Friday, October 10, 2008

कोई कितनी दफ़ा मर सकता है प्रेम के कारण



हालीना पोस्वियातोव्स्का की एक कविता कई महीने पहले यहां लगाई थी. इधर अन्ना अख़्मातोवा की कविताओं से आकंठ उद्वेलित रहते हुए मेरी निगाह मारीना स्वेतायेवा और हालीना पोस्वियातोव्स्का के अनुवादों पर अटकती रही. अब जब कि हालीना के अनुवादों की किताब अगले साल विश्व पुस्तक मेले में आने को है, मुझे लगा कि इस कवयित्री से कबाड़ख़ाने के पाठकों का परिचय ज़रूर करवाना चाहिये.

पोलैण्ड की रहने वाली हालीना (१९३४-१९६७) को बचपन में टीबी हो गई. वह स्कूल नहीं जा सकी. मां के साथ सैनिटोरियमों के चक्कर लगाते लगाते एक बार उस की मुलाकात अडोल्फ़ नामक एक फ़िल्म-निर्देशन के छात्र से हुई. हालीना तब बीस की थी. अडोल्फ़ चौबीस का. टीबी अडोल्फ़ को भी थी. सारी चेतावनियों के बावजूद दोनों ने शादी कर ली. दो साल बाद अडोल्फ़ हालीना को अकेला छोड़ चल बसा.

इधर हालीना का स्वास्थ्य इस कदर बिगड़ा कि पोलैण्ड के चिकित्सकों ने उसे अमेरिका ले जाने की राय दी. पर पैसा कहां से आता. उसकी कविताएं तब तक छपनी शुरू हो चुकी थीं और वह पोलिश पाठकों की चहेती बन चुकी थी. पोलैण्ड के महाकवि चेस्वाव मिवोश और ताद्यूश रूज़ेविच के प्रयासों से उसके इलाज का खर्च निकल आया.

अमरीका में पहला ऑपरेशन सफल रहा. सभी को चौंकाते हुए हालीना ने अमरीका रहकर कुछ साल दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने का फ़ैसला लिया. फिर वह पोलैण्ड लौटी और विश्वविद्यालय में बाकायदा पढ़ाने लगी. लेकिन १९६७ में हुए दूसरे ऑपरेशन के दौरान मात्र ३३ साल की अवस्था में हालीना पोस्वियातोव्स्का की मौत हो गई.

तब तक उसके तीन कविता-संग्रह आ चुके थे. १९६८ में एक संग्रह और आया. उसे प्रेम-कविताओं के कारण ख्याति मिली. पोलिश साहित्य में पहली बार किसी स्त्री ने दैहिक प्रेम और अपनी ऐन्द्रिकता को कविता का विषय बनाया था. उसे लगातार भान था कि कभी भी उसकी मृत्यु हो सकती है. यही वजह है कि उसकी कविता में उपस्थित प्रेम की उथल-पुथल के साथ मृत्यु के ठहराव का विकट सामंजस्य देखने को मिलता है.

मृत्यु के परे जाने जैसी किसी उम्मीद का सहारा वह नहीं लेती. सिर्फ़ प्रकृति है जो दूसरे रूप और आयाम धारण कर पाने में सक्षम होने के कारण ऐसा माद्दा रखती है. जब वह मृत अडोल्फ़ को याद करती है, वह उसे पेड़ों और प्रकृति की विपुलता में तलाशती है.

चेस्वाव मिवोश, विस्वावा शिम्बोर्स्का और ताद्यूश रूज़ेविच जैसे विश्वविख्यात कवियों के देश पोलैण्ड के साहित्यालोचकों ने हालीना को समुचित सम्मान देने में कृपणता बरती लेकिन आज की युवा पोलिश पीढ़ई के बीच उसे ज़बरदस्त लोकप्रियता हासिल है. इधर दसेक सालों से हालीना पर दुनिया भर में गम्भीर कार्य हो रहा है. प्रेम और अस्तित्ववाद के गहन ज्ञान और दुर्जेय साहस से भरपूर उस की कविताएं बार-बार उसे एमिली डिकिन्सन और अन्ना अख़्मातोवा के समकक्ष ला खड़ा करती हैं.

