Sunday, September 21, 2008

चंद्रकांत देवताले की कवितायें

मित्रो मैं देवताले जी स्त्री केंद्रित कविताओं के संचयन पर काम कर रहा हूँ, जो "एक सपना यह भी " नाम से २००९ के आरम्भ में प्रकाशित होगा। ये कवितायें उसी संचयन से। इस किताब को तैयार करना मेरे लिए एक अलग अनुभव रहा है , जिसे मैं किताब की भूमिका में आपके साथ बांटूंगा ........
औरत

वह औरत आकाश और पृथ्वी के बीच
कब से कपड़े पछीट रही है

पछीट रही है शताब्दियों से
धूप के तार पर सुखा रही है
वह औरत
आकाश और धूप और हवा से वंचित घुप्प गुफा में
कितना आटा गूंध रही है?
गूंध रही है मनों सेर आटा
असंख्य रोटियां सूरज की पीठ पर पका रही है

एक औरत दिशाओं के सूप में खेतों को फटक रही है
एक औरत वक़्त की नदी में दोपहर के पत्थर से
शताब्दियाँ हो गई, एड़ी घिस रही है

एक औरत अनन्त पृथ्वी को अपने स्तनों में समेटे
दूध के झरने बहा रही है
एक औरत अपने सिर पर घास का गट्ठर रखे कब से
धरती को नापती ही जा रही है

एक औरत अंधेरे में खर्राटे भरते हुए आदमी के पास
निर्वसन जागती शताब्दियों से सोई है

एक औरत का धड़ भीड़ में भटक रहा है
उसके हाथ अपना चेहरा ढूंढ रहे हैं
उसके पाँव जाने कब से सबसे अपना पता पूछ रहे हैं।


एक सपना यह भी

सुख से पुलकने से नहीं
रचने-खटने की थकान से सोई हुई है स्त्री

सोई हुई है जैसे उजड़कर गिरी सूखे पेड़ की टहनी
अब पड़ी पसर कर

मिलता जो सुख वह जागती अभी तक भी
महकती अंधेरे में फूल की तरह
या सोती भी होती तो होठों पर या भौंहों में
तैरता-अटका होता
हँसी - खुशी का एक टुकड़ा बचा-खुचा कोई

पढ़ते-लिखते बीच में जब भी नज़र पड़ती उस पर कभी
देख उसे खुश जैसा बिन कुछ सोचे
हँसना बिन आवाज़ में भी

नींद में हँसते देखना उसे मेरा एक सपना यह भी
पर वह तो
माथे की सिलवटें तक नहीं मिटा पाती
सोकर भी
000
कवि की तस्वीर अनुनाद से

10 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचनाएं प्रेषित की हैं।

Arun Aditya said...

देवताले जी मेरे भी प्रिय कवि हैं। आप बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। बधाई।

किरीट मन्दरियाल said...

नींद में हँसते देखना उसे मेरा एक सपना यह भी
पर वह तो
माथे की सिलवटें तक नहीं मिटा पाती
सोकर भी
000
एक औरत का धड़ भीड़ में भटक रहा है
उसके हाथ अपना चेहरा ढूंढ रहे हैं
उसके पाँव जाने कब से सबसे अपना पता पूछ रहे हैं।
000
इन कविताओं के लिए कवि को और प्रस्तुति के लिए आपको बधाई !

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अपना पता पूछती
एक अधूरी दुनिया पर
पूरी नज़र का सुबूत है यह पेशकश.
==========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

वर्षा said...

औरत को देखना और औरत होना दोनों ही जुदा चीजें हैं। कविताएं अच्छी हैं।

ravindra vyas said...

हिंदी के इस अप्रतिम कवि की कविताएं मुझे हर बार छूती हैं और खासकर वे कविताएं जो स्त्रियों पर हैं। यहां एक बार फिर पढ़ीं और इस कवि के भीतरी संसार से फिर फिर परिचय हुआ।

दीपा पाठक said...

शानदार, जानदार कविताएं। धन्यवाद।

siddheshwar singh said...

इस संकलन का इंतजार है!

Vineeta Yashsavi said...

kitab ke roop mai in kavitao ka basabri se intzaar hai.....

Vineeta Yashsavi said...
This comment has been removed by the author.