विस्वावा शिम्बोर्स्का में एक तटस्थ दार्शनिक की क्रूर निगाह है जो बहुत ही आम दिख रहे दृश्यों, अनुभवों को न सिर्फ़ बारीकी से उधेड़ती है, मानव जीवन की क्षुद्रता और महानता दोनों को एक ही आंख से देख-परख पाने का माद्दा भी रखती है. इस महान पोलिश कवयित्री की कुछेक कविताएं आप इस ब्लॉग पर पहले भी पढ़ चुके हैं आज प्रस्तुत है उनकी कविता 'पीएता'.(पीएता: ईसामसीह की मृत देह पर विलाप करती वर्जिन मैरी का प्रतिनिधित्व करती एक स्त्री को दी जाने वाली उपमा)
पीएता
नायक की पैदाइश के घर में आप
स्मारक पर निगाहें गड़ा सकते हैं, उसके आकार पर हैरत कर सकते हैं
खाली संग्रहाल की सीढ़ियों से भगा सकते हैं दो मुर्गियों को
उसकी माता का पता पूछ सकते हैं
खटखटा सकते हैं, धक्का देकर खोल सकते हैं चरमराते दरवाज़ों को
आप सीधे खड़े हैं आदर में, उसके बाल कढ़े हुए हैं और उसकी निगाह स्पष्ट
आप उसे बता सकते हैं कि आप बस अभी अभी पोलैण्ड से आए हैं
आप उसे नमस्ते कह सकते हैं. अपने सवाल साफ़ और ऊंची आवाज़ में पूछें
हां, वह उसको बहुत प्यार करती थी. हां जी वह इसी तरह पैदा हुआ था.
हां, वह जेल की दीवार से लगकर खड़ी थी उस दिन
हां उसने सुनी गोलियां चलने की आवाज़
आपको अफ़सोस हो रहा है आप कैमरा नहीं लाए
और टेपरिकॉर्डर. हां वह इसी तरह की चीज़ें देख चुकी है.
उसके आख़िरी पत्र को उसी ने सुनाया था रेडियो पर
एक बार तो उसने उसकी प्रिय लोरियां भी गाई थी टीवी पर
और एक बार एक फ़िल्म में भी काम किया
चमकीली रोशनियों के कारण उसकी आंखों में आंसू आ गए थे. हां, स्मृतियां
अब भी उसे विह्वल बना देती हैं. हां, अब वह थोड़ा थक गई है ...
हां यह क्षण भी बीत ही जाएगा.
आप खड़े हो सकते हैं. उसे शुक्रिया कह सकते हैं
विदा कह सकते हैं
हॉल में आ रहे नवागंतुकों की बग़ल से हो कर बाहर जा सकते हैं
2 comments:
वाकई नायकों के घर ही नहीं, बस एक छवि को छोड़ कर हर चीज के आसपास एक बियाबान होता है जो अक्सर लोगों को हताश करता है। खिल्ली उड़ाने की हद तक। क्या आँख पाई है शिम्बोर्स्का ने जो देख लेती है खाली संग्रहालय की सीढ़ियों पर दो मुर्गियां।
हां, स्मृतियां
अब भी उसे विह्वल बना देती हैं.
क्या कहूं शब्द नहीं मिल रहे। बस अच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया।
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