Thursday, January 15, 2009

मां की बनाई गई घुघुतों की माला



आज हमारे यहां काले कव्वा था. 'है' इस लिए नहीं बोल रहा कि त्यौहार सुबह सुबह निबट गया है. हल्द्वानी में ही रहने वाली मेरी छोटी बहन को एक जनवरी के दिन पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी. फ़िलहाल मां उसी के घर गई है. नए आए पोते और उससे बड़े आदित्य के लिए घुघुतों की मालाएं ले कर. बाकी भाई बहनों के बच्चों की मालाएं मन्दिर के बगल में टांग दी गई हैं. जब भी वे यहां आएंगे उनका इन्तज़ार होता रहेगा.

घुघुती बासूती जी ने एक उम्दा पोस्ट इस बाबत आज लगाई है. इस कुमाऊंनी त्यौहार के बारे में उन्होंने बहुत चाव से लिखा है और बहुत अच्छा लिखा है. यह त्यौहार क्या होता है यह जानने की इच्छा हो तो एक दफ़ा उनके ब्लॉग पर जाने का कष्ट ज़रूर करें.

10 comments:

निर्मला कपिला said...

rochak jaankari ke liye shukria

ghughutibasuti said...

अहा, आपकी इजा ने तो रंगवाली पिछौड़ भी ओढ़ा हुआ है। अपने रंगवाली पिछौड़ के बारे में तो मैं भूल ही गई थी। पेटी में सुरक्षित है। शायद इस जीवन में कभी कुमाँऊ जाना हो। अन्यथा अपने नाम में ही कुमाँऊ की सुगन्धि सूँघती हुई मैं कभी कभी नौराई कम कर लेती हूँ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

परंपरायें और रिवाज इन बुजुर्गों की बदौलत जिन्दा हैं. अच्छा लगा देख सुन कर.

अम्मा जी को सादर चरण स्पर्श.

दीपा पाठक said...

वाह...ईजा की फोटो बहुत अच्छी आई है। मैंने भी बनाऐ थे घुघुते, बढिया बने थे, लेकिन बनाते हुए रात इतनी देर हो गई थी कि सुबह-सुबह कौवों को खिलाने के लिए जाग ही नहीं पाई।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

ओहोहोहोहो! भाग खुल गए हमारे जो माताजी के दर्शन हुए साछात बिना फिजिकली वहाँ पधारे!


वैसे घुगुती जी ने पोस्ट बहुत सार्थक लिखी है.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अम्मा जी को देख मन प्रसन्न हो गया ! ऐसी ही तो होती हैँ माँ...
- लावण्या

deepak sanguri said...

suna hai atthani haldwani main paya ja raha hai,phir kawyaa ke jarurat nahi ,suna hai dada ke ghar ke sare gugute chaba gaya....

Naveen Joshi said...

हमारे घर भी पके थे घुघुते. रात ज़िद करके मैँने भी बनवाई एक माला. वह आज तक वैसी की वैसी टँकी है कलैण्ड्रर की कील मेँ.
आज दिन मेँ देखा था उसमेँ गछ्याया नारीँग चिमडी गया है.

अजित वडनेरकर said...

वाह...अम्मा को प्रणाम करता हूं।

samar Singh said...

aap sabhi logon ki baaten itni massom aur pyari hain kae aisa prateet hota hai ki mere khandan jo lagbhag 50 loogon ka hai badhkar hazarroon mein hoo gaya hai har vyakti itna bhola aur apna jaan padta hai ki kya kahen ,shukriya aap sab loogon ka iss adhbhut sansar mein hame shamil karne ka