हे अखिल ब्रह्मांड के स्वामी, हे परमपिता परमेश्वर, हे करुणा के सागर, हे दयानिधान परमात्मा, कहां हो...कहां हो भगवान! जल में, नभ में, धरा पर, पाताल में, किस लोक में, किस जगह लगाए बैठे हो समाधि? सो रहे हो किस शैया पर...तोड़ो निद्रा, बाहर निकलो, देखो! देखो खून की नदी, देखो मांस के लोथड़ों में तब्दील हो गए बच्चे, बूढ़े, जवान, किशोरियां, युवतियां, स्त्रियां, देखो कैसा होता है भुना हुआ इंसानी गोश्त! देखो इसका रंग, महसूस करो गंध, आओ...आते क्यों नहीं...?.
इतने कठोर कैसे हो गए तुम । आतंकियों के निशाना बने हर शख्स ने सिर्फ तुम्हें पुकारा, मरने के पहले सिर्फ तुम्हारा नाम उनके ओंठ पर था। पर तुम नहीं आए। क्या गुनाह था उनका ?..यही न कि वे एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां इंसानी जिंदगी की कोई कीमत नहीं। यही न, कि वे ऐसे नेताओं का जयकारा लगाने को अभिशप्त हैं जो इंसान कहलाने के लायक नहीं। यही न कि उनकी सुरक्षा घूसखोरों के हवाले है। पर इसकी इतनी बड़ी सजा ?
कहां हैं तुम्हारे भेजे बाबा, साधु साध्वियां। कहां हैं पीर, औलिया कहां हैं, कहां हैं सेंट पीटर, एस्टीफेंस, सारे...। अरे, तुम्हारी इच्छा के बगैर पत्ता तक नहीं फड़कता। फिर बंदूकें कैसे चल जाती हैं? बेगुनाह की जान कैसे जाती है? देखते-देखते एक नौजवान आतंकवादी कैसे बन जाता है? तुमने क्यों नहीं किया चमत्कार..? .तुम चाहते तो ए.के.47 से निकलते फूल, तम चाहते तो समंदर में रास्ता भूल जाती आतंकियों की बोट, तुम चाहते तो कोई न बिछड़ता अपनी मां से, पिता से, बहन से, भाई से...दोस्तों से कोई न बिछड़ता। क्यों नहीं किया तुमने ऐसा? किसी मंदिर से, मस्जिद से, गिरजे से...कहीं से नहीं निकली कोई रोशनी। नहीं गिरी बिजली आतंकियों पर। क्यों, क्यों, क्यों.?..
अरे, तुम चाहो तो अब भी जी उठें मुर्दा, भर जाएं घायलों के जख्म, दुनिया हो जाए थोड़ी बेहतर, पर नहीं चाहते तुम कुछ भी ऐसा। या फिर तुम चमत्कार कर ही नहीं सकते। तुम्हे लेकर किए जाने वाले सारे दावे फर्जी हैं, किताबी हैं। वही किताबें, जिनकी वजह से इंसान बन जाता है इंसान का दुश्मन। जिनके पहले सफे पर लिखा होता है “प्रेम” और आखिरी पर “घृणा”। जिन्हें पढ़ने के बाद आदमी एक दर्जा ऊपर उठ जाता है और फिर मारने लगता है उन्हें, जो एक दर्जा नीचे नजर आते हैं।
या तुम भी डरते हो आतंकियों से। तुम्हारे पास उनका मुकाबला करने का ताब ही नहीं। या ये सारे भस्मासुर तुम्हारे पैदा किए हुए हैं। हां..हां, हां... इन्होंने सारा कहर तुम्हारे नाम पर बरपाया है। तुम्हारे ही एजेंट हैं ये।
क्या कहा?..... माया है सब, तुम्हारा ही खेल?....लीला है?... ये खून, ये चीखें, ये जलती लाशें, सच्चाई नहीं सपना हैं! मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की मां का विलाप, हेमंत करकरे के बेटे के आंसू, गजेंद्र सिंह के बच्चों का दर्द सब भ्रम है! क्या इलियास, मकसूद, फिरोज के परिजनों की चीखें झूठी हैं। बस भी करो! बहुत हो गया... झूठे ही नहीं साक्षात झूठ हो तुम। तुम नहीं हो करुणानिधान, नहीं हो जगत के स्वामी। तुम हो नीरो! चंगेज खां! हिटलर..!
या फिर तुम खुद ही हो माया! हमारी कमजोरियों की उपज! जो भी हो, भाड़ में जाओ!
11 comments:
सही बात ... और हां उस से ये भी कहो कि अपना ठेला बढ़ाए और आगे कू निकल ले.
