिछले महीने ही यह उड़ती हुई -सी खबर आई थी कि वे नहीं रहे जो बाद में सही नहीं निकली .वे काफ़ी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. सोमवार की रात उनके पुत्र जनाब शिब्ली 'फ़राज़' के हवाले से जब उनके इंतकाल की खबर फ़ैली तो दुनिया भर में फ़ैले उनके असंख्य प्रशंसको को भरे मन से मान ही लेना पड़ा कि ' हंस तो उड़ गया'. याद है, उन्होंने स्वयं ही तो किसी जगह कहा है -
अबके हम बिछडे तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें .
अपनी शायरी के जरिये ' गम-ए-दुनिया भी गम-ए-यार में शामिल कर लो ' का संदेसा देने वाले हमारे समय के इस हिस्से के सर्वाधिक मशहूर शायर अहमद फ़राज़ साहब ( १४ जनवरी १९३१ -२५ अगस्त २००८) अब इस दुनिया को अलविदा कहकर दूर, बहुत दूर अनंत यात्रा पर जा चुके हैं. अभी पिछले महीने ही यह उड़ती हुई -सी खबर आई थी कि वे नहीं रहे जो बाद में सही नहीं निकली .वे काफ़ी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. सोमवार की रात उनके पुत्र जनाब शिब्ली 'फ़राज़' के हवाले से जब उनके इंतकाल की खबर फ़ैली तो दुनिया भर में फ़ैले उनके असंख्य प्रशंसको को भरे मन से मान ही लेना पड़ा कि ' हंस तो उड़ गया'. याद है, उन्होंने स्वयं ही तो किसी जगह कहा है -
अबके हम बिछडे तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें .
'फ़राज़' तखल्लुस धारण कर उर्दू की आधुनिक शायरी को नई दृष्टि और दिशा देने वाले इस महान कवि का वास्तविक नाम सैयद अहमद शाह था. एक समय अपने मुल्क पाकिस्तान सियासी हलचलों था अभिव्यक्ति की आजादी पर आयद पाबंदियों से तंग आकर उन्होंने लगभग तीनेक बरस के लिए खुद को आत्म निर्वासन के हवाले कर कनाडा और यूरोप में बिताया. बाद में पाकिस्तान आने पर 'पाकिस्तान बुक फ़ाउंडेशन' के अध्यक्ष की हैसियत से काम करते रहे. वर्ष 2004 में उन्हें पाकिस्तान का सबसे बड़ा सम्मान 'हिलाले-इम्तियाज़' दिया गया जिसे उन्होंने बाद में विरोध सहित वापस कर दिया.
फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी ,नही
मगर करार से दिन कट रहे हों यूं भी नही
साहित्यिक हलकों में अहमद फ़राज़ की तुलना इक़बाल और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जैसे बड़े शायरों से की जाती है. उनकी शायरी के एक दर्जन से ज्यादा संग्रह 'शहरे-सुख़न' शीर्षक से प्रकाशित हो चुके हैं. साथ ही प्रमुख कविताएं और गज़लें हिंदी में भी छपी हैं और समादृत हुई हैं. फ़राज़ की शायरी की तमाम खुसूसियातों से एक और यकीनन सबसे अधिक रेखांकित करने योग्य बात यह है कि पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू के अध्येता और अध्यापक रहे इस कवि ने निहायत सरल, सहल और सीधी-सच्ची आमफ़हम भाषा में अपने अशआर कहे हैं .संभवतः यह भी एक महत्वपूर्ण वजह रही है कि गजल गायकों के लिए वह सर्वाधिक प्रिय शायर रहे हैं. अगर और , बाकी सब छोड़ भी दें तो 'रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ' के कारण उनकी अमरता को कौन संगीतप्रेमी झुठला सकता है!
'कबाड़खाना' की ओर से फ़राज़ साहब को श्रद्धांजलि ! नमन!! प्रस्तुत है इस दिवंगत शायर के शब्द और स्वर का एक अंदाज -
फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी ,नही
मगर करार से दिन कट रहे हों यूं भी नही
साहित्यिक हलकों में अहमद फ़राज़ की तुलना इक़बाल और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जैसे बड़े शायरों से की जाती है. उनकी शायरी के एक दर्जन से ज्यादा संग्रह 'शहरे-सुख़न' शीर्षक से प्रकाशित हो चुके हैं. साथ ही प्रमुख कविताएं और गज़लें हिंदी में भी छपी हैं और समादृत हुई हैं. फ़राज़ की शायरी की तमाम खुसूसियातों से एक और यकीनन सबसे अधिक रेखांकित करने योग्य बात यह है कि पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू के अध्येता और अध्यापक रहे इस कवि ने निहायत सरल, सहल और सीधी-सच्ची आमफ़हम भाषा में अपने अशआर कहे हैं .संभवतः यह भी एक महत्वपूर्ण वजह रही है कि गजल गायकों के लिए वह सर्वाधिक प्रिय शायर रहे हैं. अगर और , बाकी सब छोड़ भी दें तो 'रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ' के कारण उनकी अमरता को कौन संगीतप्रेमी झुठला सकता है!
'कबाड़खाना' की ओर से फ़राज़ साहब को श्रद्धांजलि ! नमन!! प्रस्तुत है इस दिवंगत शायर के शब्द और स्वर का एक अंदाज -
9 comments:
एक बार फिर से तुम्हें सामने देखने और सुनने की चाह तो अब कभी पूरी न हो पायेगी, फिर भी "फ़राज़" अगर हो सके तो "थोडी दूर साथ चलो"| तुमने मुझे शायरी से वाबस्ता किया है, तुम्हें हर अशआर में जीना होगा|
शायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!
मेरी भी श्रद्धांजलि फ़राज़ साहब को...
वाह साहब. ये ख़ास पेशकश याद रहेगी.
"कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते
उस की वो जाने उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था
तुम फ़राज़ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते..."
इस दौर के अज़ीमतर शायरों में एक .... "फ़राज़" - तुम को सलाम !!!
श्रद्धांजलि !!!!
yh behad udas khabar hai...faraz na jane kitnon ke aziz the...
बेशक लाज़वाब है
फ़राज़ साहब....मेरी श्रद्धांजलि.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
फराज़ साहब की शायरी उन्हेँ हमारे दिलोँ
मेँ बसाये रखेगी -
हमारी विनम्र श्रध्धाँजलि उन्हेँ -
- लावण्या
फ़राज साहब को मेरी श्रद्धांजलि!
kai dino se na akhbaar dekhe, na tv aur na net. aaj-abhi faraj ke jaane ka pata chala. dukh hua
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