Monday, April 27, 2009

वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड - भाग एक



गाब्रीएल गार्सीया मारकेज़ उर्फ़ गाबो के साक्षात्कारों पर आधारित प्रसिद्ध पुस्तक 'फ़्रैगरेन्स ऑफ़ गुवावा' के एक अध्याय से कुछ टुकड़े मैंने कभी यहां लगाए थे. मेरे संग्रह में कोई बीस किताबें ऐसी हैं जिन्हें मैं हर साल पढ़ता हूं - और यह सिलसिला पिछले बारह-तेरह सालों से जारी है. गाबो का कालजयी उपन्यास 'वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड' किताबों की इस सूची में काफ़ी ऊपर आता है. कल देर रात इसे एक बार और पढ़ कर समाप्त किया.

'फ़्रैगरेन्स ऑफ़ गुवावा' का अनुवाद कई सालों से प्रकाशनाधीन है - किताब जब छपे, क्यों न आपको इस का वह हिस्सा पढ़वाऊं जिस में मारकेज़ ' वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड' की बाबत बातें कर रहे हैं अपने अभिन्न मित्र और मशहूर कोलम्बियाई पत्रकार प्लीनीयो आपूलेयो मेन्दोज़ा से. ये लीजिए पहला हिस्सा. दूसरा रात में लगा दूंगा.





जब तुमने `वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलीट्यूड´ लिखना शुरू किया तुम क्या करना चाहते थे?

मैं उन सारे अनुभवों को साहित्य में व्यक्त करने की राह खोजना चाहता था, जिन्होंने एक बच्चे के तौर पर मुझ पर प्रभाव डाला था.

बहुत से आलोचकों को इस किताब के भीतर मानव जाति के इतिहास की जातक कथा या एक रूपक नजर आते हैं.

नहीं, मैं बस इतना करना चाहता था कि अपने बचपन के संसार की एक साहित्यिक छवि छोड़ना चाहता था जो, जैसा तुम्हें पता है एक बड़े, बेहद उदास घर में बीच था जहां एक बहन थी जो मिट्टी खाती थी, एक नानी थी जो भविष्यवाणियां किया करती थी, और एक ही नाम वाले असंख्य रिश्तेदार थे जिनके लिये प्रसन्नता और पागलपन के बीच बहुत फर्क नहीं था.

तो भी आलोचकों को कहीं जटिल उद्देश्य नजर आते हैं.

यदि वे हैं भी तो ऐसा करने की मेरी नीयत नहीं थी. होता ये है कि लेखकों के बरअक्स आलोचकों को किताब में अपनी मनचाही चीज मिल जाती है, वह नहीं जो उसमें सचमुच है.

तुम आलोचकों के बारे में बहुत विडंबनापूर्ण बातें करते हो. तुम उन्हें इतना नापसंद क्यों करते हो?

क्योंकि ज्यादातर आलोचक इस बात को नहीं समझते कि `वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलीट्यूड´ एक तरह का लतीफ़ा है, जिसमें नजदीकी मित्रों के लिये कई संकेत है( सो किसी अधिकार के कारण वे किताब को `डीकोड´ करने का काम अपने ज़िम्मे ले लेते हैं और आख़िरकार मूर्खों जैसे नज़र आने लगते हैं.

मिसाल के तौर पर मुझे याद है कि एक आलोचक को लगा था कि उसे उपन्यास का सूत्र मिल गया है जब उसने गौर किया कि एक पात्र - गाब्रीएल - राबेलाइस की सम्पूर्ण कृतियां पेरिस ले जाता है. इस खोज के बाद उसने साहित्यिक प्रभाव को अतिरंजित किया. मैंने राबेलाइस की उपमा के बतौर इस्तेमाल किया है और ज़्यादातर आलोचक इस बात को देख नहीं पाये. इस बात को दरकिनार करके कि आलोचक क्या कहते हैं मेरे ख्याल से उपन्यास तुम्हारे बचपन की स्मृतियों की काव्यात्मक पुनर्रचना के आगे भी कुछ है. क्या तुमने एक बार नहीं कहा था कि बुएनदीया परिवार की कहानी लातीन अमरीकी इतिहास का वृतांत हो सकता है?

