Friday, October 3, 2008

क्या तुम्हें इस धरती पर अब भी खोजा जा सकता है



रूसी साहित्य पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाली अन्ना अख़्मातोवा की एक कविता आप ने परसों कबाड़ख़ाने में पढ़ी थी. मैंने वायदा किया था कि अन्ना की और कविताएं यहां पेश करूंगा.

अन्ना अख़्मातोवा (जून ११, १८८९ - मार्च ५, १९६६) का काव्य-संसार समय, स्मृति, रचनात्मक स्त्री की नियति और स्टालिन के खौफ़नाक युग से जुड़ी कई विषयवस्तुओं से मुख़ातिब है. 'शोकगीत' नामक महाकाव्यात्मक रचना स्टालिन के कहर का आधिकारिक दस्तावेज़ गिना जाता है.

अख्मातोवा के माता-पिता १९०५ में अलग हो गये थे. त्सारस्को सेलो में उनकी शिक्षा हुई जहां उन्हें उनके भविष्य के जीवनसाथी निकोलाई गुमिल्योव ने मिलना था. अन्ना ने बचपन से की कविता लिखना शुरू कर दिया था - पुश्किन, रेसीन और बरातिन्स्की उनके प्रिय कवि थे.

बहुत सारे रूसी कवियों ने अन्ना के प्रति अपने प्रेम का इज़हार किया. अन्ना ने १९१० में कवि निकोलाई गुमिल्योव से शादी कर ली. निकोलाई गुमिल्योव जल्द ही शेरों के शिकार के एक अभियान पर अफ़्रीका चल दिए. निकोलाई गुमिल्योव ने अन्ना की कविता को कभी भी गम्भीरता से नहीं लिया. बाद में रूस में तत्कालीन जीवित महानतम कवि अलैक्सान्द्र ब्लोक द्वारा सार्वजनिक घोषणा किये जाने पर वह अन्ना की कविताओं को अपनी रचनाओं से कहीं आगे का मानता है, गुमिल्योव को 'सदमा' लगा था.

१९१२ में अन्ना के पहले पुत्र लेव का जन्म हुआ और 'शाम' शीर्षक से पहला संग्रह भी आया. पाठकों को इस संग्रह में रॉबर्ट ब्राउनिंग और टॉमस हार्डी के रंग नज़र आए.

१९१४ में उनका दूसरा संग्रह आया. तब तक हज़ारों रूसी स्त्रियां "अन्ना की इज़्ज़त में" कविताएं रच रही थीं. अन्ना की तब तक की कविताओं में अपने संबंध के बेहद जटिल बिन्दु पर पहुंचे स्त्री-पुरुष की थीम हुआ करती थी.

अपने उच्चवर्गीय तौर तरीकों के चलते अन्ना को "नेवा की महारानी" और "रजत युग की आत्मा" जैसे विशेषणों से नवाज़ा गया. इस स्वर्णिम काल को बहुत साल बाद अन्ना ने अपनी सबसे लम्बी रचना 'पोयम विदाउट अ हीरो' में याद किया है.
गुमिल्योव को सोवियत-विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने के आरोप में फांसी पर लटका दिया गया. बाद में अन्ना ने दो विवाह किए. स्टालिन के गुलाग-शिविरों में इन में से दूसरे पति कला-विशेषज्ञ निकोलाई पुनिन की मौत के बाद अन्ना ने बोरिस पास्तरनाक के कई प्रेम-प्रस्ताव ठुकराए.

