Sunday, December 21, 2008

वीरेन दा को समर्पित विजयशंकर चतुर्वेदी की एक कविता

मृत्यु को देखना जरूरी है
वह तुम्हें जोतों में दिखाई देगी
जूतों में दिखाई देगी
जोतों का अब जूतों में दिखाई देना जरूरी है.

-विजयशंकर चतुर्वेदी

2 comments:

siddheshwar singh said...

ऐसे समय में जब-

'जब गरज रहे हैं घन घमंड के
फटती है नभ की छाती...'

तो कुछ तो होना ही है!

दिनेशराय द्विवेदी said...

छोटी और प्रभावशाली कविता!