हां, मेरे विचार से ऐसा ही है. लातीन अमरीकी इतिहास भी भीषण बेकार उद्यमों से भरा हुआ है और उन महान नाटकों से भी जिन्हें घटने से पहले ही खारिज कर दिया गया. हमें स्मृति के ह्रास की हैजे की बीमारी भी है. समय बीतने पर कोई याद नहीं रखता कि बनाना कंपनी के कर्मचारियों का हत्याकांड वाकई हुआ था, उन्हें सिर्फ कर्नल ऑरेलियानो बुएनदीया की याद आती है.

और जो तैंतीस युद्ध कर्नल ऑरेलियानो बुएनदीया ने हारे सम्भवत: हमारी अपनी राजनीतिक कुंठा की अभिव्यक्ति हो सकते हैं, अगर कर्नल जीत गया होता तो क्या होता?

वह पैट्रिआर्क जैसा होता. उपन्यास को लिखते वक्त एक दफे मुझे लालच आया कि कर्नल को सत्ता मिल जाये. ऐसा होता तो मैंने `वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलीट्यूड´ की जगह `द ऑटम ऑफ़ द पैट्रिआर्क´ लिखा होता.

तो क्या हम यह मान लें कि भाग्य की किसी ऐतिहासिक सनक के कारण जो भी तानाशाही के खिलाफ लड़ता है, खुद सत्ता में आने के बाद तानाशाह बन जाता है?

`वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड´ में कर्नल ऑरेलियानो बुएनदीया का एक बन्दी उससे कहता है, "मुझे फिक्र इस बात की है कि सेना की प्रति तुम्हारी इतनी घृणा, उससे इतना लड़ चुकने और उसके बारे में इतना सोच लेने के बाद तुम भी वैसे ही बन चुके हो". अन्त में वह कहता है, "इस हिसाब से तुम हमारे इतिहास के सबसे बड़े खूनी तानाशाह हो."

क्या यह सच है कि तुमने यही उपन्यास तब लिखना शुरू किया था जब तुम अठारह के थे?

हां, `द हाउस´ नाम था उसका क्योंकि मैंने सोचा था कि पूरा घटनाक्रम बुएनदीया परिवार के घर के भीतर घटेगा.

उसमें तुम कहां तक पहुंचे थे? क्या तुमने सौ सालों के बारे में लिखने का सोचा था?

मैं किसी खाके तक नहीं पहुंच पाया. मैं कुछ टुकड़े अलग कर पाया, जिनमें से कुछ उस अख़बार में छपे जहां मैं उन दिनों काम करता था. सालों की संख्या से मुझे कभी चिन्ता नहीं हुई. मुझे ख़ुद नहीं पता कि असल में `वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलीट्यूड´ में सौ सालों की कहानी है या नहीं.

तुमने तभी उसे लिखना जारी क्यों नहीं रखा?

क्योंकि तब उस तरह की किताब लिखने के लिये न मेरे पास पर्याप्त अनुभव था न शक्ति न ही तकनीकी कौशल.

लेकिन वह कहानी तुम्हारे दिमाग में घूमती रही थी.

पन्द्रह सालों तक. मुझे सही कहानी नहीं मिल पाई थी. उसने मेरे कानों में सही-सही गूंजना था. एक दिन जब मैं मेरसेदेज और बच्चों के साथ आकापुल्को की तरफ गाड़ी से जा रहा था, वह एक कौंध की तरह मेरे दिमाग में आई. मुझे वह कहानी उसी तरह सुनानी थी जैसी मेरी नानी सुनाया करती थीं. मैं उसी दोपहर से शुरू करने वाला था जब छोटे बच्चे को उसके नाना बर्फ खोजने ले जाते हैं.

एक एकरेखीय इतिहास

एक एकरेखीय इतिहास जिसमें असाधारण तत्व सामान्य चीजों में जज़्ब हो जाते हैं, अपनी पूरी सादगी के साथ.

क्या यह सच है कि तुमने गाड़ी मोड़ ली थी और तुरन्त लिखना शुरू कर दिया था?

सच है. मैं कभी आकापुल्को नहीं पहुंच पाया.

और मेरसेदेज़?