१९२२ में अख़्मातोवा को बूर्ज़्वा घोषित कर दिया गया और १९४० तक उनकी रचनाओं पर प्रतिबन्ध लगा. पश्चिम में बहुत कम लोगों को यकीन था कि अन्ना जीवित बची हैं. पर १९४० में उन्हें एक नया काव्य-संग्रह छपाने की इजाज़त दे दी गई.
१९४६ में लातवियाई दार्शनिक इसाइयाह बर्लिन द्वारा अन्ना अख़्मातोवा से मुलाकात किये जाने की ख़बर सुनकर स्टालिन के सांस्कृतिक सलाहकार आन्द्रेई ज़्दानोव ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि अन्ना "अर्श वैश्या और अर्ध भिक्षुणी" है. इस के बाद अन्ना की कविताओं पर दुबारा प्रतिबन्ध लगा दिया गया और लेखक संघ से उसके निष्कासन का प्रयास किया गया जो मृत्युदण्ड के बराबर माना जाता था. अन्ना का बेटा यंत्रणा-शिविरों में सड़ रहा था जिसे मुक्त कराने को अन्ना ने स्टालिन की तारीफ़ तक में कविताएं लिखीं.

आधिकारिक प्रतिबन्ध के बावजूद अन्ना का काम और नाम रूस भर में फैलता रहा और उन्हें रूसी संस्कृति की धरोहर का पहरेदार माना जाने लगा था.

स्टालिन की मौत के बाद १९६४ में अन्ना की ७५वीं वर्षगांठ पर उनकी समग्र रचनाएं प्रकाशित हुईं. इसके बाद उन्हें कई यूरोपीय सम्मान दिये गए. ७६ की आयु में सेन्ट पीटर्सबर्ग में उनकी मृत्यु हुई.

आज अन्ना विश्व साहित्य का विशिष्ट नाम हैं. उनके नाम पर संग्रहालय बने हुए हैं. १९८२ में सोवियत अंतरिक्षयात्री लुडमिला ज्योर्जियाना द्वारा खोजे गए एक सुदूर ग्रह का नाम ३०६७ अख्मातोवा रखा गया.

पेश हैं अन्ना की दो छोटी कविताएं.:


आर्मेनिया के लिए

काली भेड़ की तरह आऊंगी मैं तुम्हारे सपनों में
अपनी कमज़ोर टांगों पर
मैं तुम तक आ कर पूछना शुरू करूंगी:
"बादशाह सलामत! क्या आपने लज़ीज़ भोजन किया?
मोती की तरह जकड़े हुए हैं आप ब्रह्माण्ड को
आपको नसीब हुआ अल्लाह का दैवीय आशीर्वाद ...
क्या स्वादिष्ट था मेरा बच्चा?
क्या वह खुश कर पाया आपको? क्या वह
आपके बच्चे को खुश कर पाया?"

मैं नहीं जानती

मैं नहीं जानती तुम जीवित हो या मर चुके
यह भी नहीं कि क्या तुम्हें इस धरती पर अब भी खोजा जा सकता है
या क्या उस वक़्त जब सूरज डूब जाता है
मुझे गम्भीरतापूर्वक तुम्हारा शोक मनाना चाहिये?

तुम्हारे वास्ते है सब कुछ - नित्य की प्रार्थना
रातों की निद्राहीन गर्मी
और मेरी कविताओं का सफ़ेद रेवड़
और मेरी आंखों में नीली आग

इतना प्रिय कोई नहीं था मुझे, इतनी पीड़ा भी नहीं दी
मुझे किसी ने, उसने भी नहीं
जिसने यातना देने को मुझे धोख़ा दिया
उसने तक नहीं जिसने मुझे दुलार दिया और भूल गया.

(अन्ना की कुछेक और कविताएं जल्दी ही और पढ़वाऊंगा आपको)

2 comments:

anurag vats said...

अख़्मातोवा ko aur jana...kavitayen,khaskar doosri bahut achhi utari hai anuwad men bhi...

ravindra vyas said...

इतना प्रिय कोई नहीं था मुझे, इतनी पीड़ा भी नहीं दी
मुझे किसी ने, उसने भी नहीं
जिसने यातना देने को मुझे धोख़ा दिया
उसने तक नहीं जिसने मुझे दुलार दिया और भूल गया.

अशोकभाई, क्या क्या छिपाए बैठे थे, एक बार हमारी खातिर उस अंधेरे में उतर कर इस तरह की कविताअों में फूटती रोशनी लाते रहो। बढ़िया अनुवाद है।