(यह बेहतरीन आलेख सुशोभित सक्तावत ने तैयार कर के भेजा है. सुशोभित भी कबाड़ियों की पांत में शामिल हैं)
ये अफ़वाहों और अंधड़ों की एक कहानी है...
अजीब बात है, लेकिन इस कहानी की शुरुआत एक जवान मौत के इर्द-गिर्द होती है... और एक क़त्ल के भी. गोया ये अपने आपमें एक 'थ्रिलर' हो. लेकिन सचाई ये ही है कि इस पूरी कहानी पर एक अजब तरह का स्याह रंग छाया हुआ है और इससे भी बड़ी सचाई ये है कि एक निहायत उजले इलाक़े तक भी इस कहानी की तफ़सीलें पहुंचती हैं...दरअसल, ये स्याह और उजले की आपसी कशमकश वाली एक कहानी है, जिसमें शोहरत के नश्तर हैं, तो प्रतिमाओं का धुंधलका भी...ये अफ़वाहों की क़तरनें जोड़कर बनाई गई एक अजीबोग़रीब कहानी है.
इस कहानी की शुरुआत अटलांटिक के उस तरफ़ से होती है...
जबकि समंदर के इस तरफ़ बीटल्स का वो मशहूर शीराज़ा तक़रीबन बिखर चुका था...योरोप में सन्नाटा था, अमरीका में नई आहटों की महज़ दबी-घुटी आवाज़ें... 'रॉक' संगीत के गिटार की भर्राई हुई आवाज़ मद्धम पड़ती जा रही थी, और 'रिदम एंड ब्ल्यूज़' की अफ्रीकी-अमरीकी ध्वनियों को नई पहचान की तलाश थी. जॉन लेनॅन के क़त्ल की ख़बर तो बाद में आती है, लेकिन ऐल्विस प्रेस्ली की मौत का अफ़सोसनाक वाक़या दुनियाभर के उन लोगों के कलेजे में गड़ा हुआ था, जो मौसिक़ी से मोहब्बत करते हैं...
ऐन इसी दौरान अटलांटिक के उस तरफ़ जैक्सन फ़ाइव के कमसिन लड़कों ने गाना-गुनगुनाना शुरू किया था... वे लोग 'न्यू जैक स्विंग' के ताज़ातरीन शगूफ़े में पूरी ताक़त से शुमार थे... इस अफ़साने में डायना रॉस शुरू से ही शामिल रहीं, और एक वक़्त के बाद पॉल मैकॉर्टनी भी इसमें शरीक़ होते नज़र आते हैं...
ये कहानी तब शुरू होती है जब जोसेफ़ जैक्सन की बीवी एक दोपहर उसे आकर बताती है कि बग़ल वाले कमरे में माइकल कुछ गुनगुना रहा है... जोसेफ़ एक ठंडी मुस्कराहट के साथ कहते हैं- हां, मैंने देखा... जरमाइन से कह दो कि उसे गिटार सौंप दे.
बहुत शुरुआत में इस कहानी में जैक्सन फ़ाइव के लड़कों की मासूम आवाज़ें शामिल थीं, जो 'एबीसी', 'आई वांट यू बैक', और फिर 'द लव यू सेव' में नुमायां हुईं. बिलबोर्ड ने इन नवागतों को टॉप चार्ट से नवाज़ा, लेकिन इस ग्रुप के कुल जमा ग्यारह बरस उम्र वाले 'लीड वोकल' को एक नई ज़मीन गढ़ना थी, जिस पर उसे नए क्षितिज रखने थे. 'ऑफ़ द वॉल' तो ख़ैर बाद में आया, लेकिन उसके पीछे की बुनावटें उसके लड़के के ज़ेहन में तरतीब लेने लगी थीं. वो 70 के सालों की आखिरी सुगबुगाहटें थीं.
'रॉक विद यू' सुनकर स्टीफ़न स्पिलबर्ग ने एक नए चमत्कार के साक्षी होने की बात कही थी, अगरचे वो भी एक दूसरी कहानी मानी जाए, तब भी 'थ्रिलर' तक आते-आते उस चमत्कार को हक़ीक़त में तब्दील होते सभी ने देखा. 82 के साल में सामने आया 'थ्रिलर' कई मायनों में एक फ़िनामिना था, और उसने पॉपुलर संगीत की पिछली तमाम परिभाषाएं बदलकर रख दीं. 'थ्रिलर' के साथ ही 'न्यू जैक स्विंग' का परचम भी फहरा गया. अब इसमें रॉक, या जैज़, या ब्ल्यूज़ का इकहरापन नहीं था...इसमें शामिल थीं फ़ंक, सोल, गोस्पेल और बैलेड तक की ख़राशें. बीटल्स के सॉफ़्ट रॉक और हार्ड रॉक भी इसमें शुमार थे. फिर, इसमें हिपहॉप भी जुड़ा... पॉप के साथ पॉपिंग आई... अब चौबीस बरस के हो चुके उस लड़के के क़दमों के नीचे से ज़मीन को फिसलते हुए 'मोटाउन 25' में पूरी दुनिया ने देखा. उसके पैरों में बिजलियां थीं... और उसने 'ज़ीरो ग्रेविटी' को झुठला दिया था. इस कहानी में 80 के दशक का गर्म ख़ून और मांस के दरिया की मचलती मछलियां शामिल थीं. 'बिली जीन' और 'बीट इट' पश्चिमी पॉप के नए सूत्रगान बन चुके थे. लड़के की आवाज़ के पीछे म्यूजिक वीडियोज़ के तिलिस्मी परदे लहराते रहे... देखने-सुनने वालों ने अचरज के साथ ये तमाम नई चीज़ें देखीं... और उस सितारे का नाम अच्छी तरह से अपने ज़ेहन में टांक लिया.
