Thursday, July 16, 2009

सारे कबाड़ियों से एक व्यक्तिगत अनुरोध

१. उदय प्रकाश जी वाले मसले पर अब इस ब्लॉग पर कोई पोस्ट नहीं लगेगी. लगेगी तो उसे हटा दिया जाएगा. इस पर काफ़ी चर्चा हो चुकी है. कुछ सवाल थे जिनका जवाब, मुझे उम्मीद थी कि मिल जाएगा. पर ऐसा नहीं हुआ. उल्टे कुछ ऐसे ग़ैरज़रूरी सवालात उठाए गए जिनका कोई मतलब मुझे तो नज़र नहीं आता.

२. कुछेक टिप्पणियां ऐसी भी आईं जिनकी भाषा अमर्यादित थी और उन्हें हटाना पड़ा.

३. आज और अभी से कमेन्ट मॉडरेशन चालू किया जा रहा है. बेनामी कमेन्ट्स को हटा दिया जाएगा.

४. सभी कबाड़ी भाइयों से उम्मीद करता हूं कि कोई भी पोस्ट लगाने से पहले पिछली पोस्ट का समय देख लें. दो पोस्ट्स के बीच कम से कम आठ घन्टे का अन्तराल रहे, इतनी कृपा करें (बशर्ते कोई इमरजेन्सी न आन पड़ी हो).

५. ऐसा अनुरोध इस लिए भी किया जा रहा है कि कबाड़ख़ाने का मॉडरेटर होने के नाते मैं चौबीस घन्टे चूहा थामे कम्पूटर की स्क्रीन पर आंखें फ़ोड़ने का महाकार्य नहीं करते रह सकता. रोटी मुझे भी खानी होती है और उसके वास्ते काम करना होता है और ब्लॉगिंग से कानी कौड़ी नहीं मिलती.

६. कोई किसी से सम्मान ले, अब कोई फ़र्क नहीं पड़ना. लिखना बहुत कुछ चाहता था पर पंचदिवसीय भूसीकरण के उपरान्त अब हिम्मत नहीं बची. गुडनाइट!

18 comments:

प्रीतीश बारहठ said...

शुक्रिया और साधुवाद

मुनीश ( munish ) said...

साधु-- साधु ! Enough is Enough!

sanjay vyas said...

इस पोस्ट को कुछ पहले आ जाना चाहिए था. इन दिनों यहाँ की बहस रोशनी के बजाए ताप ज्यादा पैदा करने लगी थी.

Sunder Chand Thakur said...

yeh thik kadam uthaya. Bina naam ke comments ki yahan koi jagah nahi honi chahiye. Aur batuar moderator kuch buniyaadi adhikar bhi Ashok ke paas rahne chahiye. Samudra ki taswiron hamesha hi achchi lagti hain, magar inka mujhe yahaan is wakt koi matlab nahin samjh aya. Sidheshwar ki bhasha kamal ki hai...khalis kabaadi andaj wali...aur ghazal bhi aise chchanti ki...wah!

अजित वडनेरकर said...

हरिओम् तत्सत्

sushant jha said...

आमीन...

Anshu Mali Rastogi said...

हमने देखा है अक्सर ऐसी बहसें बिना कोई सार्थक संवाद के समाप्त हो जाया करती हैं। यह भी हो गई। पर अशोकजी इससे कुछ बात तो आगे बढ़ी ही यही बहुत है।

Anonymous said...

५. ऐसा अनुरोध इस लिए भी किया जा रहा है कि कबाड़ख़ाने का मॉडरेटर होने के नाते मैं चौबीस घन्टे चूहा थामे कम्पूटर की स्क्रीन पर आंखें फ़ोड़ने का महाकार्य नहीं करते रह सकता. रोटी मुझे भी खानी होती है और उसके वास्ते काम करना होता है और ब्लॉगिंग से कानी कौड़ी नहीं मिलती.
just a suggestion
you can share administrative rights of the blog with all members and then let them moderate their own comments

मुनीश ( munish ) said...

