स्कूल की पढाई के दिनों में लगभग हम सभी ने 'विज्ञानः वरदान या अभिशाप' एवं 'विज्ञान के चमत्कार' जैसे विषयों पर निबंध अवश्य लिखा होगा।इसके प्रस्तावना,विषय-प्रवेश,लाभ-हानि, उपसंहार-निष्कर्ष जैसे शीर्षक-उपशीर्षकों पर अपनी कलम अवश्य चलाई होगी। रोज विज्ञान के नये चमत्कार होते रहते हैं. दुनिया में रोज नई-नई चीजें आती रहती हैं जो एक दिन स्वयं पुरानी पड़ जाती हैं-हमको अपना अभ्यस्त और आदी बनाकर एक और 'नये' के आगमन का रास्ता तैयार करती हुई. कंप्यूटर भी इन्हीं में से एक चीज हुआ करती 'थी'।
प्रश्नः क्या कंप्यूटर आपके लिए अथवा किसी और के लिए एक नया,अनजाना या अपरिचित शब्द है? एक ऐसा शब्द जिसे आप पहली बार सुन रहे हों,सुनकर चौंके हों या फिर सुनकर भी ध्यान देने योग्य न समझा हो?
उत्तरः नहीं।
* अमिताभ बच्चन से आज लगभग सभी परिचित हैं।यह कोई नया या अपरिचित नाम नहीं रह गया है।वह व्यक्ति भी, जो किसी भी रूप में साहित्य-संगीत-कला-सिनेमा से कोई वास्ता नहीं रखता उसके लिये भी यह नाम बहुपरिचित-सुपरिचित है.भला हो राजनीति की टीवी और टीवी की राजनीति का! आज अमिताभ बच्चन को मैं निजी तौर पर दो विशेष वजहों से याद कर रहा हूं-
१- आज से लगभग बीस-बाइस बरस पहले रिलीज हुई 'बच्चन रिसाइट्स बच्चन' नामक आडियो कैसेट के कारण,जो मुझे बहुत पसंद थी किंतु बाद में किसी 'कलाप्रेमी' ने पार कर दी।
२-त्रिमूर्ति फिल्म्स प्रा०लि० की फिल्म 'त्रिशूल' के कारण। ४ मई १९७८ को रिलीज हुई इस फिल्म के निर्देशक यश चोपड़ा थे और लेखक जावेद अख्तर। १६७ मिनट की इस फिल्म का अधिकांश हिस्सा अमिताभ अभिनीत एंग्री यंग मैन 'विजय' नामक चरित्र के इर्द-गिर्द घूमता है.फिल्म मे अमिताभ के अतिरिक्त संजीव कुमार,शशि कपूर,वहीदा रहमान,हेमा मालिनी, राखी गुलजार,प्रेम चोपड़ा,पूनम ढिल्लों,मनमोहन कृष्ण,सचिन, इफ्तेखार,यूनुस परवेज,गीता सिद्धार्थ आदि कलाकारों ने भी काम किया है....लेकिन मेरी निजी राय में इस फिल्म में एक कलाकार और है जिसका क्रेडिट्स में कहीं उल्लेख नहीं हुआ है.वह महत्वपूर्ण कलाकार है कंप्यूटर! जी हां, 'कौन बनेगा करोड़पति' के अमिताभ जी के वही 'कंप्यूटर जी' और बाद में अपने शाहरुख भाई के 'कंप्यूटर साईं' आदि-इत्यादि.आज यत्र-तत्र-सर्वत्र विद्यमान वही कंप्यूटर जो मेरे लिये ,आपके लिये ,किसी के लिये भी अनजाना, अनचीन्हा, अपरिचित नहीं रह रह गया है. लेखन और पत्रकारिता का अभिनव अवतार यह ब्लाग भी तो इसी कंप्यूटर का तिलस्म है, माया है,मोह है ,मोक्ष है!