'वी आर द वर्ल्ड' के साथ उसने बहुत शुरुआत में ही दुनिया-जहान की आदमियत से एक वादा कर लिया था. उसके बाद उसने उस वादे को हर बार निभाया. रियो-डी-जेनेरियो की संकरी गलियों में बच्चों के साथ और उनके लिए 'दे डोंट केयर' गाते-गुनगुनाते हुए हमने उसे देखा था, तो नेवरलैंड के परियों के संसार में भी वो हमें मिला. 'मैन इन द मिरर' के बाद वो 'हील द वर्ल्ड' लेकर आया, तो सबसे आख़िर में आत्मा की अतल गहराइयों से उपजा हुआ 'अर्थ सॉन्ग'...जिसके बाद अब उसका कोई अंत नहीं था. उसे सुनने वाली अवाम अपनापे से भरे उस चेहरे को हमेशा पहचानती रही...आंसुओं में सबसे ज़्यादा.
उसका संगीत वक़्त के साथ गाढ़ा होता गया. 'यू आर नॉट अलोन' को उसने एक अनचीन्हीं मिठास से भर दिया, तो 'रिमेंबर द टाइम' में उसने गति और ठहराव के नए आयाम खोजे. 'जैम' और 'डर्टी डायना' में उसने अपनी उद्दाम कामुकता को उघाड़कर सामने रख दिया था, तब भी, 'स्ट्रेंजर इन मॉस्को' की बेपनाह तनहाइयों में उसकी रूह तड़कती रही. वो पिघला हुआ शीशा सभी ने देखा... ये शीशा उसके गले में शहद बन जाया करता था...और उसकी आवाज़ हमारा आइना. 'बैड' और 'डेंजरस' के साथ वो आवाज़ों के नए-नए मौसम गढ़ता रहा, और 'हिस्ट्री' तक पहुंचते-पहुंचते उसका संगीत एक लाजवाब शराब बन गया.
ये शोर और भीड़ के बीचोबीच वाले अकेलेपन की एक कहानी है... ये लांछन, पराजय और अफ़वाहों से भरा एक अफ़साना है, जिसमें रोशनी के तेज़गाम साये सरकते रहे, बेलगाम चीख़ें और बेहोशियां गुमी रहीं... वो चमत्कार हमारी नज़रों के सामने ही हुआ, वो मिथक उठा, और फिर उसे कीचड़ में लथपथ होते देख एक चीप और मीडियाकॅर क़िस्म की ख़ुशी भी हमने ही हासिल की.
वो उस सब के लायक़ था, जो कुछ उसने हासिल किया... और जो कुछ उसे मिला.
ये सनसनीख़ेज़ ख़बरों सरीखी दिलचस्प तफ़सीलों वाली कहानी है, जिससे सालोंसाल अख़बारनवीसों की रूहें तस्क़ीन पाती रहीं... और फिर उसकी मौत के बाद भी. सुइयों से छिदी उसकी देह दवाइयों की तेज़ गंध में गुमती रही...'इनविंसिबल' के बाद वो जो डूबा, तो फिर उबर नहीं सका... उसकी आख़िरी मेहफ़िलों के लिए मेहमान सब जुट चुके थे, लेकिन वो ग़ैर-मौजूद रहा... वो अब वहां कभी नहीं पहुंच सकेगा.
ये एक बहुत-बहुत स्याह, और एक बहुत-बहुत उजली कहानी है...उसकी चमड़ी के बदलते रंग सरीखी... जैसे दिन और रात के एकसाथ सच होने की कोई तिलिस्माई तरक़ीब हो...बहरा कर देने वाले उन्मादी शोर के बीच हम उसे देख रहे हैं...सुन रहे हैं... और वक़्त? वो कहीं नहीं है...
ये मौत के आख़िरी दरवाज़े के पीछे से झांकते माइकल जैक्सन की कहानी है, जिसने कभी चांद पर चलने की कोशिश की थी...वो आज भी चुपचाप चांद की वो गिटार बजा रहा है- जो जरमाइन ने एक बहुत पुरानी दोपहर आंसू और ख़ून के विरसे के साथ उसे सौंपी थी...