@Sundar chand thakur सुन्दर भाई समुद्र नहीं महासमुद्र है ये ...खाड़ी बंगाल को छूता हिंद महासागर... जो विश्व के दस सर्वोत्कृष्ट सी बीचेज़ में से एक का प्रक्षालन करता यहाँ दीखता है ..अहो ऐसे महादृश्य का वंदन करो मित्र !

Ek ziddi dhun said...

अशोक भाई, इस मसले का देर से ही पाता चला, शुरू में यकीन नहीं हुआ (हैरानी नहीं हुई) और तस्दीक़ करना पड़ा. फिर इन्टरनेट का जुगाड़ और सब कुछ पढने को मिला. खुशी बल्कि बड़ी खुशी ये हुई कि अनिल यादव वही अनिल यादव है जिससे बरसो पहले मुलाकात हुई थी. बाकी आप आहत हैं, स्वाभाविक है. पर यह सही नहीं है. जो खुद सरे बाज़ार अपनी कारगुजारी के साथ सामने है, उसके उल जुलूल आरोप पर आहत होना? मानो कल आदित्यनाथ आपको सांप्रदायिक कह दे और आप आहत हो जाएँ? आप नाहक दुखी न हो जाईए.
और वो महँ लेखक! कोई कितना भी महान, कितना भी प्रतिभाशाली होगा, कितना भी पोपुलर और कितना भी अपना प्यारा होगा, वो अपनी करतूत पर शर्मशार नहीं है तो उससे क्या अपना रिश्ता? ये बात सही है कि हिंदी रचनाकारों का बड़ा हिस्सा इनाम-इकराम के पीछे भागता-फिरता है और उनमें अपने भी कई प्रिय लेखक हैं. उमके लिए भी धिक्क्कर.

Rangnath Singh said...

धन्यवाद अशोक जी

देर आए दुरूस्त आए।

कबाड़खाना को हाईजैकरों से आजादी दिलाने के लिए। पिछला प्रकरण मेरे लिए कभी न भूलने वाली नजीर बन गया है। कबाड़खाना अपने पुराने सुंदर रूप में जल्द से जल्द वापस आए इसी शुभकामना के साथ प्री-मोहनदास एरा के सभी कबाड़ियों को मेरे तरफ से

शुभ संध्या।

Ashok Kumar pandey said...

अशोक भाई और मित्रों

यह बहस न तो उस समारोह में शुरु हुई थी ना इस पोस्ट पर ख़त्म होगी।
उम्मीद है जब जब ऐसी दुर्घटनायें होंगी तब तब आप सब इसी उर्ज़ा के साथ एकत्र होंगे

pankaj srivastava said...

फर्क तो पड़ता है भाई...

मुनीश ( munish ) said...
This comment has been removed by the author.
स्वप्नदर्शी said...

Thanks for bringing sanity back on this wonderful blog

मुनीश ( munish ) said...

Dear Rang,
In this era of Uncle Chips,designer underpants and Global warming where every third person is fighting Diabetes does it really matter who sleeps with whom or who gets honoured by whom? For me it hardly does ! What matters is friendship and i am sad you betrayed this cause by deserting Kabaad. Now who do u want to impress by ur "good evening" ?

Anil Pusadkar said...

बीती ताही बिसार्…………………………………।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

मॉडरेटर होने के नाते मैं चौबीस घन्टे चूहा थामे कम्पूटर की स्क्रीन पर आंखें फ़ोड़ने का महाकार्य नहीं करते रह सकता. रोटी मुझे भी खानी होती है और उसके वास्ते काम करना होता है और ब्लॉगिंग से कानी कौड़ी नहीं मिलती.
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हम वैसे आपके कबाड़खाने में शामिल नहीं हैं पर ये बात बड़ी अच्छी लगी, इस कारण खुद करे कमेंट करने से नहीं रोक सके।