मैं हूं सदी 21 का गुजरता हुआ आठवां बरस
मैं गवाह हूं हिंदोस्तां की किस्मत का
रंग गिरगिट का दिखाती हुई सियासत का
उजले परदों के तले स्याह सब इरादों का
मैंने देखा है दहशत का खौफनाक मंजर
पानी की तरह बहता खून सड़कों पर
जिस्म को चिथड़ा बनाते, बारूदी दिमाग
दिल को चीरती चीखें और भड़कती आग
और जो जान दे बचा गए कई जानें
उनकी जांबाजी और हौसले के अफसाने
मैंने देखा है हिमालय को जार-जार रोते
उसके आंसू से लबालब हुईं नदियों का कहर
और शमशान में बदली हुई गौतम की जमीं
जश्न दिल्ली में मना देख के पटना की गमी
पी गए सब,उठी इमदाद की फिर जो भी लहर
लाल बत्ती में नजर आए सब घड़ियाल, मगर
मैंने देखे हैं पसीने में तर ब तर बच्चे
गमे रोजी पे न्योछावर जवानी की कसक
तेज रफ्तारी का दम निकालती हुई मंदी
सांय-सांय करती,लेबर चौराहे की सड़क
और देखा कामयाबी का नई राहें
चांद सीने से लगाने को मचलती बाहें
और वो सूरज भी देखा, जो उगा खेल के मैदानों से
एक मेडल ने कैसे अरब चेहरों को लौटा दी चमक
दांव कुश्ती का और मुक्के का हुनर ऐसा खिला
हर तरफ फैल गई गांव की मिट्टी की महक
और मंडी में सजे देव गेंद-बल्ले के
खेल के हुस्न पे भारी पड़ी सिक्कों की खनक
तमाम किस्सों को सीने में दबाए जाता हूं
गया वक्त हूं तो फिर से कहां आऊंगा,
अलविदा कहता हूं पर भूल नहीं पाऊंगा
अरे, उठो..ये उदासी कैसी
नजूमी देखो फिर बिल से निकल आए हैं
बमों पे बैठे हैं, मुस्तकबिल हरा बताए हैं
कोई टी.वी. पे,कोई छा गया अखबारों में
चमक चोले में,और हीरा जड़े हारों में
बहलाने वाले वही किस्से फिर दोहराए हैं
हंसो-हंसो कि लतीफा बड़ा सुनाए हैं
फिर वही नाजिर हैं,वही मंजर फिर
सुने मैंने भी थे, जब आया था, उठाए सिर
पर ऐसा भी क्या कि जश्न की बात न हो
जर्द पन्नों में गुलाबों से मुलाकात न हो
माना हर तरफ पसरा है ये अंधेरा घना
पर हमेशा के लिए कौन इस दुनिया में बना
जो भी आया है जहां में, वो जाएगा जरूर
तख्त ओ ताज गए,ये भी खतम होगा हुजूर
इसलिए उठो, सुनो दस्तक, खोलो किवाड़
दरीचों से फूट रहा है नई किरणों का जाल
इसे बचाओ बुरी नजरों से, लालच से, बेइमानी से
नया साल बचे,सब झूठ की कहानी से
इसका स्वागत करो... स्वागत करो...स्वागत करो...
(जब कोई खबरनवीस साल का लेखा-जोखा करता है तो कई बार कलम यूं ही बहक जाती है)
5 comments:
खुदा करे ये कलम यूं ही बार-बार बहके पंकज भाई ! आपकी कुछ कविताएं याद हैं मुझे ! जैसे "एक वो नाग हैं" वाली !
स्वागत हैं... स्वागत हैं...स्वागत हैं!
कुछ ही पलों में आने वाला नया साल आप सभी के लिए
सुखदायक
धनवर्धक
स्वास्थ्वर्धक
मंगलमय
और प्रगतिशील हो
यही हमारी भगवान से प्रार्थना है
आपकी कलम बहकी तो ये ख़याल आया
२००९ तेरा क्या होगा २००८ के बाद!
बहुत अच्छा..सच्चा...लिखा आपने...हकीकत लिखी..दर्द भी दिखा...लेकिन उम्मीद भी दिखी...सपने भी दिखे..एक बरहामिन की बात पर यकीन है मुझे कि ये साल जरूर अच्छा होगा..बस दुआ यही है कि इस साल सड़कों पर बेगुनाहों का खून और ना बहे..मांओं की गोद फिर ना उजड़े,बच्चों के सिर पर बाप का साया बना रहे..पति-पत्नी के बीच झूठ-मूठ के झगड़े,रूठना-मनाना चलता रहे...भाई-भाई को गले लगायें..बहन भाई हाथ में राखी सजायें..दोस्त खाये-पीयें साथ-साथ...मंदी का राक्षस हो जाए,जमीनोंगारत,सब को दो ना सही एक वक्त तो पेटभर खाना मिले..कैसे भी होगा..थोड़ा ही सही..कम ही सही..सबके के साथ अच्छा हो..अब के बरस....
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