आज साम कू असोक बाबू को फोन करा और हाल -खबर पूछी . इतै - उतै की नरम -गरम हाँकने के बाद उन्नैं जे कई कि भइये बखत बड़ा खराब है , अप्ना तो बस जे समल्लें कि चर्खा चल्लिया हैगा. मोंय तो जे सु्नते ही बाबा अमीर खुसरो की याद आय गई और उनकू जे मसहूर लैनाँ सुना दी-
खीर पकाई जतन से,चरखा दिया चला ।
खीर पकाई जतन से,चरखा दिया चला ।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा ॥
अब इसके आगे -पीछे का तवारीखी किस्सा सभी को मालूम ही है .बताना तो बखत की बरबादी के संग बेफिजूल का डिरामा ही होएगा. अभी बात तो जे कन्नी है कि खीर, चरखा, कुत्ता और ढ़ोल का हालाते- हाजरा क्लीयर ना हो रिया है , मामला पल्ले ना पड़ रिया है।
अब इसके आगे -पीछे का तवारीखी किस्सा सभी को मालूम ही है .बताना तो बखत की बरबादी के संग बेफिजूल का डिरामा ही होएगा. अभी बात तो जे कन्नी है कि खीर, चरखा, कुत्ता और ढ़ोल का हालाते- हाजरा क्लीयर ना हो रिया है , मामला पल्ले ना पड़ रिया है।
बिलाग के बिदवान लोग प्रकाश डालेंगे क्या?
6 comments:
लाइना की तो पता नई पर असोक बाबू का हालाते-हालरा किलीयर हो जावे तो वे असोक बाबू किस बात के !
महीन कात रहे हैं अशोक बाबू, अब फिर जो हो. खीर में कुत्ते की दखल पर उनका कोई दोष नाहिं. वो तो मुलुक में अंधी पीस रही है सो कुत्ते खा रहे हैं।
तोहरी के भाषा पढै कै बहुत नीक लागा, फिर आऊब तोहरे ब्लागवा पर
हम तो चलते हैं ढोल बजाने।
ला, आतंकवादी को पानी पिला-
अशोक जी के हाल सुधरें जल्दी! अस्पताल के चक्कर कम हों। उनको सुकून नसीब हो! यही कामना है!
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