ब्रजेश्वर मदान साहेब की एक कविता आप लोग पहले भी कबाड़खाने पर पढ़ चुके हैं। कविता संग्रह जल्द ही छपकर आने वाली है। आज फ़िर उन्होंने एक कविता कबाड़खाने के पाठकों को समक्ष पेश की है। यह कविता सात सितम्बर को किसी खास के लिए जन्मदिन पर लिखी थी। ... विनीत उत्पल
तुम्हारे जन्म दिन पर
हरी है
उस क्षणों की याद
हरी मिर्च की तरह
जब दोपहर
रेस्तरां में
तुम्हारे साथ
खाना खाते
अपने खाने की थाली से
हरी मिर्च उठाकर
रख देता था
तुम्हारी थाली में
तब नहीं
लगता था
की एक हरी मिर्च
के बिना
खाने की पूरी थाली
भी लग सकती है खाली
हो सकती है
एक मिर्च में भी
दुनिया भर की
हरियाली।
ब्रजेश्वर मदान
4 comments:
कविता मिर्च की
उपयोगिता दर्शा
गई
थाली में हरी मिर्च
देखो आ गई
हरी मिर्च
चाहे हो तीखी
पर भा गई
hari mirch.....
achchi post..
अगर मिर्च में होती लाली
तो भी थाली
नहीं लगती खाली
और जब मिर्च है सिर्फ़ हरी
तो भी थाली
लगती है उतनी ही भरी।
मदान सा'ब दा जवाब नहीं।।
मैदान में आए ब्रज के ईश्वर।
मिर्च
सी-सी
पानी किधऱ।
लो एक गिलास कविता पियो।
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