प्रस्तुत कर रहा हूं उसकी कुछ कविताओं के अनुवाद:


संसार से लड़ने को

संसार से लड़ने को
फ़क़त दो जबड़े थे उसके पास
दांतों से लैस फ़क़त दो जबड़े
और कुछ नहीं

दर्शनशास्त्र आख़िर कहां था उस वक़्त
कहां था अध्यात्म
सफ़ेद रंग पर किया जाने वाला यक़ीन कहां था

वह सिर्फ़ आदमी के हाथों पर विश्वास करता था
जो भोजन लेकर आते थे
और कभी-कभी मृत्यु भी

वह उतना ही कृतज्ञ था
-भोजन के प्रति
और मृत्यु के प्रति.

मेरी मृत्युएं

कोई कितनी दफ़ा मर सकता है प्रेम के कारण

पहली दफ़ा वह धरती का कड़ा स्वाद थी
कड़वा फूल
जलता हुआ सुर्ख़ कार्नेशन

दूसरी दफ़ा बस ख़ालीपन का स्वाद
सफ़ेद स्वाद
ठण्डकभरी हवा
खड़खड़ाते जाते पहियों की अनुगूंज

तीसरी दफ़ा, चौथी दफ़ा, पांचवीं दफ़ा
मेरी मृत्युएं कम अतिशयोक्त थीं
- अधिक नियमबद्ध
कमरे की चार औंधी दीवारें
और तुम्हारी आकृति मेरे ऊपर.

स्मृति पत्र

अगर तुम मर जाओगे
तो मैं नहीं पहनूंगी हल्की बैंगनी पोशाक
फुसफुसाती हवाओं से भरे रिबनों से बंधी
रंगीन कोई भी चीज़ नहीं
कुछ भी नहीं

घोड़ागाड़ी पहुंच जाएगी - पहुंचेगी ही
घोड़ागाड़ी चली जाएगी - जाएगी ही
मैं खिड़की से लगी खड़ी रहूंगी - देखती रहूंगी
हाथ हिलाऊंगी
रूमाल लहराऊंगी
उस खिड़की पर खड़ी
अकेली कहूंगी :
"अलविदा"

और भीषण मई की
गर्मी में
गर्म घास पर लेट कर
मैं अपने हाथों से
छुऊंगी तुम्हारे बाल
अपने होठों से सहलाऊंगी
मधुमक्खियों के रोओं को
जिसका डंक उतना ही सुन्दर
जैसे तुम्हारी मुस्कान
जैसे गोधूलि का समय
उस समय वह
सोना-चांदी होगी
या शायद सुनहरी और सिर्फ़ लाल
जो ढिठाई से घास के कान में फुसफुसाती जाती है
- प्रेम, प्रेम
- वह उठने नहीं देगी मुझे
और ख़ुद चल देगी
मेरे अभिशप्त ख़ाली घर की ओर

मैं जूलियट हूं

मैं जूलियट हूं
मैं तेईस साल की हूं
मैंने एक दफ़ा छुआ था प्रेम को
कड़वा था उसका स्वाद
काली कॉफ़ी के प्याले की तरह
उसने बढ़ा दी
मेरे दिल की रफ़्तार
बेचैन
मेरा जीवित अस्तित्व
-झूलने लगी मेरी तमाम इन्द्रियां

वह चला गया

मैं जूलियट हूं
एक ऊंची बालकनी पर
दूसरों पर निर्भर
चिल्लाती हुई - वापस आ जाओ
पुकारती हुई - वापस आ जाओ
ख़ून से रंगे
अपने कटे होठों के
धब्बों से

वह वापस नहीं आया

मैं जूलियट हूं
मैं हज़ार साल की हूं
मैं ज़िन्दा हूं.

1 comment:

ज़ाकिर हुसैन said...

कबाड़खाने का ये कबाडा भी अच्छा लगा. ...

वह सिर्फ़ आदमी के हाथों पर विश्वास करता था
जो भोजन लेकर आते थे
और कभी-कभी मृत्यु भी

वह उतना ही कृतज्ञ था
-भोजन के प्रति
और मृत्यु के प्रति.
बधाई!!!