पढ़ने का क्या है - कुछ भी पढ़ा जा सकता है , शर्त बस यह है कि पढ़ने की फुरसत हो और मन हो. अखबारों के अलावा घर में ढ़ेर सारी किताबें -पत्रिकायें आती रहती हैं , आखिर कब और कितना पढ़ा जाय ? और भी हैं ग़म है रोजगार के या कि और भी दुख (सुख) हैं जमाने में पढ़ने के सिवा. इसलिए अक्सर कुछ डिफरेंट पढ़ने का मन करता है. अब तो सारी चीजें इतनी कामन हो गई हैं कि डिफरेंट के नाम पर मेरे पास रेलवे टाइम टेबल के अलावा कुछ दीखता ही नहीं.मेरा तो यह मानना है कि इससे बढ़िया कोई चीज नहीं. सस्ती भी है कोई मंहगी नहीं. हर छमाही छपती है. जब नई मिल जाय तो पुरानी रद्दी में बिक जाती है - किलो के भाव से.टाइम टेबल का तो यह है कि रजाई में घुसकर पढ़ते - देखते जाइये कि कि कौन सी गाड़ी कहाँ से कहाँ तक जाती है , विभिन्न स्टेशनों पर उसके आगमन और प्रस्थान का समय क्या है. किस स्टेशन पर बुक स्टाल , विश्रामालय , अल्पाहार सुविधा आदि -इत्यादि है अथवा नहीं. और तो और बिना टिकट -भाड़ा - रिजर्वेशन के किसी भी क्लास में , किसी भी कूपे में सफर कर आइए.लो साहब ये रही राजा की मंडी और वो रहा दीमापुर ! अभी कालका में हैं और अभी पलक झपकते ही दौंद तक की दौड़ लगा ली ! मन की तेज रफ्तार का मुकाबला करने वाली कोई सवारी नहीं बनी आज तक ! खयालों में ही लखनऊ का रेवड़ी , आगरे का पेठा , संडीला के लड्डू , कटनी की भजिया ,शहडोल के दही - बड़े , सतना की जलेबी , कटिहार की रोटी -सब्जी, औड़िहार की पकौड़ी, इलाहाबाद का आलूदम, रतलाम का श्रीखंड , न्यू बोगाईंगाँव का आमलेट , अनंतपुर की इडली , न्यू अलीपुरदुआर की झालमूड़ी, धर्मावरम के दोसे आदि नाना प्रकार के व्यंजन जो हमारी रसोई और पाकशात्र की पोथियों में बताए जाते हैं - वे सब फिरी - फोकट में.ऊपर बताये गये व्यंजनादि तो मेरी अपनी पसंद के हैं. आप को पूरी छूट है कि आप क्या खायें - क्या पीयें.खुद ही मेन्यू बनाइये, खुद ही आर्डर दीजिये और खुद ही सर्व कीजिये. कुल मिलाकर मौजा ही मौजा !
