Tuesday, September 2, 2008

महायान बाइक और काली को पेप्सी का भोग



तवांग (अरूणाचल), १३ दिसंबर.

महायान संप्रदाय के जग-प्रसिद्ध मठ के म्यूजियम में सोने, चांदी से मढ़ी हुई नक्काशीदार मानवखोपड़िया रखी हैं, जिनमें तांत्रिक लामा कभी पूजा के दौरान मदिरा चढ़ाते थे। खोपड़ियां अब भी वही हैं लेकिन उनमें पेंडेन लमू (काली) को जनरल स्टोर से खरीदा पेप्सी या कोक अर्पित किया जाता है।

देशी दारू की जगह मल्टीनेशनल पेप्सी क्यों? बाइक पर सवार एक युवा लामा थोड़ी मौज में जवाब देता है- बौद्ध भी तो मल्टीनेशनल धर्म है, हर्ज क्या है।

तब अनायास लगा कि ग्यारह हजार फुट की बर्फीली ऊंचाई पर, इस लगभग निर्जन इलाके के बौद्ध मठों की जिंदगी कितनी तेजी से बदल रही है। अभी दो महीने पहले स्त्रियों के मठ (ग्यायांग अनि गोम्पा) में बीएसएनएल के मोबाइल फोन पहुंचे हैं। दूसरे मठों के मित्रों की खैर-खबर लेने के लिए भेजे गए उनके एसएमएस कई-कई दिन घाटियों की धुंध में झूलते रहते हैं।
ल्हासा (तिब्बत) के बाद तवांग दुनिया का सबसे पुराना महायान मठ है जिसे सत्रहवीं शताब्दी में मेरा लामा लोट्रे ग्यात्सी ने अपने घोड़े के कहने पर स्थापित किया था। तिब्बती में तवांग का अर्थ घोड़े द्वारा चुना गया स्थान होता है। तांत्रिक पीठ के रूप में इसकी दुनिया भर मे मान्यता है और सत्रह मठ सीधे इसके नियंत्रण में हैं।

ग्यारह साल पहले परमपावन दलाई लामा यहां आए तो थोड़े से युवा लामाओं ने उनसे पूछा था, भगवान बुद्ध ने जब मदिरा का निषेध कर दिया था तब पूजा में उसका प्रयोग क्यों? दलाई लामा ने व्यवस्था दी कि तंत्र में मदिरा के स्थान पर चायपत्ती के घोल, फलों के रस या पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन चलन पेप्सी का हो गया।

नए भिक्षुओं को पढ़ाने वाले लामा थोन्डू का कहना है कि कई पुराने तांत्रिक अब भी शराब का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन हमारी कोशिश इसे हतोत्साहित करने की है। सो पेप्सी का चलन शुरू किया गया है। याद रहे कि महायान संप्रदाय में माना जाता है कि तंत्र साधना से इसी जीवन में बुद्ध बना जा सकता है।

दूसरा बड़ा बदलाव मठों में केबिल कनेक्शन वाले टीवी का पहुंचना है। अब तक पुरातन इमारतों का सन्नाटा मंत्रोच्चार और आदमी की जांघ की हड्‍़डी से बने वाद्यों की आवाजों से टूटता था, अब लामा सीरियलों और खबरों पर खूब बात करते हैं। आजकल बाइक का एक विज्ञापन जिसका जिंगल हुड़ीबाबा है, हिट है। टीवी अपने साथ सालों लंबा चलने वाला शास्त्रार्थ लेकर आया। पुराने भिक्खुओं का कहना था कि औरत की अर्धनग्न देह और फिल्मों की अश्लीलता ब्रह्मचारियों को भ्रष्ट करेगी। युवाओं का कहना था कि जबरदस्ती होगी तो चोरी-छिपे कहीं और देखेंगे जिससे झूठ, अपराध बोध तमाम विकृतियां आएंगी। टीवी जीता, अंततः साधना के नीरस जीवन में रंगीनी दाखिल हो गई। अरूणाचल के सुदूर इलाकों में टीवी अब भी सबसे बड़ी बहस है।

टीवी से जरा पहले सवाल उठा कि लामाओं को राजनीति में जाना चाहिए या नहीं। इसी मठ से जु़ड़े, बुद्ध के अवतार समझे जाने वाले टीजी रिनपोछे पंद्रह साल पहले लुमला विधानसभा से चुनाव लड़े। मुकुट मिथि और गेंगांग अपांग दोनों की सरकारों में दल-बदल कर मंत्री हुए। पुरानों का कहना था कि राजनीति साधु को भ्रष्ट बनाएगी, नयों का कहना था कि जनसेवा का व्यावहारिक अवसर नहीं चूकना चाहिए। राममंदिर आंदोलन के बाद भाजपा के टिकट पर संसद पहुंचने वाले हिंदी पट्टी के कई साधु यहां रोल मॉडल के तौर पर पेश किए जाने लगे। इस मठ में तीन सौ से ज्यादा वोटर हैं और चुनावों के दौरान प्रत्याशी वहां धडल्ले से प्रचार करते हैं।

बाइक और मोबाइल संपन्न पृष्ठभूमि वाले सभी लामाओं के पास पहुंच रहे हैं। बौद्ध महोत्सव में उदित नारायण और जसपिंदर नरूला बुलाए जा रहे हैं। चकाचौंध से खिंचकर मठ छोडने वाले लामाओं की तादाद बढ़ी है लेकिन मठाधीश कतई चिंतित नहीं हैं। मोम्पा जनजाति में जिसके तीन बेटे हों, उसे बीच वाले को मठ को देना पड़ता है इसलिए आने वालों की भी कमी नहीं है।

3 comments:

अनामदास said...

आपने बता दिया,
हमने सुन लिया.
आपने कुछ नहीं कहा,
हम भी नहीं कहेंगे.

Ashok Pande said...

बहुत ज़बरदस्त रपट. ख़ुश आमदीद.

Ek ziddi dhun said...

hota yahi raha ki kab kis akhbaar mein kis dateline se Anil Yadav padhne ko mil jayen. Sochta hoon ki is waqt sehat nasaaj na hoti aur wo bihar ya Orissa hote to zyada sachhaian saamne aatee.n