Wednesday, March 25, 2009

हिटलर का पहला फ़ोटोग्राफ़


आज से मैं अपनी प्रियतम कवियों में से एक नोबेल पुरुस्कार प्राप्त पोलिश कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का की चुनिन्दा/ पसन्दीदा कविताओं की एक सीरीज़ शुरू कर रहा हूं. आशा है आप को आनन्द आएगा.

हिटलर का पहला फ़ोटोग्राफ़

और कौन है ये बच्चा - इत्ती सी पोशाक में?
अडोल्फ़ नाम है इस नन्हे बालक का -
हिटलर दम्पत्ति का छोटा बेटा!
वकील बनेगा बड़ा होकर?
या वियेना के ऑपेरा हाउस में कोई गायक?
ये बित्ते से हाथ किसके हैं, किसके ये नन्हे कान, आंखें
और नाक?
हम नहीं जानते दूध से भरा किसका पेट है यह.
-छापाख़ाना चलाने वाले का, डाक्टर का, व्यापारी का
या किसी पादरी का?
किस तरफ़ निकल पड़ेगा यह मुन्ना?
बग़ीचे, स्कूल, दफ़्तर या किसी दुल्हन की तरफ़?
या शायद पहुंच जाएगा मेयर की बेटी के पास?
बेशकीमती फ़रिश्ता, मां की आंखों का तारा,
शहदभरी डबलरोटी सरीखा!
साल भर पहले जब वह जन्म ले रहा था
धरती और आसमान में कोई कमी नहीं थी शुभसंकेतों की -
वसन्त का सूरज, खिड़कियों पर जिरेनियम,
अहाते में ऑर्गन वादक का संगीत
गुलाबी काग़ज़ में तहा कर रखा हुआ सौभाग्य
सपने में देखा गया
कबूतर अच्छी ख़बर ले कर आता है -
अगर वह पकड़ लिया जाए तो कोई बहुप्रतीक्षित अतिथि
घर आता है,
खट्‌‍ खट्‌
कौन है
अडोल्फ़ का नन्हा हृदय दस्तक दे रहा है.
बच्चे को शान्त कराने को चीज़ें, लंगोटी, खिलौना,
हमारा तन्दुरुस्त बच्चा, भगवान का शुक्र करो, भला है
हमारा बच्चा, अपने लोगों जैसा
टोकरी में सोये बिल्ली के बच्चे सरीखा
श्श्श! रोओ मत मिठ्ठू!
अभी क्लिक करेगा कैमरा काले हुड के नीचे से -
क्लिंगर का स्टूडियो, ग्राबेनस्ट्रासे, ब्राउनेन!
छोटा मगर बढ़िया शहर है ब्राउनेन -
ईमानदार व्यापारी, मदद करने वाले पड़ोसी.
ख़मीर चढ़े आटे की महक, सलेटी साबुन की महक,

भाग्य की पदचाप पर भौंकते कुत्तों को कोई नहीं सुनता
अपना कॉलर ढीला करके
इतिहास का एक अध्यापक जम्हाई लेता है
और झुकता है होमवर्क जांचने को.

(फ़ोटो: हिटलर का पहला फ़ोटो)

6 comments:

anurag vats said...

bahut badhiya anuwad...kavita bhi...acharaj hota hai...kyon भाग्य की पदचाप पर भौंकते कुत्तों को कोई नहीं सुनता...

Uday Prakash said...

आश्चर्य है। इस कविता को पढ़ते हुए आज 'द ग्रेट डिक्टेटर' में हिटलर बने चार्ली चैप्लिन का वह सेक्वेंस बार-बार आंखों के सामने कौंधता रहा, जब वह एक बार फिर किसी 'मासूम' बच्चे की तरह, उस बैलून के साथ खेल रहा है, जिस पर दुनिया का नक्शा बना है। अपने खेल में डूबा, सारी दुनिया का 'डिक्टेटर' बनने की उसकी महत्वाकांक्षा ने उसे फिर 'शिशु' बना दिया है। लेकिन, अगर आपको याद हो तो अंत में जैसे ही वो बैलून अचानक फूटता है, उस 'बच्चे' के क्षणभंगुर अवतार का भी अंत हो जाता है..और..हम वहां उसी ऐतिहासिक-राजनीतिक वयस्क अधेड़ हिटलर से रू-ब-रू होते हैं !
क्या ऐसा नहीं लगता कि कोई भी महत्वाकांक्षा, अगर अपना मानवीय स्वत्व खो देती है, तो हर उस 'महत्वाकांक्षी' बच्चे के भविष्य में से एक 'हिटलर' जैसा ही वयस्क निकलता है ?
यह जितनी अच्छी कविता है, उतना ही अच्छा (बल्कि taking all risks, I'd add) उससे भी अच्छा अनुवाद !
बधाई !

Ashok Pande said...

यह आपका बड़प्पन है उदय जी!

शिरीष कुमार मौर्य said...

उदयप्रकाश जी की बात से शतप्रतिशत सहमत हूं। इस अनुवाद का पहला श्रोता सौभाग्य से मैं हूं! जब रानीखेत में था तब की वो रात अब भी याद है मुझे - फोन पर किया गया पाठ! उसके कुछ दिन बाद मेरे सामने और भी बहुत सारी कविताएं थीं।

ये अनुवाद भी क्या कमाल की कला है यार ! जिसे सध गई, उसे सध गई!
क्या बात है दद्दा!
इसी बात के तो दद्दा हो तुम!
प्यार और सलाम!

Ek ziddi dhun said...

bade kaam, bade salam

मुनीश ( munish ) said...

Since i have not seen the original , i can't compare the two . Still i believe rather trust that it is a good translation 'cos UdayPrakash, an established and respected author, says so and a mature person like Sidheswar seconds him .