तुम जानते हो मेरसेदेज़ ने मेरे कितने सारे ऐसे पागलपन बर्दाश्त किये हैं. उसके बिना मैं किताब नहीं लिख सकता था. उसने चीज़ों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया. मैंने कुछ ही महीने पहले कार खरीदी थी, सो उसे जमानत पर दे कर मैंने उसे पैसे दे दिया. मुझे लगा था कि मैं छ: महीने लूंगा पर किताब पूरा करने में मुझे डेढ़ साल लगे. जब पैसा ख़त्म हो गया उसने एक शब्द भी नहीं कहा. मुझे नहीं पता कि वह कैसे कर पाई लेकिन उसने कसाई को उधार पर मांस देने को, नानबाई को उधार पर डबलरोटी देने को और मकान मालिक को किराये के लिये नौ महीने रूके रहने पर राजी कर लिया. उसने मुझे बताये बिना हर चीज की देखरेख की और जब-तब मेरे लिये पांच-पांच सौ कागजों का बण्डल लाया करती थी. उन पांच सौ पन्नों के बिना मैं कभी नहीं रहा. जब किताब ख़तम हो गई तो यह मेरसेदेज़ थी जिसने पाण्डुलिपि को डाक से एदीतोरियाल सूदामेरिदाना भेजा.

उसने मुझे एक बार बताया था कि पाण्डुलिपि को डाकखाने ले जाते हुए उसने सोचा था `अगर यह किताब इतने सब के बाद उतनी अच्छी न हो पाई तो?´ मैं नहीं समझता उसने उसे पढ़ा था. पढ़ा था क्या?

नहीं, वह पाण्डुलिपियां पढ़ना पसन्द नहीं करती.

वो और तुम्हारे बेटे अक्सर तुम्हारी किताबें पढ़ने वाले आखिरी लोग होते हैं. मुझे बताओ, क्या तुम्हें निश्चित पता था कि यह किताब सफल होगी?

मुझे पता था कि आलोचकों को किताब पसंद आयेगी पर इतनी सफलता के बारे में नहीं सोचा था. मुझे लगा था कि वह करीब पांच हजार बिक जायेगी (तब तक मेरी बाक़ी किताबें की सिर्फ हजार प्रतियां बिकी थीं). एदीतोरियाल सूदामेरिकाना ज्यादा आशावान था - उनके ख्याल से किताब आठ हजार बिक सकती थी. असल में किताब का पहला संस्करण अकेले बुएनोस आयरेस में दो हफ्ते में बिक गया.

8 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

समकालीन हिन्दी साहित्य संसार के लिए ये सपनों सरीखी बातें हैं. बहुत बढ़िया पोस्ट- बहुत बढ़िया सपना !
"सपनों के सौदागर" ! मुझे लगता है कई सालों से प्रकाशित हो रही ये किताब इस साल पुस्तक मेले में आ जाएगी.

Ek ziddi dhun said...

आलोचकों को लेकर दुनिया भर में अछे रचनाकारों का ऐसा ही अनुभव है क्या?

मुनीश ( munish ) said...

Some of them may be ur friends , but i feel the most unwanted people in the realm of literature are none but critics! Who are they to instruct people what to read and what not to! This 'kaum' has strangulated many a budding talent in the spring of their lives . Not everyone had the nerves of steel like Marquez.

दीपा पाठक said...

आपके सुझाने पर ही पहली बार मैंने यह किताब पढी थी और अब यह मेरी भी सबसे पसंदीदा किताबों में से एक है। इंटरव्यू बहुत दिलचस्प है।

विजय तिवारी " किसलय " said...

BAHUT KUCHH PADHA AUR SAMJHA BHI.
-VIJAY

ghughutibasuti said...

मुझे लगता है कि यदि हम अपनी पढ़ी पुस्तकों व अपनी पसन्द की पुस्तकों सूची दें तो हम एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं। जब कोई किसी पढ़ी हुई या पसन्दीदा पुस्तक की बात करता है तो विशेष खुशी होती है।
मारकेज़ की वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड' की बाबत बातें पढ़कर अच्छा लगा।
घुघूती बासूती

अजित वडनेरकर said...

पुस्तक के हिन्दी अनुवाद की प्रतीक्षा है कई वर्षों से। अगर छप चुका है तो कृपया सूचना दें।

साक्षात्कारी बेहतरीन साहित्यिक प्रस्तुति ।

Ashok Pande said...

अजित भाई, किताब छप के आ जाए तो एक प्रति तुरन्त भेज दी जाएगी आपको. निश्चिन्त रहें.