Tuesday, December 16, 2008

दिल सख़्त क़यामत पत्थर सा और बातें नर्म रसीली सी







ख़ूरेज़ करिश्मा नाज़ सितम ग़मज़ों की झुकावट वैसी ही .
पलकों की झपक पुतली की फिरत सुरमे की घुलावट वैसी ही .

बेदर्द सितमगर बेपरवा बेकल चंचल चटकीली सी.
दिल सख़्त क़यामत पत्थर सा और बातें नर्म रसीली सी.

चेहरे पर हुस्न की गर्मी से हर आन चमकते मोती से .
ख़ुशरंग पसीने की बूँदें सौ बार झमकते मोती से.



शब्द : नज़ीर अकबराबादी
स्वर : छाया गांगुली
धुन : मुज़फ़्फ़र अली
अलबम : 'हुस्न-ए-जाना' / १९९७

6 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

क्या बात है जी! मुजफ़्फ़र अली साहब तो एक बार फिर छा गए!!

PD said...

ग़दर भाई ग़दर..
ओये प्रा जी.. तुस्सी तो छा गए.. :)
Superb..

Puja Upadhyay said...

wah wah wah!! behtarin.

एस. बी. सिंह said...

भाई वाह! बेहतरीन

अजित वडनेरकर said...

एक अलग सा अंदाज़...
अच्छा लगा

पारुल "पुखराज" said...

shukriyaa..pehli baar sunaa