(माइकेल के अल्बम 'ऑफ़ द वॉल' से सुनिये उसका शुरुआती हिट 'डॉन्ट स्टॉप टिल यू गैट एनफ़'. इसके बोल भी माइकेल के लिखे हैं)
Michael Jackson - Don't Stop Till You Get Enough | ||
Found at bee mp3 search engine |
15 comments:
माइकल जैक्सन पर हिन्दी में इकलौता शानदार गद्य का टुकड़ा। सुशोभित की भाषा अद्भुत और जादुई है। अशोक जी बेहतर हुआ कि आप ब्लाग को आरोपो-प्रत्यारोपों को दलदल से निकाल लाए। कबाड़खाना को मैं तो कम से कम इन्हीं रचनाओं के चलते पहचानता हूं।
सुन्दर गद्य ! क्या ये सज्जन टेलीविजन के लिए डोकु मेंट्री लिखते हैं ? यदि नहीं तो क्यों नहीं ? बधाई अंदाज़ -ऐ-बयाँ की !!
रही बात माइकल की वो मुझे कभी इंसान ही नहीं लगा ! जैसे कोई प्रेत कब्र से उठ आया हो कुछ ऐसा ही . वो नाचते हुए अपना हाथ बार- बार वहां क्यों रखता था ,ये भी साला एक रहस्य है जो उसके साथ ही दफ़्न हो गया !
बेमिसाल अंदाज.....लाजवाब किस्सागोई.....बस यही दुःख है अपने आखिरी दिनों में माइकल भी अवसाद के शिकार हुए ..ओर शरीर पर अनेक प्रयोग करने लगे....जिसके कारण दुखद मौत के शिकार हुए.....
सुशोभित सक्तावत जी को ओर पढने को मिलेगा ....ऐसी उम्मीद है.....
बेहतरीन आलेख। माइकल को महत्वपूर्ण बनात हुआ। हम जैक्सन के फैन कभी नहीं रहे, अलबत्ता उसका नाम सुनते हुए ही बड़े हुए हैं। कुछ तो बात रही होगी...
बहरहाल, नए कबाड़ी का स्वागत है...अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई.
बीटल्स भी गाते थे , सरोकार भी उठाते थे मगर बिना किसी फाँ-फूं के ! मैंने जैक्सन के शोज़ में फैन्स को गश खाके गिरते और भावातिरेक में बाल नोचते देखा है मगर क्यूं मैं नहीं समझ पाता ! चिकित्सा विज्ञान कहता है की इस किस्म का संगीत रक्त-चाप को निस्संदेह बढाता है ,इंसान को बावलेपन पे उतर आने पे मजबूर करता है .जब वो भारत आया तो अखबारों का कहना था की उस हफ्ते नशीली दवाओं की रिकॉर्ड सेल हुई . ये एक ऐसा आलेख है जिसकी शैली मुझे ला-जवाब करती है मगर विषय- वस्तु क्षोभ से भर देती है . मैं निस्संदेह बुढा रहा हूँ !
मुनीश जी,
इस टिप्पणी में आपका कवि गायब हो गया है, पहली टिप्पणी में उसकी थोडी सी झलक थी। पिछली कई टिप्पणियों में आप बेहतरीन कवि थे।
अपने भीतर के कवि से क्यूँ धीरे-धीरे आँख चुराने लगे हैं?
बुढ़ा मैं भी रहा हूँ।
Hamari or se hardik sriddhanjli.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
jio pyaare!
Dear Pritish i wish u could see the culture of death inherent in popular American culture. This kind of music is simply unbearable for me .
बहुत ही सुंदर पोस्ट, शानदार शैली। आपने माइकल जैक्सन के संगीत यात्रा को बहुत खूबसूरती से बयां किया है। ऐसे ही और आलेखों का इंतज़ार रहेगा।
Munish Ji,
main Apase sahamat hun.
meri chuhal ka bura mat maniyega, yah chalti rahegi.
अब जो रहा नहीं उसे कोसना अभद्रता होगी प्रीतिश सो उसके तमाम fans से मैं माफ़ी मांगता हूँ मगर इतना ज़ुरूर कहूँगा के शैतान उन्हें बरगला रहा है . ईश्वर माइकल की आत्मा को सुकून दे ...आमीन !
अरे नहीं-नहीं मुनीश जी!
मैं माइकल का फैन नहीं हूँ।
मेरी चुहल का लिंक तो हिन्दी वाली कविता से है।
मुझे कभी-भी माइकल पसंद नहीं आया। याद है बम्बई में उसने एक शख्स का हाथ छू लिया था तो उस फैन ने दो महिने तक हाथ नहीं धोया था। कितना पैदल दिमाग काम था !
behad khubsurat lekh kya he bhavukta me nahi likhagaya hai kya usne ap ko bhavuk nahi kiya
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