Friday, October 3, 2008

मेरी याद करना और सोचना: वह चाहती थी तूफ़ान आएं



तुम सुनोगे तूफ़ान को

अन्ना अख़्मातोवा

तुम सुनोगे तूफ़ान को, तुम मेरी याद करना
और सोचना: वह चाहती थी तूफ़ान आएं. आकाश की किनारी
कड़े कत्थई रंग की होगी
और लपटें उठ रहॊ होंगी तुम्हारे दिल में, जैसा तब हुआ करता था.

यह सब सच होगा एक दिन मॉस्को में
जब मैं तुमसे अन्तिम विदा लूंगी
और जल्दी से चल दूंगी उन ऊंचाइयों की तरफ़
जहां मैं जाना चाहती थी
अपनी परछाईं को छोड़कर, तुम्हारे पास रह जाने के लिये.

5 comments:

अमिताभ मीत said...

This is absurd. This is superb. Don't know why, but it reminds me of "The Trial" and "The Castle" ... Really don't know why .. but the "Wait for eternity...." is so defined.

पारुल "पुखराज" said...

kayi dino se padh rahi huun ..aur hamesha comment na kar paaney jaisi halat ban padti hai...na jaaney kaisa sa likha rehta hai..mun tak pahunchta hai ..aur vahin bas jaataa hai...ASHOK ji ..sisila jaari rakhiye kripyaa....

वर्षा said...

ये कविता और इसके नीचे के पोस्ट में दी गई आन्ना की सारी कविताएं पढ़कर लगता है मानो तूफान को सुन रहे हैं।

siddheshwar singh said...

मेरे वास्ते अन्ना अख़्मातोवा ही बाहरी संसार की वह पहली कवि थीं जिन्हें पढ़कर लगा था कि अब तक जो पढा था वह कुछ भी नहीं था. कई दिनों से लगातार पुन: इअन कविताओं से गुजर रहा हूं और तूफ़ान को सुन रहा हूं .
बहुत बढ़िया.

मुनीश ( munish ) said...

Thanx for introducing Anna . Parul's comment has a sublime sanity and i must say ditto...pls. keep it up.