Friday, June 19, 2009

उस्ताद अली अकबर ख़ाँ;खामोश हो गया सरोद.



भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिये आज का दिन बड़ा मनहूस है जब आपके साथ यह ख़बर बाँटी जा रही है कि सरोद के सुमेरू उस्ताद अली अकबर ख़ाँ साहब नहीं रहे. मैहर घराने के शीर्षस्थ साधकों में ख़ाँ साहब का नाम शुमार था. अपने बेजोड़ सरोद वादन से उन्होने पूरी दुनिया में हिन्दुस्तानी संगीत मान बढ़ाया. आज जब तंत्रकारी के नाम पर ज़माने भर का शोर हुआ जा रहा है ख़ाँ साहब ताज़िन्दगी अपनी रिवायत और घराने के अनुरूप इस दुर्लभ वाद्य को साधते रहे. बिना इस बात की परवाह किये कि ज़माना बदल रहा है,लोगों का स्वाद बदल रहा है और बदल रही है क्लासिकल मूसीक़ी की फ़ितरत; ख़ाँ साहब अपने वालिद और मैहर घराने के संस्थापक महान संगीताचार्य उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ की सोच और सीख का ही अनुसरण करते रहे. ज़माना जानता है कि बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ कितने सख़्त तबियत की गुरू थे.

पण्डित रविशंकर भी बाबा के पास ही सितार सीखे थे. कहते हैं एक बार बाबा नें किसी बात पर क्रोधित होकर अपनी छड़ी से रविशंकरजी को पीटा. युवा पण्डितजी ने दु:खी होकर मैहर से वापसी का फ़ैसला कर लिया और अपना सामान बाँध कर स्टेशन पहुँच गए.अली अकबर को जब ये बात मालूम पड़ी तो वे भागते हुए स्टेशन पहुँचे और भीगी आँखों से रवि बाबू को बताया कि बाबा की छड़ी दर असल तुम्हारे प्रति मोहब्बत का इज़हार है. हमें (अली अकबर और उनकी बहन अन्नपूर्णा यानी पं.रविशंकर की पत्नी) को तो बाबा की छड़ी खाने का सौभाग्य ही नहीं मिला,घर चलो रवि.और पण्डितजी लौट आए अपने महान उस्ताद के घर.बाद में पं.रविशंकर कहाँ पहुँचे ये पूरी दुनिया जानती है.

फ़िल्म आँधिया(1953) के लिये जब प्रसिध्द निर्देशक चेतन आनंद ने उस्ताद अली अकबर ख़ाँ को अनुबंधित किया तो ख़ाँ साहब ने साफ़ कह दिया कि मेरा इलाक़ा शास्त्रीय संगीत है और मैं अपने गुरू की इजाज़त के बग़ैर धुनों की फ़ायनल रेकॉर्डिंग नहीं होने दूँगा. चेतन आनंद राज़ी हो गए. जब बाबा को अली अकबर नें अपनी धुन सुनाई तो वे बहुत प्रसन्न हुए . अली अकबर खाँ साहब में पिछले दिनों एक इंटरव्यू में कहा था कि जिस दिन बाबा स्टुडियो आए उसी दिन उन्होंने अपने पिता-गुरू का चेहरा ध्यान से देखा.सोचिये क्या अनुशासन और गरिमा रही होगी उस ज़माने में .तब तक अली अकबर पूरे तीस के हो चुके थे. पचास के द्शक में पं.उदय शंकर,पं.रविशंकर के बाद पहले पहल विदेश जाकर अपनी प्रस्तुतियाँ देने वाले कलाकारों में उस्ताद विलायत ख़ाँ ही थे.

ख्यात गायिका आशा भोंसले के साथ उस्ताद अली अकबर ख़ाँ ने लिगैसी नाम से एक अतभुत एलबम तैयार किया था.इसे सुनकर आशाजे और उस्तादजी के करिश्मे की बानगी सुनी जा सकती है.

उस्ताद अली अकबर ख़ाँ के इंतक़ाल से न केवल आज सरोद की मिठास चली गई है वरन उस दौर का भी अंत भी हो गया है जिसमें साधना प्रमुख हुआ करती थी और ग्लैमर निरर्थक.कबाड़ाख़ाना पर सरोद के इस सर्वकालिक महान कलाकार को श्रध्दांजली.

आइये सुनें उस्ताद अली अकबर ख़ाँ साहब का बजाया राग पीलू.ये भी बताता चलूँ कि आज यहाँ जारी किया गया दुर्लभ चित्र इन्दौर की साठ बरस पुरानी संस्था अभिनव कला समाज के मंच का है जहाँ उस्ताद की एकाधिक प्रस्तुतियाँ हुईं हैं.

Ali Akbar KHAN - Ali Akbar KHAN, Piloo
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9 comments:

अफ़लातून said...

स्वर्गीय उस्ताद अली अक़बर खाँ साहब का वादन अमर है । उनकी स्मृति को प्रणाम ।

रागिनी said...

मेरी भी श्रद्धांजलि!

siddheshwar singh said...

नमन

दिनेशराय द्विवेदी said...

स्वर्गीय उस्ताद अली अक़बर खाँ साहब को आत्मिक श्रंद्धांजली, उन के श्रम और साधना को शत शत नमन!

Rangnath Singh said...

vinamra shraddhanjali

ravindra vyas said...

shraddhanjali!

Ashok Pande said...

उस्ताद की कमी खलेगी शास्त्रीय संगीत जगत को.

श्रद्धांजलि!

Manish Kumar said...

Ustad ko sridhanjali aur is behtareen aalekh ke liye aapka dhanyawaad

Arvind Mishra said...

मंत्रमुग्ध करता वादन -उस्ताद अमर हैं !