* मेरी अभी तक की जानकारी के अनुसार,हिन्दी सिनेमा में पहली बार कंप्यूटर शब्द का उल्लेख फिल्म त्रिशूल में हुआ था। विदेश से पढ़कर लौटा युवा उद्यमी शेखर गुप्ता(शशि कपूर)अपने दफ्तर में काम करने वाली युवती गीता(राखी) को जब कई दफा कंप्यूटर और मिस कंप्यूटर कहकर संबोधित करता है तो वह एक दिन कुछ खीझकर पछती है कि तुम मुझे बार-बार कंप्यूटर-कंप्यूटर क्यों कहते हो? उत्तर में नायक बड़े उत्साह से बताता है कि विदेशों में एक ऐसी मशीन आई है जो बेहद जल्दी और फुर्ती से बिना कोई गलती किये जोड़-घटाव-टाइपिंग जैसे काम चुटकियों में निपटा देती है,वह भी बिना थके.मेरी अभी तक की जानकारी में यह हिन्दी सिनेमा के कथ्य में कंप्यूटर के उल्लेख की पहली आहट या धमक थी.यह १९७८ और उसके आसपास के समय की बात है .याद करने की कोशिश करें कि उस वक्त हमारे आसपास कितना और किस तरह का कंप्यूटर था तथा उससे हमारी कितनी और किस तरह की जान-पहचान थी? वह हमारे लिये कितना नया-पुराना ,परिचित-अपरिचित था? आज जो परिदृश्य है वह सामने है ,कंप्यूटर की ताकत और तिलस्म को बच्चा-बच्चा जानता है।
* काफी लंबे समय से हिन्दी सिनेमा को देखने-परखने-पढ़ने के अपने अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकने की स्थिति में हूं कि हिन्दी सिनेमा की कथा-पटकथा-संवाद-गीत में तकनीक के उल्लेख के सिलसिले पर गंभीरता से पड़ताल किया जाना चाहिए। मैं सिनेमा के तकनीकी पक्ष की नहीं बल्कि लेखकीय पक्ष की बात कर रहा हूं।ऐसी पड़ताल का अर्थ केवल 'मेरे पिया गए रंगून,किया है वहां से टेलीफून' की अनुक्रमणिका निर्माण मात्र नहीं बल्कि तकनीक के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक रिश्ते के उत्स और उल्लेख का उत्खनन जरूरी नुक्ता नजर आता है.यदि इस तरह का काम हुआ है या हो रहा है तो यह मेरी अनभिज्ञता है कि मुझे उसकी जानकारी नहीं है और यदि नहीं हुआ है तो होना जरूरी है.जैसा कि ऊपर कहा गया है कि तकनीक की ताकत और तिलस्म को आज बच्चा-बच्चा जानता है।
* हिन्दी ब्लाग के उद्भव,विकास,परंपरा,प्रयोग और प्रासंगिकता के सवाल पर ब्लाग-संसार में बहुत कुछ लिखा गया है और निरंतर लिखा जा रहा है।अभी कुछ समय पहले तक इससे हमारी पहचान भी लगभग वैसी ही थी जैसी कि १९७८ कुछ-कुछ त्रिशूल में दिखाई देती है.हिन्दी ब्लाग से जुड़े हम लोगों को एक बड़ी हिन्दी भाषी जमात को ब्लाग के बारे में वैसे ही बताना है जैसे शशि कपूर ने राखी को बताया था,संभवतः उससे कुछ आगे बढ़कर भी।
10 comments:
भई अच्छे, बहुत अच्छे!
आपका विश्लेषण दुरस्त है भाई।
कम से कम हम तो इस तथ्य को चुनौती देने की हालत में नहीं है। अगर किसी अन्य ने भी इसे चुनोती नहीं दी तो हम स्वीकार कर लेंगे कि तथ्य सही है। (हमारे विश्वविद्यालयी शोध में यही विधि अपनाई जाती है)
अच्छा विश्लेषण ..
हिन्दी ब्लाग से जुड़े हम लोगों को एक बड़ी हिन्दी भाषी जमात को ब्लाग के बारे में वैसे ही बताना है जैसे शशि कपूर ने राखी को बताया था,संभवतः उससे कुछ आगे बढ़कर भी।
बहुत सही सिद्धेश्वर जी
I CAN STILL RECALL THAT SCENE FROM TRISHUL. U R ABSOLUTELY RIGHT SIR.
I FONDLY REMEBER THIS FILM FOR ITS CLIMAX SHOT AT DELHI'S PRAGATI MAIDAN
. THERE WAS CONNAUGHT PLACE OF MID SEVENTIES AS WELL ,BESIDES A PASSING REFERENCE TO NEIGHBOURING HARYANVI TOWN FARIDABAD. IT HAS A GREAT STARCAST AND LOVELY MUSIC....MAUSAM MAUSAM ...LOVELY MAUSAM ...U REMEMBER THAT? I KNOW ASHOK BHAI IS NOT IMPRESSED BY BACHCHAN'S HISTRIONICS , BUT I REQUEST HIM TO TRY THIS COMMERCIAL MASALA STUFF ...ALONG WITH A CUP OF 'SAAN' MAY BE!
parne mai bahut maza aaya
क्या लिखा है। भाई जरा अपना हाथ देना। पुच्ची लेनी है।
आपने बहुत सही कहा है कि हिन्दी सिनेमा की कथा-पटकथा-संवाद-गीत में तकनीक के उल्लेख के सिलसिले की गंभीरता से पड़ताल होनी चाहिए।
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