तरह तरह का टाइम टेबल छपता है अपने यहाँ - 'ट्रेन्स ऐट ए ग्लान्स' से लेकर 'न्यूमैन्स इंडियन ब्रॊडशा' तक , अलग - अलग भाषाओं में. कुछ सादे - कुछ रंगीन , कुछ क्षेत्रीय - कुछ आल इंडिया लेवल के लेकिन सबके केन्द्र में वही है अपनी प्यारी छुक छुक करती रेलगाड़ी - हिन्दुस्तानी जनसमूह को इस विशाल -बहुरंगी देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक का सफर कराने वाली जिसको लेकर पता नहीं कितनी कवितायें और कहानियां गढ़ी जाती रही हैं. टाइम टेबल में किराये की सूची के साथ, गाड़ियों के नाम और नंबर , स्टेशनों के बीच की दूरी , अप ट्रेन्स - डाउन ट्रेन्स का विवरण , टिकट वापसी के नियम आदि -इत्यदि को पढ़ना एक नए अनुभव से गुजरना होता है. विगत में की गई यात्राओं की स्मॄतियाँ मानस पटल पर उतरने लगती हैं और आगे की जाने वाली यात्राओं का आकलन आकार लेने लगता है.अब धीरे -धीरे सब कुछ तकनीक के हवाले होता जा रहा है. अब तो रेलगाड़ी का टिकट लेने के लिए भी स्टेशन पर जाने की जरूरत नहीं है -नेट पर मौजूद है यह् सुविधा. नेट पर तो रेलवे का विस्तॄत टाइम टेबल भी मौजूद है. बस क्लिक करते जाइये और ये रही गाड़ी - ये रहा किराया. प्रिंटर के पेट से निकल आता है ई / आई टिकट. यह सबकुछ कितना आसान हो गया है - कितना मशीनी. अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन हर्ष -विषाद , प्रेम -घॄणा जैसी भावनायें भी भी नेट पर ही मिला करेंगी. तो साहब , अपन तो ठहरे पुराने किस्म के आदमी, पुरानी चीजों के रसिया , कबाड़ के कारोबारी. भले ही ही नेट की अतल तलहटी में रेलवे टाइम टेबल जैसी नामालूम सी चीज भी मौजूद है फिर भी कागज पर किताब की शक्ल में छपा टाइम टेबल बहुत प्रिय है मुझे ! इसका कारण यह है कि यह सस्ता है , टिकाऊ है , कबाड़ बन जाने के बाद भी काम आता है और यदि अखबारों -पत्रिकाओं की रोजाना की वही -वही उबाऊ -उदास खबरों को पढ़ने से अगर आप बचना चाहते हैं तो यह करिश्माई किताब कल्पना के घोड़े पर सवारी करवाने का भरपूर मौका देने से कभी नहीं चूकती.
तो बताइये , क्या आप के पास यह करिश्माई किताब है ? अगर है, तो अपने घोड़े पर जीन कसें और उड़ चलें और अगर नहीं है , तो अपने आसपास तलाशें. अगर न मिले तो निराश न हों 'कबाड़खाना' को आर्डर करें.अपनी तो पालिसी ही है - क्विक डिलीवरी , वह भी फिरी फोकट.
तो साब ! आपके नाम पै कित्ता माल लिख दूँ ?
तरह तरह का टाइम टेबल छपता है अपने यहाँ - 'ट्रेन्स ऐट ए ग्लान्स' से लेकर 'न्यूमैन्स इंडियन ब्रॊडशा' तक , अलग - अलग भाषाओं में. कुछ सादे - कुछ रंगीन , कुछ क्षेत्रीय - कुछ आल इंडिया लेवल के लेकिन सबके केन्द्र में वही है अपनी प्यारी छुक छुक करती रेलगाड़ी - हिन्दुस्तानी जनसमूह को इस विशाल -बहुरंगी देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक का सफर कराने वाली जिसको लेकर पता नहीं कितनी कवितायें और कहानियां गढ़ी जाती रही हैं. टाइम टेबल में किराये की सूची के साथ, गाड़ियों के नाम और नंबर , स्टेशनों के बीच की दूरी , अप ट्रेन्स - डाउन ट्रेन्स का विवरण , टिकट वापसी के नियम आदि -इत्यदि को पढ़ना एक नए अनुभव से गुजरना होता है. विगत में की गई यात्राओं की स्मॄतियाँ मानस पटल पर उतरने लगती हैं और आगे की जाने वाली यात्राओं का आकलन आकार लेने लगता है.अब धीरे -धीरे सब कुछ तकनीक के हवाले होता जा रहा है. अब तो रेलगाड़ी का टिकट लेने के लिए भी स्टेशन पर जाने की जरूरत नहीं है -नेट पर मौजूद है यह् सुविधा. नेट पर तो रेलवे का विस्तॄत टाइम टेबल भी मौजूद है. बस क्लिक करते जाइये और ये रही गाड़ी - ये रहा किराया. प्रिंटर के पेट से निकल आता है ई / आई टिकट. यह सबकुछ कितना आसान हो गया है - कितना मशीनी. अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन हर्ष -विषाद , प्रेम -घॄणा जैसी भावनायें भी भी नेट पर ही मिला करेंगी. तो साहब , अपन तो ठहरे पुराने किस्म के आदमी, पुरानी चीजों के रसिया , कबाड़ के कारोबारी. भले ही ही नेट की अतल तलहटी में रेलवे टाइम टेबल जैसी नामालूम सी चीज भी मौजूद है फिर भी कागज पर किताब की शक्ल में छपा टाइम टेबल बहुत प्रिय है मुझे ! इसका कारण यह है कि यह सस्ता है , टिकाऊ है , कबाड़ बन जाने के बाद भी काम आता है और यदि अखबारों -पत्रिकाओं की रोजाना की वही -वही उबाऊ -उदास खबरों को पढ़ने से अगर आप बचना चाहते हैं तो यह करिश्माई किताब कल्पना के घोड़े पर सवारी करवाने का भरपूर मौका देने से कभी नहीं चूकती.
