उत्तराखण्ड के सुदूर चम्पावत ज़िले में १९६९ को जन्मे हरि मृदुल बम्बई में मीडिया से जुड़े हुए हैं. उनका एक काव्य संग्रह 'सफ़ेदी में छुपा काला' अभी छप कर आया है. नामचीन्ह उर्दू कवि निदा फ़ाज़ली ने किताब की भूमिका लिखी है. वे लिखते हैं:
"सपाटबयानी में काव्यात्मकता जगाना बड़ी कारीगरी का काम है. हरि मृदुल ने ऐसे अनेक प्रयोगों से कविता को संभव बनाया है. इन कविताओं में जिस आदमी को प्रदर्शित किया गया है, उसके चित्रण में उन्होंने उन्हीं रंगों और वस्तुओं का इस्तेमाल किया है, जो आंखों से देखे हुए और पैरों से जाने हुए हैं. इनमें प्रतीक, विम्ब और संकेत कबीर के शब्द-संसार की याद दिलाते हैं और बाद में नागार्जुन और धूमिल की कविताओं तक पहुंचते हैं"
निदा फ़ाज़ली साहब के ऐसा कह चुकने के बाद क्या आप चाहेंगे कि मैं आपके और कवि के बीच बड़बड़ करता रहूं?
स्पॉट बॉय
स्पॉट बॉय ने फ़िल्म रिलीज़ के पहले दिन के
पहले शो का टिकट ख़रीद लिया
बड़े ग़ौर से निहारा हज़ारों किलोमीटर दूर
देश-विदेश की उन जगहों को
जो बड़ी बारीकी से अभी तक उसकी स्मृति में थीं
परदे पर एकदम अलग अन्दाज़ में उन्हें देखकर
वह थोड़ा विस्मित हुआ
लेकिन आश्चर्यचकिय कतई नहीं
उसे हीरोइन का दुःख देखकर ग्लिसरीन की एक बड़ी सी
शीशी याद आई
हीरो की बहादुरी देखकर नकली बन्दूक
हीरोइन के बाप का ग़ुस्सा देखकर निर्देशक की फूहड़ डांट
और हीरो के बाप का झुंझलाना देखकर प्रोड्यूसर का
बार-बार सिर पीटना
परदे पर बम विस्फोट और ख़ून ही ख़ून देखकर उसने
एक बार माथा ज़रूर पकड़ा
फिर बिना अगल-बग़ल बैठे लोगों की परवाह किए
अपनी सीट के नीचे थूक दिया
हीरो-हीरोइन की अदायगी पर उसका कोई ध्यान नहीं था
बल्कि संवाद, गाने या किसी ख़ास भाव-भंगिमा पर तालियां
बजते देख उसे बड़ी कोफ़्त हुई
अलबत्ता कुछ एक्स्ट्रा कलाकारों को उसने ख़ास तौर पर
देखना चाहा
जो कि हीरोइन के साथ लेकिन पीछे की तरफ़ नाची थीं
और उन्हें जो हीरो के हाथों पिटते-पिटते
सचमुच घायल हो गए थे
फ़िल्म ख़त्म होते-होते उसने परदे पर बड़ी सावधानी से
अपनी नज़र गड़ाई
तीन घंटे की अवधि में पहली बार उसके चेहरे पर
संतोष पाया गया
तेज़ी से सरकती कास्टिंग की पंक्तियों में
वह सुरक्षित था अपने साथियों के साथ
स्पॉट बॉयज़ - भोला, आसिफ़, नरोत्तम, जोसफ़, बब्बन
और नारिया उर्फ़ नारायण.
ओ अन्न देवता
ग़रीब के घर पैदा होकर
पड़े हुए हो अमीर के घर
ओ अन्न देवता! जरा बता
कैसा लगा तुम्हें यह सफ़र
सफ़ेदी में छुपा काला
मकड़ी का बुना जाला
गड़बड़ झाला गड़बड़ झाला
सफ़ेदी में छुपा काला
सबके मुंह पर ताला
('सफ़ेदी में छुपा काला' उद्भावना, ए-२१, झिलमिल इन्डस्ट्रियल एरिया, जी.टी. रोड, शाहदरा, दिल्ली -११००९५, द्वारा २००७ में छपी है. पुस्तक का मूल्य है रु. साठ)
12 comments:
आप आजकल हिंदी के विलक्षण नए कवियों कों जिस तरह कबाड़खाना में स्थान दे रहे हैं, वह प्रशंसातीत है !
मृदुल मेरी पसन्द के कवि हैं।
बधाई !
ग़रीब के घर पैदा होकर
पड़े हुए हो अमीर के घर
ओ अन्न देवता! जरा बता
कैसा लगा तुम्हें यह सफ़र
ये पंक्तियां साधारण नहीं हैं...लेखक ने बहुत गहरे में उतर कर ईसकी रचना की है..... ऐसी रचनाएं जब पढने में आती हैं तो लगता है कि ...हां यही है साहित्य और यही है उसका मर्म।
अच्छी रचना और उसकी पेशकश के लिए बधाई स्वीकारें।
कुछ कहना कुछ अधिक ही होगा। पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
वाह! क्या दृष्टि है आपकी। अद्भुत, बेजोड़... मजा आ गया।
हरि मृदुल की 'स्पॉट ब्वाय' विशेष तौर पर ध्यान खींचती है. शेष कवितायें भी बहुत अच्छी है. उन्हें कबाड़खाना में जगह देने के लिए आपका धन्यवाद!
अच्छी कविताएं. ख़ास तौर पर 'स्पॉट ब्वाय'. शुक्रिया.
आखिरी वाक्य में स्पॉट ब्वॉय को मिली संतुष्टि से पाठक को भी बहुत संतुष्टि हुई
आखिरी वाक्य में स्पॉट ब्वॉय को मिली संतुष्टि से पाठक को भी बहुत संतुष्टि हुई
अच्छी कविताएं. शिरीष भाई से सहमत. अच्छा काम है कबाड़ख़ाना का.
धन्य हो महाराज - इसी तरह सारे तिलिस्मों के ताले यहाँ खुलें [:-)] - मनीष
हरि मृदुल की कविताई
खूब भाई
अच्छी कविताएं. हैं। हरि मृदुल की कुछ और कविताएं यहां पढ़ें-
http://adityarun.blogspot.com/2008/06/blog-post_21.html
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