Monday, December 1, 2008

अपना तो बस चरखा चल्लिया हैगा !

आज साम कू असोक बाबू को फोन करा और हाल -खबर पूछी . इतै - उतै की नरम -गरम हाँकने के बाद उन्नैं जे कई कि भइये बखत बड़ा खराब है , अप्ना तो बस जे समल्लें कि चर्खा चल्लिया हैगा. मोंय तो जे सु्नते ही बाबा अमीर खुसरो की याद आय गई और उनकू जे मसहूर लैनाँ सुना दी-

खीर पकाई जतन से,चरखा दिया चला ।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा ॥

अब इसके आगे -पीछे का तवारीखी किस्सा सभी को मालूम ही है .बताना तो बखत की बरबादी के संग बेफिजूल का डिरामा ही होएगा. अभी बात तो जे कन्नी है कि खीर, चरखा, कुत्ता और ढ़ोल का हालाते- हाजरा क्लीयर ना हो रिया है , मामला पल्ले ना पड़ रिया है।
बिलाग के बिदवान लोग प्रकाश डालेंगे क्या?

6 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

लाइना की तो पता नई पर असोक बाबू का हालाते-हालरा किलीयर हो जावे तो वे असोक बाबू किस बात के !

Ek ziddi dhun said...

महीन कात रहे हैं अशोक बाबू, अब फिर जो हो. खीर में कुत्ते की दखल पर उनका कोई दोष नाहिं. वो तो मुलुक में अंधी पीस रही है सो कुत्ते खा रहे हैं।

Pramendra Pratap Singh said...

तोहरी के भाषा पढै कै बहुत नीक लागा, फिर आऊब तोहरे ब्‍लागवा पर

एस. बी. सिंह said...

हम तो चलते हैं ढोल बजाने।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ला, आतंकवादी को पानी पिला-

अनूप शुक्ल said...

अशोक जी के हाल सुधरें जल्दी! अस्पताल के चक्कर कम हों। उनको सुकून नसीब हो! यही कामना है!