सही कह रिए ओ, ये भगवान भी उनके ही पाले का है।
अपना कारखाना बंद कर के
किस घोंसले में जा छिपे हो भगवान?
कौन - सा है वह सातवाँ आसमान?
हे, अरे, अबे, ओ करुणानिधान !!!
- श्री वीरेन डंगवाल की कविता 'दुष्चक्र में स्रष्टा' का आखिरी अंश
पता नहीं भगवान जी इसे पढ़ रहे हैं कि नहीं!
allah apne pyaro ko apne paas bulaa lae beecharey dus dus paanch paanch mae mar rahey haen ek saath koi jal jalaa laa daae aur har jehaadi ko jaldi apne paas bula lae
bhagwaan nahin suntaaa so allaha ko bulaae
आईए, अंततः भजन करें:-
अच्छा भगवान.....तेरी मरजी.......
मेरे दाता.....तेरी मरजी........
भगवान ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया
आजकल वे इजराईल मे पार्ये जाते है उन्हे वो लचर पचर लोग पसंद नही जो खुद कुछ ना करे
पंगेबाज जी की बात से सहमत हूँ.
उन्हे वो लचर पचर लोग पसंद नही जो खुद कुछ ना करे
उन्होंने लाचारों और बेबसों की मदद करनी छोड़ दी है. उनकी मदद पाने के लिए हमें खुद भी थोडी हिम्मत करनी होगी.
भगवान,मेरे देश को आपकी हमेशा जरूरत है,आज को पहले से भी ज्यादा है..बेगुनाह लोगों के खून से होली खेलते दहशतगर्दों से तुम बचा सकते हो..बचाया है बार-बार...मुंबई में मौत के सौदागर हजारों लोगों की जान ले सकते थे..तुमने रोक लिया..जिनकी जान गयी...उसके लिये भगवान तुम्हें कैसे जिम्मेवार ठहराया जा सकता है..तुमने विलासराव से कब कहा कि अपने घर,अपने शहर की रक्षा-सुरक्षा मत करो..भगवान तुमने दिल्ली में बैठे डॉक्टर साहब से कब कहा कि अपने तटीय इलाकों,सरहदों के सुरक्षा इंतजामों की अनदेखी करो..भगवान तुमने आईबी,पुलिस,एसटीएस के आलाधिकारियों से कब कहा कि सौ किलो मीट खाकर..जो 10,15 लोग,हमले से कई दिनों पहले से मुंबई मे आराम से रह रहे हैं..वो आतंकवादी नहीं है..भगवान तुमने कभी भी धर्म,जाति,क्षेत्र,भाषा के आधार पर राजनीति की आचं पर रोटी सेंकनेवाले,ऱथ यात्रा पर निकलने वाले नेताओं से ये नहीं कहा कि तुम देश के दुश्मनों को खत्म करो या उनकी साथ सख्ती से मत निपटो..भगवान तुम्हारी आज बहुत ज्यादा जरूरत है..भगवान तुम शहीद हेमंत करकेर,आप्टे,कमांडो संदीप के परिजनों को हिम्मत,हौंसला दो,उनके आंसू पूंछों..उनके बच्चों को अपने शहीद पिता पर गर्व करने की ताकत दो.. भगवान..तुम बचा सकते हो...तुम मेरे देश को मौत के सौदागरों से बचा सकते हो..तुम करोडों लोगों का विश्वास हो..आस्था हो..यकीन हो..तुम इतने लोगों का भरोसा नहीं तोड़ते सकते..तुम हो...चमत्कार कर सकते हो..करते हो..तुम्हें करना होगा..मौत की आंधी को रोकना हो..सुख,शांति,संपन्नता,सौहार्द,खुशियों,की गंगा आपको फिर अपनी जटाओं से निकालनी होगी..जल्दी करो भगवान..कहीं देर ना हो जाए..
भगवान तो सबसे ज़्यादा कमीना है. वह सबको पैदा करके कष्ट देता है और लोगों को अपनी पूजा करने का विचार देता है.
अगर भगवान अच्छा होता तो वह किसी भी जीव को एक दूसरे को मार कर खाने और जीने के लिए संघर्ष में श्रेष्ठ बनने की मज़बूरी नहीं पैदा करता. वह सबको पैदा करता रहता है और आपस में लड़वाता रहता है,फिर भी सभी उसे दया का सागर कहते हैं. बताइये तो भला!
Orkut पर मुझे Misotheism, (Mal- & Dystheism) community पर मिले. आपके विचारों का स्वागत है.
धन्यवाद!
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