तो बताइये , क्या आप के पास यह करिश्माई किताब है ? अगर है, तो अपने घोड़े पर जीन कसें और उड़ चलें और अगर नहीं है , तो अपने आसपास तलाशें. अगर न मिले तो निराश न हों 'कबाड़खाना' को आर्डर करें.अपनी तो पालिसी ही है - क्विक डिलीवरी , वह भी फिरी फोकट.
तो साब ! आपके नाम पै कित्ता माल लिख दूँ ?
7 comments:
bhai abhi to bas itana hi ki hamahu ashok pandey hai..aapke chakkar me ashok kumar pandey bane baithe hain.
anuvaad aap karte hai badhai hame milti hai to ab khud hi do teen tho anuvaad kar rahe hain.
salaam!!!!!!!!!!!
मित्रवर अशोक कुमार पाण्डेय जी,
जिस पोस्ट पर आपने टिप्पणी की है वह अशोक पांडे जी की नहीं बल्कि हमारी* है.पोस्ट के नीचे इस नाचीज का नाम भी लिखा है. यह सही है कि 'कबाड़खाना' के नियंत्रक अशोक पांडे जी हैं किन्तु यह भी सही है कि उनके अलावा इस ब्लाग पर लिखने वाले तीस से अधिक और लोग भी हैं. दरअसल 'कबाड़खाना' एक टीमवर्क है.
बधाई आपको मिलती है ,यह कोई बुरी बात नहीं और अपने अनुवाद का काम भी आरंभ कर दिया यह तो और भी अच्छा है.मैं आपके ब्लाग 'युवा दखल' को देखता-पढता हूँ.
बधाई आपको.
ये टाइमटेबल तो मेरे बचपन की प्रिय किताब रहा है। जिस राह से जाता था उस राह के सभी स्टेशन और यहां तक के इनके बीच के सारे स्टेशन कंठस्थ याद कर लेता था। अब तो सिर्फ मुख्य स्टेशन का ही नाम दिखाते हैं। आपने अच्छा लिखा है बधाई
hello.time table baali baat main maza aa gaya.main bhi is time table ko parh kar roj yatrayen karta hoon.mere liye saal main sabse jyada parhi jane wali kitab hai yeh.stall par nayi naweli si ghoonghat main mukhra chhupaye rahti hai.jaise hi nazar oarti hai,saath le chalane ke liye man lalach uthta hai.aur phir dono saath saath safar par chal parten hain.bahut hi romantic post likhi hai aapne.badhai.
सफर में टाइम टेबल और घर में टेलिफोन डायरेक्टरी- अच्छा शगल है। क्यों जी....
sahi likhe siddheswar,aur hamare dost anand to abhi bhi ise shoukiya kafi parhte hain.
मै तो बस लिखकर भूल गया था
आज कुछ और ढूंढते हुए यह मिल गया तो पढकर अपनी मूढता का एहसास हुआ
देखिये ना भाई अब अपन भी इस टीमटाम के हिस्सा हैं।
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